उत्तराखण्ड में भगवान शिव के मंदिर सर्वत्र विद्यमान हैं. कहा जाता है कि हिमालय के कण-कण में भगवान महादेव का वास है. यहाँ भगवान शिव के ढेरों मंदिर हैं, इनकी देश-विदेश में बहुत मान्यता है. इन्हीं में से एक है टपकेश्वर का मंदिर. भगवान शिव का यह मंदिर देहरादून आईएसबीटी से लगभग 8 किमी की दूरी पर टौंस नदी की सहायक नदी देवधारा के पूर्वी तट पर है.
स्कन्दपुराण के केदारखंड में अध्याय 125 में इसकी महिमा का वर्णन मिलता है. मंदिर के पास ही द्रोंण गुफा है. इस गुफा को द्रोणाचार्य कि पत्नी कृपी का निवास तथा अश्वत्थामा का जन्मस्थल माना जाता है. स्कन्दपुराण के अनुसार यहाँ देवताओं द्वारा भगवान शिव की आराधना की गयी थी, इसी वजह से इस जगह को देवेश्वर के नाम से भी जाना जाता था.
पौराणिक कथा के अनुसार द्रोणाचार्य के पास गाय नहीं थी. अश्वत्थामा द्वारा अपनी माता कृपी से दूध देने का आग्रह किया गया. कृपी ने अश्वत्थामा को दूध देने में असमर्थता जाहिर की और उसे भगवान शिव की तपस्या करने का सुझाव दिया.
अश्वत्थामा द्वारा शिव की घोर तपस्या की गयी. उनकी कठोर तपस्या से शिव बहुत प्रसन्न हुए. शिव के प्रताप से यहाँ पर मौजूद गुफा से दूध टपकने लगा. गुफा से दूध टपकने के कारण ही इस जगह को दुग्धेश्वर के नाम से जाना जाने लगा.
कहा जाता है में कलियुग में इस जगह से दूध के स्थान पर पानी टपकने लगा और इसे टपकेश्वर नाम से जाना जाने लगा. इस मंदिर में एक रुद्राक्ष शिवलिंग भी है. इस शिवलिंग में विभिन्न मुखों वाले 5151 रुद्राक्ष लगाये गए हैं.
टपकेश्वर मंदिर में सावन के महीने में और शिवरात्रि के दिन भव्य पूजा-अर्चना का कार्यक्रम होता है. इन मौकों पर यहाँ बहुत बड़ा मेला भी लगता है.
यहाँ आने वाले पर्यटकों की सुविधा के लिए पर्यटक केंद्र भी बनाया गया है. दूर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए टपकेश्वर में एक धर्मशाला भी बनायी गयी है.
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