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ये है उत्तराखंड की विधानसभा का हाल

सरकार के ठेंगे पर विधानसभा
-जगमोहन रौतेला

पिछले दिनों हुए विधानसभा के मानसून सत्र में भाजपा सरकार के अनेक मन्त्रियों के बिना तैयारी के सदन में जाना अनेक गम्भीर सवालों को जन्म दे रहा है. विधानसभा के गलियारों में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि क्या मन्त्रियों के लिए विधानसभा की कार्यवाही का कोई मतलब नहीं है? क्या विधानसभा में गलतबयानी करने में उन्हें कोई शर्म तक नहीं है? क्या यह विधायिका के विशेषाधिकारों से खिलवाड़ करना नहीं है?

कभी देश के विधायिका की बहुत गरिमा थी. कोई मामला संसद व विधानसभा में उठाए जाने पर सम्बंधित सरकारों के सामने वैधानिक संकट तक खड़ा हो जाता था. सदन के अन्दर सांसदों व विधायकों द्वारा पूछे गए सवालों के गलत जवाब देने पर सम्बंधित मन्त्री को त्यागपत्र तक देना पड़ता था. इधर, कुछ समय से इन सदनों के अन्दर मन्त्री बिना किसी तैयारी के आकर सवालों के जवाब देने लगे हैं. उन जवाबों में वास्तविकता कहीं नहीं होती. मन्त्रियों द्वारा गलत जवाब दिए जाने पर जब बवाल होता है तो दूसरे मन्त्री सामने आकर मामले को सँभालने की कोशिस करते हैं. पर मन्त्रियों को सदन में बिना किसी तैयारी के आने और गलत बयानी करने पर कोई शर्मिंदगी नहीं होती. अगले दिन फिर कोई दूसरा मन्त्री अपनी वैधानिक जवाबदेही से इतर गैरजिम्मेदारी से सदन में विधायकों के सवालों के जवाब देने के लिए मौजूद दिखाई देता है.

उत्तराखण्ड विधानसभा का चार दिवसीय मानसून सत्र पिछले दिनों 18 से 24 सितम्बर 2018 तक चला. जिसमें विधानसभा की बैठक केवल चार दिन ही चली. लगातार तीन दिन 21से 23 सितम्बर तक विधानसभा की छुट्टी थी. चार दिन के इस सत्र में मन्त्री जिस तरह से सदन में विधायकों के सवालों के जवाब दे रहे थे, उससे ऐसा लगा कि जैसे विधानसभा की बैठकें अब केवल संवैधानिक औपचारिकता पूरी करने के लिए ही होती हैं. कोई भी उसकी गरिमा और जवाबदेही बनाए रखने को प्रतिबद्ध नहीं है. विधानसभा के मानसून सत्र के पहले ही दिन 18 सितम्बर को प्रदेश के सिंचाई व पर्यटन मन्त्री सतपाल महाराज व परिवहन व समाज कल्याण मन्त्री यशपाल आर्य विधायकों के सीधे से सवालों के भी जवाब नहीं दे पाए. प्रश्नकाल के दौरान भगवानपुर की कांग्रेस विधायक ममता राकेश ने समाज कल्याण मन्त्री यशपाल आर्य के सामने स्पेशल कम्पोनेंट प्लान के तहत विधायकों से प्रस्ताव न मॉगने का मुद्दा उठाया और पूछा कि योजना के तहत विधायकों से प्रस्ताव मॉगने की व्यवस्था है कि नहीं? इस सीधे से सवाल का कोई सीधा जवाब आर्य नहीं दे पाए, उन्होंने गोल – मोल जवाब देते हुए इसे अधिकारियों की जिम्मेदारी बता दिया. विपक्ष ने मन्त्री के जवाब पर कड़ा एेतराज जताया.

सल्ट के भाजपा विधायक सुरेन्द्र सिंह जीना के सवाल पर भी समाज कल्याण मन्त्री यशपाल आर्य जवाब देने में उलझ गए. जीना ने पूछा कि नन्दा देवी योजना के तहत सभी बैंकों में खाते खोलने की सुविधा कब से दी जा रही है? इसके लिए क्या अलग से कोई शासनादेश जारी किया गया है? आर्य इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे पाए. कुछ ऐसा ही हाल पर्यटन मन्त्री सतपाल महाराज का भी रहा. धनोल्टी के निर्दलीय विधायक प्रीतम सिंह पंवार व चकराता के कांग्रेस विधायक प्रीतम सिंह द्वारा टिहरी झील के बारे में पूछे गए सवालों पर ठिठक गए. पिरान कलियर के विधायक फुरकान अहमद ने पर्यटन मन्त्री से पूछा कि कलियर को क्या पांचवा धाम मेला घोषित करने की योजना है? इस सवाल पर भी पर्यटन मन्त्री सतपाल महाराज असहज हो गए. समाज कल्याण मन्त्री आर्य व पर्यटन मन्त्री सतपाल महाराज जब विधायकों के सवालों का ठीक से उत्तर नहीं दे पाए तो वित्त व संसदीय कार्य मन्त्री प्रकाश पंत को दोनों मन्त्रियों के बचाव में सामने आना पड़ा.

कांग्रेस विधायक काजी निजामुद्दीन ने विधायकों द्वारा नियम – 300 के तहत उठाए गए सवालों के जवाब समय से न मिलने का प्रश्न उठाया. उन्होंने कहा कि नियमावली के अनुसार, ऐसे प्रश्नों के जवाब एक महीने के अन्दर दे दिए जाने चाहिए, लेकिन अधिकारी ऐसा नहीं कर रहे हैं. उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल से इस बारे में स्पष्ट निर्देश देने की मॉग की. इस पर संसदीय कार्य मन्त्री प्रकाश पंत ने आश्वासन दिया कि इस बारे में सम्बंधित अधिकारियों को रिमाइंडर भेजकर कड़ाई से पालन करने को कहा जाएगा. सदन में दूसरे दिन 19 सितम्बर को गलत जवाब देने में फँसे वन व पर्यावरण मन्त्री डॉ. हरक सिंह रावत. सल्ट के भाजपा विधायक सुरेन्द्र सिंह जीना ने अपने तारांकित प्रश्न में सरकार से पूछा था कि क्या सरकार को इस बात की जानकारी है कि बेहद ही ज्वलनशील माना जाने वाला लीसा निरीक्षण भवनों में खुले में रखा जा रहा है? इससे निरीक्षण भवनोें में रात्रि विश्राम के लिए आने वाले अतिथियों, अधिकारियों व कर्मचारियों की जान को खतरा है. इस लीसे को कब तक सुरक्षित स्थानों में रखा जाएगा?

इस सवाल के जवाब में वन मन्त्री हरक सिंह रावत ने कहा कि कहीं भी निरीक्षण भवनों में लीसा खुले में नहीं रखा जा रहा है. वन मन्त्री के जवाब से असंतुष्ट भाजपा विधायक जीना ने कहा कि यह जवाब पूरी तरह से गलत है और अधिकारी सरकार को गुमराह कर रहे हैं. उन्होंने इसके जवाब में अपने विधानसभा क्षेत्र सल्ट के मानिला स्थित विश्राम गृह की तस्वीर सदन में रखी. जिसमें खुले में लीसा रखा हुआ नजर आ रहा था. उन्होंने कहा कि पिछले तीन वर्षों से यह लीसा खुले में रखा जा रहा है . सरकार की ओेर से इस तरह के जवाब दिए जाने पर विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने भी नाराजी जाहिर की. वन मन्त्री हरक सिंह ने भी इस बारे में गलती स्वीकार की, लेकिन तब तक विधानसभा अध्यक्ष अपनी प्रतिक्रिया जाहिर कर चुके थे. उन्होंने एक तरह से प्रदेश सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार द्वारा सदन में त्रुटिपूर्ण उत्तर दिए जाने से सरकार की उदासीनता नज़र आती है. सदन की कार्यवाही में गलत उत्तर देने वाले अधिकारियों के खिलाफ सरकार उचित कार्यवाही करे. यह बहुत ही गम्भीर मामला है. सरकार की ओर से इस बारे में संशोधित उत्तर दिया जाय. सदन में हर प्रश्न के गम्भीरता से जवाब दिए जाने चाहिए.

वन मन्त्री ने पीठ को आश्वस्त किया कि मामले की जॉच करवाई जाएगी और खुले में लीसा रखने की बात सही पाई गई तो सम्बंधित डीएफओ के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी. नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंदिरा ह्रदयेश ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि यह बेहद गम्भीर बात है. इससे पता चलता है कि सरकार का कामकाज किस तरह से चल रहा है? सत्तारूढ़ भाजपा के विधायकों को भी गलत ठहराया जा रहा है. पीठ की इस बारे में आज आई टिप्पणी ने प्रदेश सरकार को आइना दिखाया है. इसी दिन कांग्रेस विधायक ममता राकेश ने शून्यकाल में नियम – 58 के तहत गन्ना किसानों के बकाया भुगतान पर चर्चा की मॉग की. विधायक काजी निजामुद्दीन ने कहा कि चुनाव के दौरान 15 दिन में बकाया भुगतान का वादा भी जुमला बनकर रह गया है. जसपुर के विधायक आदेश चौहान ने चीनी मिल मालिकों पर जानबूझकर बकाया भुगतान न करने का आरोप लगाया. इस पर संसदीय कार्य मन्त्री प्रकाश पंत ने कहा कि सरकार शीघ्र भुगतान की व्यवस्था कर रही है. सहकारी, सार्वजनिक व निजी क्षेत्र के चीनी मिली पर भुगतान करने के लिए दबाव बनाया जा रहा है. संसदीय कार्य मन्त्री के जवाब से असंतुष्ट विधायक काजी निजामुद्दीन ने सरकार पर ढंग से जवाब न देने का आरोप लगाया और कहा कि कोई भी मन्त्री ढंग से जवाब नहीं दे रहे हैं. इससे पता चलता है कि प्रदेश सरकार किसानों की समस्या को कितनी गम्भीरता से ले रही है?

सत्र के तीसरे दिन 20 सितम्बर को माध्यमिक शिक्षामन्त्री अरविन्द पान्डे कई बार विपक्ष व सत्तापक्ष के विधायकों के सवाल का जवाब देने में अटकते नजर आए. घनसाली के विधायक शक्तिलाल शाह ने प्रश्न पूछा कि शहीद दिलबीर सिंह राणा राजकीय इंटर कॉलेज ठेला नैलचामी की बिल्डिंग कब तक बनेगी? इसके जवाब में माध्यमिक शिक्षा मन्त्री अरविन्द पान्डे ने कहा कि इस समय स्कूल में 11 कमरे हैं. मन्त्री के जवाब से असंतुष्ट विधायक शाह ने पलट कर रहा कि वे स्कूल का निरीक्षण कर चुके हैं. वहॉ केवल 6 कमरे हैं, जिनमें पढ़ाई हो रही है. अन्य कमरे बहुत ही जर्जर स्थिति में है. जिससे पान्डे बहुत असहज हो गए. नगर निकायों के सीमा विस्तार से सम्बंधित एक सवाल के जवाब में तो माध्यमिक शिक्षा व पंचायती राज मन्त्री अरविन्द पान्डे व शहरी विकास मन्त्री मदन कौशिक आपस में ही उलझ गए. जिस पर विपक्ष ने जमकर चुटकियॉ लीं.

धनौल्टी के निर्दलीय विधायक प्रीतम पंवार के एक सवाल के दौरान सहसपुर के भाजपा विधायक सहदेव पुंडीर ने एक अनुपूरक सवाल उठाते हुए पूछा कि सेन्ट्रल होपटाउन को पहले नगर पंचायत बनाया गया था, लेकिन न्यायालय के एक आदेश बाद वर्तमान में नगर पंचायत का शासनादेश खत्म कर दिया गया है. जिसके बाद यहां आज न तो ग्राम पंचायत है और न ही नगर पंचायत काम कर रही है. जिसकी वजह से यहॉ लोगों के किसी भी तरह के प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहे हैं. ऐसे में सेंन्ट्रल होपटाउन की जिम्मेदारी किस विभाग के पास है? पंचायती राज या फिर शहरी विकास? इस प्रश्न के जवाब में शिक्षा मन्त्री अरविन्द पान्डे ने इसे शहरी विकास विभाग के अन्तर्गत बताया. पान्डे के जवाब से शहरी विकास मन्त्री मदन कौशिक सहमत नजर नहीं आए. उन्होंने तुरन्त कहा कि जहाँ-जहाँ न्यायालय के आदेश से निकायों की स्थिति में बदलाव आया है, वहाँ पूर्व की स्थिति बहाल है. इस पर पान्डे आपत्ति जताने के लिए खड़े होने ही वाले थे तो विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि दोनों विभागों को इस बारे में समन्वय बनाते हुए लोगों की समस्या का समाधान करना चाहिए.

विधानसभा की बैठक के आखिरी दिन संसदीय कार्य मन्त्री प्रकाश पंत ही भाजपा विधायकों के निशाने पर आ गए. प्रश्नकाल के दौरान कांग्रेस विधायक ममता राकेश व भाजपा विधायक कुँवर प्रणव सिंह और पुष्कर धामी ने स्वास्थ्य से सम्बंधित कुछ सवाल किए. जिनके जवाब में पंत ने कहा कि हरिद्वार में किसी की भी मौत हैपिटाइटिस-सी व थैलीसीमिया से नहीं हुई है. पंत के इतना कहते ही चैम्पियन बीच में ही बोल पड़े की सरकार गलत बात कर रही है और सदन में झूठे आंकड़े दे रही है. चैम्पियन के इस आरोप पर एक बार सदन में सन्नाटा पसर गया. चैम्पियन ने तीन लोगों दलवीर कौर, अनूप कौर व झबेक सिंह के नाम बताते हुए कहा कि इन लोगों की मौत हैपेटाइटिस- सी से हुई है. सिडकुल में स्थानीय युवाओं के रोजगार से सम्बंधित पंत के ऑकड़ों को विधायक पुष्कर धामी ने पूरी तरह से गलत और सत्यता से परे बताया. उन्होंने सरकार से एक टीम बनाकर सिडकुल में श्रमिकों के हालात पर जॉच करवाए जाने की मॉग की.महिला सशक्तिकरण पर पूछे गए एक सवाल पर भी चैम्पियन ने राज्य मन्त्री रेखा आर्य के जवाब में कह दिया कि नंदा – गौरी योजना पूरी तरह से अव्यवहारिक है. इसे चलाकर क्या लाभ है? हाथी के दांत दिखाने के और खाने के और हैं. यमकेश्वर की भाजपा विधायक ऋतु खण्डू़ड़ी ने भी नंदा गौरी योजना पर सवाल उठाए. विभागीय राज्य मन्त्री रेखा आर्य के एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि पौड़ी जैसे बड़े जिले में सिर्फ 42 अभ्यर्थियों के लाभान्वित होने का ऑकड़ा बताता है कि कहीं कुछ गड़बड़ है.

सम्भवत: यह पहली बार है कि जब मन्त्रियों के जवाबों को विपक्ष ही नहीं, बल्कि सत्ता पक्ष के विधायकों ने भी झूठा करार दिया और मन्त्रियों को सदन में हर दिन कथित गलत बयानी पर असहज होना पड़ा. यह सरकार की कार्यप्रणाली पर गम्भीर सवाल खड़े करता है और इससे यह भी पता चलता है कि सरकार सदन की कार्यवाही के प्रति कितनी गैरजिम्मेदारी दिखा रही है?

 

जगमोहन रौतेला

जगमोहन रौतेला वरिष्ठ पत्रकार हैं और हल्द्वानी में रहते हैं.

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