इतिहास

‘द्वाराहाट’ उत्तराखंड के इतिहास की एक रोशन खिड़की

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये क्लिक करें – Support Kafal Tree

द्वाराहाट, उत्तराखंड के उन प्राचीनतम कस्बों में है जिसकी पहचान और उपस्थिति इतिहास के हर दौर में किसी न किसी रूप में रही है. उत्तराखंड के अधिकांश लोग इस कस्बे से परिचित हैं. सबसे महत्वपूर्ण हैं द्वाराहाट के भव्य प्राचीन मंदिर. कहा जाता है कि द्वाराहाट में 365 मंदिर और 365 ही नौलों का निर्माण नवीं और दसवीं शताब्दी में कत्यूरी राजा बसंत देव और खर्पर देव द्वारा किया गया.
(Dwarahat History Uttarakhand Kumaon)

द्वाराहाट में अधिकांश मंदिर एकल मंदिर के स्थान पर समूह के मंदिर के रूप में बनाए गए हैं. सर्वाधिक मंदिर जो 12 की संख्या में है वह ‘कचहरी मंदिर” समूह में हैं. कचहरी मंदिर के साथ ही कत्यूरी राजाओं ने अपने पूर्वज रतन देव और गुर्जर देव के नाम से भी यहां मंदिर समूह स्थापित किए हैं.

द्वाराहाट के इस मंदिर समूह से हम पूरे उत्तराखंड के प्राचीन राजनीतिक इतिहास को समझने की एक रोशन खिड़की पाते हैं. यह वह खिड़की है जो उत्तराखंड के विगत 14 सौ वर्ष का क्रमबद्ध इतिहास दिखाती है.

जैसा कि हम जानते हैं उत्तराखंड या यूं कहें हिमालय क्षेत्र का प्राचीन और शक्तिशाली राजवंश क़त्यूर जो की सूर्यवंशी राजा थे, अपनी समृद्धि के दिनों में यह राजवंश न केवल उत्तराखंड बल्कि पड़ोसी राज्य हिमाचल की कांगड़ा, किन्नौर और नेपाल तक फैला था. कत्यूरी राजा शिव भक्त और धर्मपरायण थे लेकिन सूर्यवंशी राजा होने के कारण इनके द्वारा निर्मित मंदिरों में सूर्य चक्र अनिवार्य रूप से स्थापित किया गया है. कटारमल अल्मोड़ा में तो सूर्य का मंदिर समूह भी है. उत्तराखंड में प्राचीन नागर शैली के इन मंदिरो में जोशीमठ का नरसिंह मंदिर, गोपेश्वर का गोपीनाथ मंदिर तथा रुद्रनाथ, तुंगनाथ सहित पंच केदार ऊखीमठ का ओंकारेश्वर मंदिर, आदि बद्री का मंदिर समूह, जागेश्वर मंदिर समूह आदि अधिक प्रसिद्ध हैं. यह भव्य और विराट मंदिर कत्यूरी राज्य की समृद्धि को भी दर्शाते हैं.
(Dwarahat History Uttarakhand Kumaon)

कचहरी मंदिर समूह :द्वाराहाट

बेसाल्ट के बड़े-बड़े पत्थरों को काटकर बनाए गए यह विशाल मंदिर, जिनकी बाह्य दीवारों पर शानदार मूर्तिकला का प्रदर्शन है जो अधिकांशत: गांधार शैली में देखी जाती है.पहली ही नजर में कत्यूरी राजवंश द्वारा निर्मित इन मंदिरों जिनका की निर्माण आठवीं, नवीं, दसवीं शताब्दी तक किया गया है, उनमें एक सामानता है. यह नागर शैली के मंदिर हैं. कुछ मंदिरों में कलश पर स्थानीय प्रयोग किए गए हैं.

मूर्ति निर्माण और मंदिर निर्माण की यह शैली औरंगाबाद (महाराष्ट्र) की एलोरा के मंदिर समूहों से मिलती है, जो की राष्ट्रकूट नरेशों द्वारा निर्मित हैं, जिनका निर्माण वर्ष भी छठी से आठवीं शताब्दी तक है. मंदिर और मूर्ति कला की यह समानता राष्ट्रकूट नरेशों और कत्यूरी राजाओं के नजदीकी संबंध को दर्शाती है. जिनके मध्य वैवाहिक संबंध होने के संकेत मिलते हैं.

कत्यूरी राजवंश जिसकी प्रारंभिक राजधानी  पैन-खंडा (जोशीमठ) थी . इस सुदूर हिमालय क्षेत्र में राजधानी दो कारणों से स्थापित थी, एक हिमालय की विराटता से प्राप्त भौगोलिक सुरक्षा, दूसरा तिब्बत के महत्वपूर्ण लाभकारी व्यापार पर पकड़.
(Dwarahat History Uttarakhand Kumaon)

कत्यूर राजा अपने विशाल एवं दुर्गम हिमालयी राज्य पर शासन अपने सशक्त क्षत्रपों द्वारा संचालित करते थे. अकेले पौड़ी गढ़वाल में 52 गढ़ों का उल्लेख हमें मिलता है. आठवीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा बद्रीनाथ में उत्तर के धाम की स्थापना किए जाने के बाद से इस क्षेत्र में शेष भारत का रुझान तेजी से बड़ा. जिसका लाभ स्थानीय गढ़ों ने आपस में गोलबंदी कर, कत्यूरी राजा के विरूद्ध दबाव बनाने में किया. पैन-खंडा के नजदीकी चांदपुर गढ़ी और बधानगढ़ी के क्षत्रपों की गोलबंदी ने कत्यूरी राजा वसुदेव को 849 ई० तक शासक था, उसके बाद के कत्यूरी शासक बसंत देव और खर्पर देव को 880 ई तक दबाव में रखा. चांदपुर गढी के क्षत्रप ने बद्रीनाथ यात्रा पर पहुंचे मध्य प्रदेश के गहरवार वंश के राजकुमार कनक पाल से अपनी बेटी का विवाह कर उन्हें यहीं राज्य करने का निमंत्रण दिया. इस प्रकार 889 ईस्वी में राजा कनक पाल ने टिहरी के परमार वंश की नीव उत्तराखंड के में डाली.

इस वैवाहिक संधि का परिणाम यह हुआ की गढ़वाल क्षेत्र से क़त्यूर राजा ने पैनखंडा जोशीमठ को छोड़कर अपनी राजधानी अपने मित्र लोहाबगढ़ (मेहलचौरी) क्षत्रप के समीप रामगंगा तट विराटनगर चौखुटिया में बना ली. यह अस्थाई ठिकाना था, राजधानी की तैयारी एक समतल और सुंदर भौगोलिक क्षेत्र द्वारिका पुरी अर्थात द्वाराहाट में हो रही थी. जहां 365 मंदिर और 365 नौले भव्य राजधानी के लिए तैयार हो रहे थे.
(Dwarahat History Uttarakhand Kumaon)

लेकिन उसके बाद भी कोई नदी न होने के कारण, पानी की कमी की आशंका के चलते, द्वाराहाट को कत्यूरी राजाओं की राजधानी होने का गौरव प्राप्त नहीं हुआ.अब राजधानी कोसी नदी के तट लखनपुर रामनगर पहुंच गई, जहां का मौसम कत्यूरों को रास नहीं आया तो कत्यूर फिर भागते हुए कार्तिकेयपुर, बैजनाथ पहुंचे.

कत्यूर वंश जब आठवीं, नौवी शताब्दी में कमजोर पड़ रहा था तो इसी वक्त राज्य की दक्षिण पूर्वी सीमा से चंदेल वंशी शासक सोमचंद ने राज्य में घुसपैठ की और चंपावत को अपनी राजधानी बना यहां चंद वंश का राज्य स्थापित किया .

चंद कमजोर पड़ते कत्यूरी शासन में लगातार विस्तार करते रहे, इस दो तरफा दबाव से कत्यूरी शासन अंततः अस्कोट पिथौरागढ़ पहुंचकर, पाल, संभल, देव, शाही पांच शाखों में टूट गया.
(Dwarahat History Uttarakhand Kumaon)

चंद राजाओं की राजधानी उद्यान चंद और कल्याण चंद ने 1560 के आसपास अल्मोड़ा स्थानांतरित की तब से टिहरी के परमार वंश के साथ छोटे-छोटे अंतर में लगातार सीमा पर संघर्ष रहा. 1709 में जगत चंद ने श्रीनगर को जीत लिया तो अगले ही वर्ष 1710 में फतेह शाह ने बहादुर सेनापति, पुरिया नैथानी के नेतृत्व में चंद राजा जगत चंद को बुरी तरह पराजित किया और द्वाराहाट क्षेत्र तक कब्जा कर लिया, पास में ही नैथाना गांव में 500 सैनिकों का मजबूत किला बनाया, नैथना गांव आज भी सेनापति पुरिया नैथानी की बहादुरी की गाथा सुनाता है.

द्वाराहाट क्षेत्र में थोडे़ समय तक टिहरी के शासकों का भी राज्य रहा. क्षेत्र अशांत रहा, बाद में प्रदीप शाह और दीपचंद के मध्य सुलह के बाद द्वाराहाट क्षेत्र स्थाई रूप से चंद शासकों के अधीन आया. इस संधि के बाद बेरीनाग के टम्टा और काष्ठ शिल्पी आर्य, गढ़वाल राज्य पहुंचे और ताम्र उद्योग तथा लकड़ी की नक्काशी में काष्ठ शिल्प ने यहां खूब विकास किया, गांव में बड़े भवन और बाखली का चलन बड़ा, कुमाऊं क्षेत्र के घरों में बड़े नारायण द्वार के विपरीत यहां तिबारी अधिक लोकप्रिय हुई.

द्वाराहाट जो कि 18वीं और 19वीं सदी में शांत बना रहा, यहां संस्कृति और आर्थिकी ने खूब तरक्की की 19वीं शताब्दी के प्रारंभ में ही पट्टी व्यवस्था लागू होने के साथ द्वाराहाट का यह गौरवपूर्ण क्षेत्र तीन पट्टियों में विभक्त हुआ. यहां द्वाराहाट के गौरव को रेखांकित करता हुआ स्याल्दे, बिखौती का मेला लगातार लोकप्रिय होकर स्थानीय अस्मिता का प्रतीक बन गया.

द्वाराहाट क्षेत्र में सामाजिक चेतना का उभार लगातार बना रहा, जिसके परिणाम स्वरूप जब 1920-21 में कुली बेगार का आंदोलन बागेश्वर से चला तो अंग्रेजों को द्वाराहाट क्षेत्र में लकड़ी कटान और ढुलान के लिए यहां कोई बेगार नहीं मिली. 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय यहां बड़े जुलूस निकाले गए. यहीं के प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मदन मोहन उपाध्याय के ऊपर उत्तराखंड का सबसे बड़ा ₹1000 का इनाम अंग्रेज सरकार ने रखा लेकिन वह फिर भी अंग्रेजों की गिरफ्त से बचकर मुंबई में झावेरी ब्रर्दर तथा उषा मेहता आदि के साथ मिलकर गुप्त आजाद रेडियो को संचालित करने लगे. इनके अतिरिक्त हरिदत्त कांडपाल, इंद्रलाल शाह, रामसिंह बिष्ट, भोलादत्त पांडे, भवानीदत्त, गुसाईं सिंह रावत, गंगादत्त फुलारा,आदिसहित 50 से अधिक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इस क्षेत्र में हुए.

इस प्रकार द्वाराहाट से हमें लगभग 1400 वर्ष का जीवंत और गौरवपूर्ण इतिहास मिलता है. यहां एक ऐसी शानदार रोशन खिड़की हमें मिलती है जिसके आलोक में हम उत्तराखंड के इतिहास को भी आसानी से समझ सकते हैं.
(Dwarahat History Uttarakhand Kumaon)

प्रमोद साह

हल्द्वानी में रहने वाले प्रमोद साह वर्तमान में उत्तराखंड पुलिस में कार्यरत हैं. एक सजग और प्रखर वक्ता और लेखक के रूप में उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफलता पाई है. वे काफल ट्री के नियमित सहयोगी.

इसे भी पढ़ें : देवताओं की भाषा के वाद्य हैं ढोल-दमाऊ

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

सेंट जोसेफ कॉलेज नैनीताल : देश का प्रतिष्ठित स्कूल

किसी भी समाज के निर्माण से लेकर उसके सांस्कृतिक एवं आर्थिक विकास में शिक्षा की …

1 week ago

चप्पलों के अच्छे दिन

लंबे अरसे से वह बेरोज़गारों के पाँव तले घिसती हुई जिन्स की इमेज ढोती रही.…

2 weeks ago

छिपलाकोट अंतरयात्रा : चल उड़ जा रे पंछी

पिछली कड़ी : छिपलाकोट अंतरयात्रा : वो भूली दास्तां, लो फिर याद आ गई सुबह…

2 weeks ago

बिरुण पंचमि जाड़ि जामलि, बसंतपंचमि कान कामलि

पहाड़ों में इन दिनों होता है आनन्द और उत्सव का माहौल. अगले कुछ दिन गाँव…

2 weeks ago

‘कल फिर जब सुबह होगी’ आंचलिक साहित्य की नई, ताज़ी और रससिक्त विधा

हमारी दुनिया एक फ़ैसला-कुन तरीके से उलट रही थी जब ये जुमला बहुत आहिस्ता से…

2 weeks ago

कसारदेवी के पहाड़ से ब्लू सुपरमून

Once in a blue moon, आपने अक्सर अंग्रेज़ी की इस कहावत का ज़िक्र किया होगा…

2 weeks ago