कथा

द्वाराहाट का चालाक बैल

द्वाराहाट कुमाऊं के सबसे पुराने नगरों में गिना जाता है. द्वाराहाट की भव्यता के चर्चे पूरे कुमाऊं-गढ़वाल में बरसों से रहे हैं. ऐसा नहीं की केवल द्वाराहाट नगर भव्यता और वहां के लोगों की चर्चा रही, द्वाराहाट का कौतिक, द्वाराहाट के झोड़े, द्वाराहाट का मिजात सबकुछ घुमावदार रास्तों से होता हुआ दूर-दूर के गावों तक चर्चा का विषय बनकर पहुँचता था.
(Dwarahat Kautik Katha Kahani)

मसलन द्वाराहाट में होने वाले स्याल्दे बिखौती के कौतिक के लिये कहा जाता था कि कौतिक से महिना दो महिना पहले से ही द्वाराहाट के आस-पास के दर्जियों के पास पानी पीने की फुर्सत भी न होती. द्वाराहाट के कौतिक में हर कोई बन ठन कर जाना चाहता था भले फिर कितनी ही आर्थिक तंगी क्यों न हो.

द्वाराहाट के मेले के लिये बुजुर्ग तो यहां तक कहते थे कि जब आदमी चारों से ओर हाथ पाँव मारकर भी पैंसों की जुगत न कर सकने वाला हुआ तो आंगन के बैल बेचने से भी हिचकता न था. इसलिए तो कहावत बनी- दोरयाल चाहे बल्द बैचे द्योल, कौतिक जरूर जाल.
(Dwarahat Kautik Katha Kahani)

द्वाराहाट के कौतिक और उसकी भव्यता के ही किस्से नहीं कहे जाते बल्कि द्वाराहाट के जानवरों की चतुरता के भी खूब किस्से कहे जाते हैं. एक किस्सा कुछ इस तरह है-

एक बार द्वाराहाट के कौतिक में दो बैलों के बीच शर्त लग गयी. एक बैल द्वाराहाट का दूसरा सोर का. शर्त थी सबसे ज्यादा पानी पीने की. अब आदमी होते तो माप-तौल का हिसाब होता बैल हुये सो दोनों धारे के सामने खड़े हो गये. दोनों ले लगाया धारे में मुंह.

सोर का बैल खूब पानी पीते रहा उसने इतना पानी पिया की उसका पेट फूल गया और उसकी मौत हो गयी. द्वाराहाट के बैल ने अपना मुंह खाली धारे में लगाये रहा पानी पिया नहीं सो उसकी जान भी बची और वह शर्त भी जीत गया.
(Dwarahat Kautik Katha Kahani)

नोट- स्थानीय मान्यताओं और लोकोक्तियों के आधार पर

-काफल ट्री फाउंडेशन

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

  • द्वाराहाट का चालाक बैल --यह कथा स्थान एवं पानी का श्रोत में परिवर्तन कर गढ़ी गयी प्रतीत होती है क्योंकि सोर का बैल दूर द्वाराहाट क्यों जाएगा? बैल या कोई जानवर धारे से निकलता पानी नहीं पीता है, बल्कि पानी से भरी एक मुह डूबने वाली जगह से पानी पीता है । मैंने आज से 60-65 वर्ष पहले अपने बचपन में जो सुना था उसमें एक बैल सोर का और दूसरा बैल गंगोली का था और पानी पीने की जगह रामगंगा नदी है। स्थान है रामगंगा नदी में आंवलाघाट पुल के नीचे । दोनों बैल नदी के पानी में मुह डालते हैं । गंगोली का चालाक बैल केवल मुह डाल कर पानी पीने का आभास कराता है ।

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago