बट माने लेकिन व्हट माने क्या, मैं तेरा साला तू मेरा क्या

मैं भी एक जमाने में गांव के प्राइमरी स्कूल में आगे से फर्स्ट आने वाला हुआ, पांच तक तो टॉप ठैरा, कोई रिकौर्ड नहीं तोड़ पाने वाला हुआ. इस वजह से मासाप का, गों के लोगों का, आमा-बाबू का लाड़ला हुआ मैं. पांच पास किया तो आमा-बाबू ने सोचा हम तो पढ़-लिख नहीं पाये, बेटा टॉपर रहा है नानछन से ही, तो कम खा- पीकर, कम-पहन के भी बेटे को इंग्लिश मीडियम में भर्ती करा दें तो भविष्य अच्छा बन जायेगा.

उन्होंने मेरा एडमिशन कर दिया गया मुनस्यारी बाजार के पब्लिक स्कूल में और मुनस्यारी में ही दादी (दादी की बहन) लोगों के साथ रहने लगा. मुनस्यारी आये पहला दूसरा दिन होगा, हर चीज अटपटी सी लग रही थ. गांव में केरोसीन तेल से जलने वाले लम्फू (ढिबरी) की धीमे आंच में रात का पढ़ना लिखना, खाना-पीना सोना होता था. इधर 50 वाट के पीले बल्ब से आंखें चौंधिया जाया करती थी. आदत जो नहीं ठैरी, कभी बिजली की रोशनी में बैठने की.

लैंडलाइन फोन पर फसक होते देखना तो समझ से बाहर ठैरा मेरे. इनकमिंग की घंटी बजते ही दादी कहने वाली हुई –  जा गणेश फोन उठाना तो. मैं डरके मारे फोन उठाकर वापस रख देने वाला हुआ और झूठ बोलने वाला हुआ – आच्चे फोन कटि ग्ये ऐप्फी (दादी अपने आप फोन कट गया).

एडमिशन के दो दिन बाद स्कूल के रावत सरजी ने कॉपी-किताबों की लिस्ट थमा दी और मां के साथ बाजार से चंद्दर बुकसेलर से 700 रूपये में बस्ता भर के सारी कॉपी-किताबें खरीद लाया. शाम को बुआ ने मेरी अंग्रेजी की किताब खोली और पुछने लगी गणेश इज ( Is ) माने क्या होता है? मैं चुप. फिर पूछा चल बता व्हाट ( What ) माने क्या हुआ? मैं फिर चुप. बगल में छिजू और उन का गोला हाथ में लेकर बैठी दादी बोली

बट माने लेकिन ,व्हट माने क्या,

मैं तेरा साला,तू मेरा क्या?

मैं इतना निर्बोध और नासमझ था कि मैंने बुआ को जवाब तो नहीं दिया लेकिन दादी की मजाक में कही बात को ध्यान से सुन लिया. कुछ दिनों बाद चाचाजी अपने कौलेज से छुट्टी में घर आये. रात का खाना खाकर सभी एक साथ बैठे थे तो चाचाजी ने कहा गणेश अपनी किताबें दिखाओ जरा. और मुझसे वही सवाल किये ,गणेश व्हाट मिन्स ( What means ) क्या होता है मैंने तपाक से जवाब दिया.

“बट माने लेकिन, वह्ट माने क्या,

तू मेरा साला, मैं तेरा क्या…

दादी, बुआ,चाचा सभी का मेरा जवाब पाकर हंस-हंस कर बुरा हाल हो गया. लेकिन मैं खामोश था, और सोच रहा था दादी ने यही तो बताया था. तब दादी ने कहा अरे स्कूल के दिनों में मजाक में कहा करते थे ये सब, मैंने तो यंही कहा. अंग्रेजी से हुई फजीहत की कहानी इतनी ही नहीं है मेरी.

जब सारी किताबें आ गयी तो स्कूल मे पढ़ाई शुरु हो गई. ग्रामर का पीरियड था धप्वाल सर टैन्स पढा़ रहे थे. मैं भले ही गांव में टॉपर रहा लेकिन 5 लाईन की कॉपी में कभी ए-बी-सी-डी लिखना न मासाप ने सिखाया और न ही कही से सीख पाया. ग्रामर, टैन्स तो क्याप्प हुआ मेरे लिए. उधर धप्वाल सर प्रेजेंट इनडेफिनेट खत्म कर प्रेजेंट कंटीन्यूअस में पहुंच गये और मैं बेबस ऊंघने में लगा था. उन्होंने जोर से आवाज दी मुझे  – गणेश तू सो रहा है?

मैं सकपकाकर आधी नींद से झसक कर बोला न… न… नहीं सर… नहीं तो…

सर जी ने ने बोर्ड पर बड़े-बड़े अक्षरो में लिख दिया बकरी घास खा रही है, और कहा चलो उठो गणेश इसका ट्रांसलेट करके बताओ.

मेरे दोनों ओर रमेश नित्वाल और दीपक बैठे थे जो बचपन से पब्लिक स्कूल में ही पढे थे तो धीमी आवाज में मेरी मदद के लिए बोले गोट इज इटिंग ग्रास… बोल गोट इज इटिंग ग्रास.

डर के मारे मैं दोनों को आधी अधूरी ही सुन पाया था, तो हड़बड़ाकर बोल दिया – सर बकरी इज ईटिंग घास. पूरी कक्षा में सब ताली पीटने लगे, धप्वाल सर पेट पकड़कर हंसने लगे. मैं एकदम हक्का-बक्का सा था कि आखिर मैंने ऐसा कौन सा बेवकूफाना जवाब दे दिया जो इस तरह माखौल उड़ रहा है. मैं सिर खुजलाकर चारों ओर हंसते चेहरों को देख रहा था. फिर मैंने खुद से सवाल किया – गणेश बेट्टे तू गया काम से, बकरी को अंग्रेजी मे तो कुछ और कहते होंगे, घास भी घास नहीं होता होगा अंग्रेजी में.   

लेखक के बचपन की तस्वीर

तब अपनी अज्ञानता पर रोना आ गया और पूरी कक्षा में आधे घंटे तक रोने लगा. उस दिन के बाद धप्वालसर ने मुझे बिना फीस लिए ट्यूशन दिया. अंग्रेजी से इस तरह आगे भी नौकरी तक जद्दोजहद चलते रही. लेकिन बढ़ती उम्र के साथ साथ हिंदी से रिश्ता और भी मजबूत होते रहा.

अधिक से अधिक भाषाओं की समझ होना बेहद लाभकारी है लेकिन अपनी बोली भाषा को प्राथमिकता देना उससे भी अधिक जरुरी और बुनियादी है.

-गणेश सिंह मर्तोलिया

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मुनस्यारी की जोहार घाटी के खूबसूरत गांव मरतोली के मूल निवासी गणेश मर्तोलिया फिलहाल हल्द्वानी में रहते हैं और एक बैंक में काम करते हैं. संगीत के क्षेत्र में गहरा दखल रखने वाले गणेश का गाया गीत ‘लाल बुरांश’ बहुत लोकप्रिय हुआ था.

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Girish Lohani

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