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महसूस तुम्हें हर दम फिर मेरी कमी होगी

मेलोडेलिशियस-3

(पोस्ट को रुचिता तिवारी की आवाज़ में सुनें)

ये ऑल इंडिया रेडियो नहीं है. ये ज़हन की आवाज़ है. काउंट डाउन नहीं है ये कोई. हारमोनियम की ‘कीज़’ की तरह कुछ गाने काले-सफेद से मेरे अंदर बैठ गए हैं. यूं लगता है कि साँसों की आवाजाही पर ये तरंगित हो उठते हैं. कभी काली पट्टी दब जाती है कभी सफेद. इन गानों को याद करना नहीं पड़ता बस उन पट्टियों को छेड़ना भर पड़ता. (Evergreen Popular Music)

आज किसी मीठे से दर्द की किसी अनाम सी पट्टी की याद. वो जो अचानक मिल गई थी. कुछ खुशियाँ राह चलते अचानक आपसे टकरा जाती हैं. कभी-कभी बार-बार भी टकराती हैं. जैसे कि ये ग़ज़ल. आज से कुछ ही साल पहले तक न मुझे इस गाने का कुछ पता था, न ये ही, कि मसर्रत नज़ीर नाम की कोई पाकिस्तान से गायिका और नायिका भी हैं. एक दिन किसी दुकान पर मुझे रेयर ग़ज़लों की एक सी डी दिखी. मैं घर ले आई. सुना और उसी में खोती चली गई. बाद में जाने कैसे वो सी डी भी खो गई. इधर यू ट्यूब पर कुछ ढूंढते-खोजते ये खुशी फिर से मिल गई.

ये ग़ज़ल पाकिस्तानी गीतकार युनुस हमदम ने लिखी है और ये मसर्रत नज़ीर जो एक विलक्षण प्रतिभा की धनी पाकिस्तानी गायिका एवं अदाकारा हैं की पहली एल्बम में शामिल थी. मसर्रत ने अपना कैरियर रेडियो गायिका से शुरू किया फिर पार्श्व गायिका की तमन्ना के साथ पाकिस्तान फ़िल्म इंडस्ट्री में आईं और अभिनेत्री बन गईं. शुरुआती स्क्रीन नाम चांदनी था और पचास-साठ के दशक की पाकिस्तानी मेलोड्रामाटिक फिल्मों का ख़ासा लोकप्रिय चेहरा रहीं. उस वक्त की बोल्ड अभिनेत्रियों में शामिल मसर्रत की फिल्मों पर सेंसर होना आम बात थी. इतनी शोहरत के बीच जाने किस गरज से अचानक ये अभिनेत्री कनाडा जाकर बस गई. फिर अस्सी के दशक में जबरदस्त वापसी भी की.

जानूँ जानूँ री, काहे खनके है तोरा कंगना

इस बार गायन को लेकर संजीदा रहीं मसर्रत के गाने बहुत लोकप्रिय रहे. ख्वाजा परवेज़ का लिखा ‘मेरा लौंग गवाचा’ याद कीजिये. हिंदी फिल्मों में भी इसके रीमेक बहुत बने. एक और शानदार गाना सुनिए उनका. ‘चले तो कट ही जाएगा सफर आहिस्ता-आहिस्ता’ और याद कीजिये फ़िल्म ‘सड़क’ का वो गाना ‘तुम्हें अपना बनाने की कसम खाई है-खाई है.’ इसकी धुन मसर्रत के इस गाने से ही ली गई है. आज भी उनके गाए शादी के गानों का जवाब नहीं.

और अब इस ग़ज़ल की बात. वैसे तो ग़ज़ल के क्लासिक पैरामीटर्स पर इसे ग़ज़ल न कहकर गीत या नज़्म कहेंगे पर मतलब तो जज़्बात से है न. मुझे लगता है कभी-कभी किसी एक शब्द या एक मिसरे के लिए पूरी ग़ज़ल कह दी जाती है. शायर के दिल में वो एक मिसरा अटकता है और वो उसे किसी पुराने कर्ज सा उतारने के लिए पूरी ग़ज़ल पढ़ देता है. इस गीत में वो मिसरा है ‘बिखरे हुए माज़ी के औराक चुनोगे तुम!’ सिर्फ माज़ी के नहीं, बिखरे हुए माज़ी के! आह! शायर ने जाने कितने प्रेम में पड़े जोड़ों के घाव खोल दिये, जाने कितने मंजिलों से भटक गए रास्तों पर, पहचान के लिए बनाए गए पुराने निशान उघाड़ दिए, जाने कितने अतृप्त-असफल-अव्यक्त प्रेम के उन क्षणों को बिखेर दिया जो उन अधूरी कहानियों में हर बार एक काश के साथ जिए गए.

जो मैं जानती बिसरत हैं सइयाँ

जाने कौन सी कशिश है इस गाने में कि हर बार सुनने पर अंदर एक हूक सी उठती है. जाने क्यों ये इस बात की तस्दीक करती लगती है कि जब तब मुझे ढूंढोगे… तुम्हारे पास शायद सबकुछ होगा लेकिन तुम्हें मेरी कमी महसूस होगी! इस बात की तस्दीक, कि मेरी याद में तुम्हें भी रोना आएगा, तुम मेरा नाम लेने तक में भी कांप रहे होंगे! आह! कितना आत्म बल देता है ये प्रेम! इस बात की तस्दीक तो सबसे ज़्यादा, कि कुछ भी जाए तुम मुझे ढूँढोगे ज़रूर! कितना मुग्ध कर देने वाला आत्मविश्वास.

ग़ज़ल गायिकी या सुगम संगीत की ये कोई बहुत महान आवाज़ नहीं है लेकिन लता… आशा… आबिदा की आवाज़ों के बीच ये आवाज़ चुपचाप आकर दिल के अंदर बैठ जाती है, कुरेदती है, हलचल ही मचा देती है… क्यों ये तो सुनकर ही पता चलेगा न! यूट्यूब पर इसके वीडियो में पाकिस्तान टेलीविज़न के लिए खुद मसर्रत हैं… सुनिए…

गुलशन की बहारों में
रंगीन नज़ारों में
जब तुम मुझे ढूंढोगे
आँखों में नमी होगी
महसूस तुम्हें हरदम
फिर मेरी कमी होगी

आकाश पे जब तारे
संगीत सुनायेंगे
बीते हुए लम्हों को
आँखों में सजायेंगे
तन्हाई के शोलों से
जब आग लगी होगी
महसूस तुम्हें हरदम
फिर मेरी कमी होगी

सावन की हवाओं का
जब शोर सुनोगे तुम
बिखरे हुए माज़ी के
औराक़ चुनोगे तुम
माहौल के चेहरे पर
जब धूल जमी होगी
महसूस तुम्हें हरदम
फिर मेरी कमी होगी

जब नाम मेरा लोगे
तुम काँप रहे होगे
आंसू भरे दामन से
मुह ढांप रहे होगे
ग़मगीन घटाओं की
जब छांव घनी होगी
महसूस तुम्हें हरदम
फिर मेरी कमी होगी

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रुचिता तिवारी/ अमित श्रीवास्तव

यह कॉलम अमित श्रीवास्तव और रुचिता तिवारी की संगीतमय जुगलबंदी है. मूल रूप से अंग्रेजी में लिखा यह लेख रुचिता तिवारी द्वारा लिखा गया है. इस लेख का अनुवाद अमित श्रीवास्तव द्वारा काफल ट्री के पाठकों के लिये विशेष रूप से किया गया है. संगीत और पेंटिंग में रुचि रखने वाली रुचिता तिवारी उत्तराखंड सरकार के वित्त सेवा विभाग में कार्यरत हैं. 

उत्तराखण्ड के पुलिस महकमे में काम करने वाले वाले अमित श्रीवास्तव फिलहाल हल्द्वानी में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हैं. 6 जुलाई 1978 को जौनपुर में जन्मे अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी दो किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता). काफल ट्री के अन्तरंग सहयोगी.

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