“मम्मी ! मम्मी !” दस साल का अनुज बालकनी से माँ को आवाज़ लगाता हुआ आया. Corona Tales from Smita Karnatak

“ क्या बात है बेटा ?  नाश्ते की तैयारी करते हुए किचन में व्यस्त विशाखा ने प्याज़ काटते हुए कहा.

“ नीचे फल वाला आया है, आपने कहा था ना कि कोई दिखे तो बताना. मैंने उन अंकलजी को रुकने को बोला है.” अनुज ने आँखें मटकाते हुए कहा.

“अरे वाह, मेरा बेटा तो बड़ा सयाना हो गया है.” विशाखा ने हाथ का काम छोड़कर टोकरी निकालते हुए कहा.

“ तुम यहीं रहना बेटा, नीचे नहीं आना, भीड़ नहीं लगानी है ना !” सीढ़ियाँ उतरते हुए विशाखा बेटे को ताक़ीद करती गई.

अनुज बालकनी में लटका माँ को देखने लगा. सोसाइटी के सेक्रेटरी चौधरी जी नीचे ही मिल गए. साइकिल निकालकर कहीं जाने की तैयारी में थे.

“भाईसाहब ! फल वाला आया है, आपको लेने हों तो भाभी को बता दीजिये.” कहती हुई विशाखा आगे निकल गई.

लेने तो हैं, आज मेरा भी मंगलवार का व्रत है. चौधरीजी बुदबुदाए. उन्हें दूध लेने जाना था. साइकिल पर दूध का डोल टाँगते हुए बीवी को आवाज़ लगाई, “अरे सुनना ज़रा ! मुजे हो री देर . भार फल वाला खड्या , जाके ले ले. नाम पूछ लियो पैले.”  साइकिल पर पैडल मारते बाहर निकले तो विशाखा फल छाँटकर तुलवाने लगी थी. चौधरी जी निकलते हुए अचानक मुड़े .

“ काँ रैत्ता है?” उन्होंने एक छोटा सा सवाल किया था.

 मास्क लगाए तराज़ू पर बाट रखते हुए फलवाले ने उत्तर दिया,”यहीं पास में, आजादनगर.”

“ नाम क्या है?” ये सवाल बड़ा था. बाट रखते हुए फलवाले के हाथ पलभर को ठिठके. विशाखा उसके ठीक सामने खड़ी थी. उसे जाने क्यों महसूस हुआ कि मास्क लगे चेहरे के भीतर भी फलवाले के होंठ नाम बताने से पहले एकबारगी कसकर भिंच गये हैं . जवाब देते हुए उसकी हिचक को देख विशाखा शर्मिन्दगी महसूस करने लगी. Corona Tales from Smita Karnatak

“ मोम्मद आलम.” कहकर उसने अंगूर तराज़ू में रखे.

“आप कैसे ले रये हो भाभीजी ? आपणे देख्या नई कि ये लोग कैसे थूक लगाकर बेच रये जगै जगै.” अब विशाखा को अपने पर शर्म आने लगी. ना उस ग़रीब को रोका होता ना उसकी ऐसी बेइज़्ज़ती होती.

“ ये तो अपनी अपनी सोच की बात है बाबूजी ! सब ऐसे नहीं होते. जो बात आप सोच रहे हो वैसी कोई बात नहीं है.” कहते हुए उसने विशाखा की तरफ़ आस के साथ देखा.

“पर तुम लोग कर तो रहे हो ना ऐसा, जगै जगै से जो है तमाम ख़बरें आ रईं, वो झूट्ठी हैं ?” चौधरी जी  तैश में आने लगे थे.

“ नहीं बाबूजी ! ऐसा नहीं है. मैं भी तो फँसा हुआ हूँ, रोज़ी – रोटी के लिए इस हालत में बाहर निकला हूँ .” उसका स्वर याचना में बदलने लगा था.

“तू भौत बहस करै मती अब मुझसे. निकल लै सीधा और अब दिख ना जइयो इधर दुबारा.” साइकिल खड़ी करके चौधरी जी फलवाले के पास आने लगे.

“ जाओ भय्या ! रहने दो, तुम चलो.” विशाखा ने झगड़े से बचने के लिए फलवाले को जल्दी से निकल जाने का इशारा किया.

“ कोई बात नहीं दीदी.” कहकर उसने झट से अपना ठेला आगे बढ़ा लिया.

“ इन लोगों से तो कोई सामान अब लेणा ई नई है. सब ना होत्ते ऐसे पर इनके जो बिरादर लोग ऐसा कर रे उन तक मैसेज तो पौंचना चइये.” बाहर निकल आई चौधराइन का साथ पाकर चौधरी जी बोले.

“ चलो मैं दूध ले आऊँ, तेरे पोते नै खीर खवाणी है आज.” चौधराइन की उँगली पकड़े अपने तीन साल के पोते को लाड़ से देखते चौधरी जी अपने बरसों पुराने दूधिये इक़बाल अहमद के डेरे की ओर चल दिये. Corona Tales from Smita Karnatak

-स्मिता कर्नाटक

स्मिता को यहाँ भी पढ़ें: रानीखेत के करगेत से कानपुर तक खिंची एक पुरानी डोर

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स्मिता कर्नाटक. हरिद्वार में रहने वाली स्मिता कर्नाटक की पढ़ाई-लिखाई उत्तराखंड के अनेक स्थानों पर हुई. उन्होंने 1989 में नैनीताल के डीएसबी कैम्पस से अंग्रेज़ी साहित्य में एम. ए. किया. पढ़ने-लिखने में विशेष दिलचस्पी रखने वाली स्मिता की रचनाएं काफल ट्री में लगातार छपती रही हैं.

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