समाज

शिक्षक दिवस : राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन द्वारा सम्मानित अल्मोड़ा के दयासागर मासाप

कलर्स चैनल के धारावाहिक बालिका वधू के कालजयी किरदार सांची से हर घर में पहचानी जाने वाली अल्मोड़ा की रूप दुर्गापाल टेलीविजन के रुपहले परदे की जानी-मानी अदाकारा हैं. शिक्षक दिवस के मौके पर रूप ने 1967-68 में शिक्षक के तौर पर महामहिम ज़ाकिर हुसैन द्वारा राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित अपने नाना दयासागर भट्ट को याद करते हुए यह आत्मीय संस्मरण ‘काफल ट्री’ के लिए भेजा है.
(Dayasagar Masap of Almora)

मेरे नाना श्री दयासागर भट्ट अल्मोड़ा के एक शिक्षित और संभ्रांत परिवार में पैदा हुए. उनकी मां सुंदर, सुशील गृहणी के तौर पर जानी जाती थीं और पिता श्री नाथ भट्ट शैक्षिक विभाग में ऑफिस सुपरिटेंडेंट थे, जिस ओहदे को उस वक़्त हेड क्लर्क के नाम से जाना जाता था. नाथ भट्ट गांधी के विचारों से प्रभावित एक मेहनती और ईमानदार व्यक्ति थे. मेरे नाना दयासागर भट्ट पांच बहनों के इकलौते लाडले भाई थे. उनके पिता की असामयिक मृत्यु की वजह से परिवार के सामने आर्थिक संकट पैदा हो गया. इस वजह से इंजीनियर बनने का ख्वाब पालने वाले नानाजी को शिक्षक बनकर संतुष्ट हो जाना पड़ा.

उन्होंने इतिहास से एमए किया और इसी विषय पर एक किताब भी लिखी. वे इतिहास के साथ-साथ अंग्रेजी के भी शिक्षक रहे. वे एक दयालु, ईमानदार और दूसरों की मदद करने वाले व्यक्ति होने के अलावा एक समर्पित शिक्षक, बेटे, पिता व पति भी थे.
(Dayasagar Masap of Almora)

अपनी बेटी (रूप की मां) का कन्यादान करते दयासागर भट्ट

आज भी उनके छात्र उन्हें बेहद सम्मान और अनुराग के साथ याद किया करते हैं. उनके योग्य छात्रों में से एक ने कुछ साल पहले उन पर एक लेख भी लिखा जो नवभारत टाइम्स हिंदी दैनिक में प्रकाशित हुआ. एक पौत्री के तौर पर मैंने इस लेख के लेखक को फेसबुक के जरिये ढूँढकर उनके इस बेहतरीन लेख के लिए शुक्रिया अदा किया और नानाजी के निधन की दुर्भाग्यपूर्ण सूचना भी दी.

उनके एक काबिल शिष्य प्रकाश जोशी, जो अल्मोड़ा के नगर पालिका अध्यक्ष हैं, उन्हें एक आदर्श, समर्पित, अनुशासनप्रिय शिक्षक के रूप में याद करते हैं. उनके पास नानाजी के बारे में दिलचस्प कहानियां हैं. वे बताते हैं ‘पड़ोसी होने के नाते कभी-कभी उन्हें इम्तहान की उत्तर पुस्तिकाओं के बण्डल को गुरूजी के घर तक पहुंचाने का मौका मिलता था और वे ख़ुशी-ख़ुशी अपने पसंदीदा शिक्षक के लिए ऐसा करते हुए उनके अगले निर्देशों का इंतजार किया करते थे.’

एक शिक्षक के रूप में दया सागर भट्ट की कोशिश रहती थी कि उनके छात्र बेहतरीन रूप से शिक्षित हों. उनके इन्हीं बेमिसाल शिक्षण कार्यों के लिए साल 1967-68 में उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. ज़ाकिर हुसैन द्वारा शिक्षकों को मिलने वाले सर्वोच्च पुरस्कार, ‘नेशनल अवार्डस फॉर टीचर्स’ से भी नवाजा गया. राष्ट्रपति पुरस्कार का मिलना उनके लिए तो एक उपलब्धि था ही उनकी नातिन होने के नाते यह मेरे लिए भी कम गर्व का विषय नहीं है.
(Dayasagar Masap of Almora)

राष्ट्रपति पुरस्कार में मिला प्रतीक चिन्ह

नवीं मुम्बई में रहने वाली उनकी भांजी जानकी जोशी, जो खुद एक शिक्षक रहीं, भी उनके जीवन के बारे में दिलचस्प किस्से बताती हैं. उनके अनुसार वे साहित्य प्रेमी थे और उर्दू साहित्य में उनकी विशेष दिलचस्पी हुआ करती थी. आगरा में अपनी ट्रेनिंग के दौरान वे मुशायरों में शामिल हुआ करते थे और ढेरों शेर और नज्में उन्हें जबानी याद थीं. उनका कहना है कि वे स्वभाव से बेहद विनम्र और परोपकारी थे और रिश्ते निभाना बखूबी जानते थे. वे अपने नाम के अनुरूप दया के सागर ही थे.

पत्नी कांति भट्ट और छोटी पुत्री सुधा के साथ

मेरे नाना बेहद मस्तमौला इंसान भी थे. उन्हें लोगों की मिमिक्री करने और उन्हें हंसाने में बहुत खुशी मिला करती थी. सीमित आय के बावजूद वे बहुत दक्षता के साथ घर चलाना जानते थे. यही नैतिकता व मूल्य उन्होंने अपनी बेटी, मेरी मां, डॉ. प्रोफेसर सुधा दुर्गापाल को भी दिए. नाना जी ने मेरी मां को बचपन में ही संस्कृत के कई श्लोक भी कंठस्थ करा दिए थे. यही मूल्य हमारी मां द्वारा हमें भी विरासत में दिए गए. संस्कृत श्लोकों को पढ़ने व जानने का विशेष अनुराग मुझे मेरे नाना और मां से ही मिला है.
(Dayasagar Masap of Almora)

अपने अंतिम सालों में नानाजी हमारे साथ ही रहे. उनसे मुझे किताबें पढ़ने और लेखन की आदतें मिलीं. मेरे बोर्ड इम्तहान में वे मेरे लिए कॉफी बनाया करते थे ताकि मैं अपनी पढ़ाई में फोकस कर सकूं. अपने आखिरी दिनों में उन्होंने मुझसे सवाल किया कि ‘क्या बोर्ड के इम्तहानों में 80 प्रतिशत ला पाओगी या नहीं?’ और ये मुझसे कहे उनके अंतिम शब्द बन गए. मेरा मानना है कि उनकी शिक्षाओं और आशीर्वाद की वजह से ही मैं इस इम्तहान में 86 प्रतिशत अंक हासिल कर इनका सपना पूरा कर पायी. बाद में इंजीनियर बनकर शायद मैं उनकी इंजीनियर बनने की ख्वाहिश भी पूरी कर पायी.   

सेवानिवृत्ति के बाद अल्मोड़ा के अपने घर में

   

अपने अंतिम दिनों में उन्होंने गद्य के कुछ टुकड़े भी लिखे. उनमें से एक लघु उपन्यास ‘दुर्गा-द डॉटर ऑफ़ हिमालयाज था’ और एक लेख ‘मैन, ड्यूटी एंड डिविनिटी.’ उनकी मृत्यु के कारण ये अप्रकाशित ही रहे. फिलहाल मैं इन्हें पढ़ रही हूं काश मैं इस राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त शिक्षक की इस इच्छा को पूरा कर पाती जिसने अपने कई छात्रों के दिल जीते.

इस शिक्षक दिवस पर नयी पीढ़ी को मेरे नानाजी की इस कहानी को जरूर जानना चाहिए. यही मेरी उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि है. (Dayasagar Masap of Almora)

लेख को अंग्रेजी में पढ़ें : Dayasagar ‘Masap’ of Almora who was honored by President Zakir Hussain: Teacher’s day

(रूप दुर्गापाल द्वारा अंग्रेजी में भेजे गए पाठ के आधार पर)               

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Sudhir Kumar

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