भुवन चन्द्र पन्त

गाली में भी वात्सल्य छलकता है कुमाउनी लोकजीवन में

किसी भी सभ्य समाज में गाली एक कुत्सित व निदंनीय व्यवहार का ही परिचायक है, जिसकी उपज क्रोधजन्य है और…

3 years ago

कुमाऊं के रणबांकुरों की विरासत है छोलिया नृत्य

कुमाऊं की बेजोड़ सांस्कृतिक परम्पराओं व लोककलाओं का अपना समृद्ध इतिहास रहा है. इन लोकपरम्पराओं की जड़ें हमें अपने इतिहास…

4 years ago

गन्ज्याड़ू: पथरीले पत्थरों के बीच उगने वाले पहाड़ी पेड़ के वजूद की दास्तां

वाह रे! तू भी क्या किस्मत लेकर आया इस दुनियां में. पथरीले पत्थरों के बीच से तेरा ये दीदार बहुत…

4 years ago

उतरैणी के बहाने बचपन की यादें

असौज का सारा कारोबार समेटकर जाड़ों में जब सारे काम निबट जाते तो हमारी बुब (बुआ) कुछ समय के लिए…

4 years ago

मेल-मिलाप पसन्द प्रताप भैया का अनमेल व्यक्तित्व: जन्मदिन विशेष

प्रताप भैया यदि हमारे बीच होते तो 88 वर्ष आज के दिन पूरे करते. दस वर्ष पूर्व संसार से विदा…

4 years ago

सिद्धों व सन्तों की तपोभूमि भी रहा भवाली क्षेत्र

भवाली, कुमाऊं क्षेत्र का प्रवेश द्वार होने के कारण देश के दूरदराज के क्षेत्रों से आने वाले परिब्राजक बद्रीनाथ, केदारनाथ…

4 years ago

अनपाशणि से पहले पिछले जन्म की सारी बातें याद रहती हैं

’प्राणो वा अन्नः’ अन्न ही प्राण है, यह वेदोक्त बात है. अन्न को ब्रह्म का स्वरूप भी कहा गया है,…

4 years ago

भाव अभिव्यक्ति की गजब क्षमता रखते हैं कुमाऊनी के एकाक्षरी शब्द

हिन्दी भाषा में जहां एक अक्षर के शब्दों का प्रयोग अधिकांशतः कारक के रूप में ने, से, को, का, के,…

4 years ago

सदियों पहले श्यामखेत का पूरा भूभाग एक झील था

भवाली, कुमाऊॅ की यात्रा के लिए एक मुख्य जंक्शन होने के साथ ही रामगढ़, मुक्तेश्वर, तितोली, हरतफा, निगलाट जैसी फल…

4 years ago

पहाड़ की बाखलियों के भिड़ महज घरों के आगे की निर्जीव दीवार भर नहीं हुआ करती

पहाड़ के खोईक भिड़ महज घरों के आगे की निर्जीव दीवार भर नहीं हुआ करती बल्कि यहां के पारिवारिक, सामाजिक…

4 years ago