आपकी आँखों में कुछ महके हुए से राज़ हैं
आपसे भी खूबसूरत आपके अंदाज़ हैं
आपकी आँखों में…
लब हिले तो मोगरे के फूल खिलते हैं कहीं
आपकी आँखों में क्या साहिल भी मिलते हैं कहीं
आपकी खामोशियाँ भी, आप की आवाज़ हैं
आपकी आँखों में…
आपकी बातों में फिर कोई शरारत तो नहीं
बेवजह तारीफ़ करना आपकी आदत तो नहीं
आपकी बदमाशियों के ये नये अंदाज़ हैं
आपकी आँखों में…
फिल्म घर (1978) का यह गीत दांपत्य प्रेम पर फिल्माया गया है. पति, पत्नी की प्रशंसा में इस गीत को गाता है.
गुलजार साहब की लिरिक्स में जीवन के कई रंग उभरकर सामने आते हैं. कई बार तो उनमें इंद्रधनुषी रंगों की आभा सी दिखाई पड़ती है. जीवन को व्यक्त करने का उनका नजरिया अलहदा सा रहता है, जो खूबसूरत तो होता ही है, दिल को भी गहराई से छू जाता है.
हिंदी-उर्दू मिश्रित हिंदुस्तानी जुबान में गीत के मिसरों को पिरोने का काम इतनी खूबसूरती से कम ही गीतकार कर पाए . ऐसे गीतों में उनके शायर व्यक्तित्व की झलक उभरकर सामने आ जाती है. इस मायने में वे अद्भुत हैं, उनमें यह हुनर उनकी अंतर्यात्रा से उपजा है.
गीतों की स्ट्रक्चरिंग में वे नए उपमान ढूँढकर लाते हैं. प्रायः कहीं दूर न जाकर, कुदरत के किसी कोने से खोजकर लाते हैं. इसीलिए उनके गीतों में प्रकृति का मानवीकरण बढ़-चढ़कर देखने को मिलता है.
इस गीत को एक बानगी के तौर पर लें, तो उनमें परस्पर उम्मीद और अपनापन झलकता है. बोल न सिर्फ मनोभावों को व्यक्त करते हैं, बल्कि दांपत्य जीवन के अटूट प्रेम को भी उजागर कर देते हैं.
उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दूसरी पुस्तक ‘अथ श्री प्रयाग कथा’ 2019 में छप कर आई है. यह उनके इलाहाबाद के दिनों के संस्मरणों का संग्रह है. उनकी एक अन्य पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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