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ब्रह्मलीन होने से पहले सिद्धि मां को लिखी नीम करोली बाबा की एक पंक्ति

श्रद्धालुओं में निराशा है कि कोरोना वैश्विक महामारी के चलते 15 जून को कैंचीधाम में आयोजित होने वाला मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा का विशाल वार्षिक समारोह पिछले वर्ष की भांति इस वर्ष भी नहीं हो पायेगा. वर्ष 1964 में मन्दिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के साथ प्रारम्भ यह वार्षिक समारोह प्रतिवर्ष निरन्तर व्यापक होता गया. सितम्बर 2015 में फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने जब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के उनके दौरे के दौरान अपने कार्यायल में आमंत्रित किया और भारत के महान सन्त नीब करौरी बाबा के चमत्कारों की जानकारी दी, तो कैंची धाम भारतीय मीडिया की सुर्खियों में छा गया. तब से तो कैंची धाम की जानकारी देश के उन लोगों तक भी पहुंच गयी जो आज तक उनकी शक्तियों से अपरिचित थे. जाहिर है कि यहां आने वाले भक्तों का सैलाब भी बढ़ता गया. पिछले वर्षों से तो 15 जून के अवसर पर आयोजित होने वाले मेले ने एक कुम्भ का सा रूप ले लिया और केवल एक दिनी प्रतिष्ठा समारोह में यहां आनेवालों श्रद्धालुओं की संख्या लाखों तक पहुंच गयी.
(Baba Neem Karoli 2021)

मेले के अवसर पर मालपुआ प्रसाद रूप में आने वाले श्रद्धालुओं को वितरित किया जाता है. कुछ वर्ष पूर्व तक तो मन्दिर परिसर में ही भक्तों को बकायदा पंक्तिबद्ध बिठाकर प्रसाद ग्रहण करवाया जाता था, और इसी उद्देश्य से मन्दिर परिसर के दक्षिणी छोर पर विशाल हॉल बनाया गया था , जिसमें एक बार में 4-5 सौ व्यक्तियों को बिठाकर प्रसाद खिलाया जाता था. लेकिन भक्तों की निरन्तर बढ़ती संख्या और एक दिन की अल्प समयावधि के कारण अब यह संभव नहीं हो पाया और भक्तों को 4-4 मालपुओं के लिफाफे और डिब्बा बन्द सब्जी के साथ व्यवस्थित तरीके से प्रसाद वितरित किया जाता है. व्यवस्था इतनी दुरूस्त की कोई छूटे भी न और दुबारा प्रसाद लेने का कोई सोच भी नहीं सकता. क्योंकि प्रसाद का वितरण निकास मार्ग पर किया जाता है. अगर कोई दोबारा प्रसाद लेने का लालच भी करे तो उसे पूरा चक्कर काटकर उसी स्थान पर आना होगा, जो भारी भीड़ को चीरते हुए संभव नहीं. प्रसाद वितरण का कार्य भी बाहर से आये श्रद्धालु करते हैं, जो सामान्य परिवारों के न होकर रसूखदार परिवारों से ताल्लुक रखते हैं. जब वहीं बैठकर प्रसाद करवाया जाता था, तब भी कई अमीर घरानों की महिलाओं को भण्डारे में जूठे थाली व गिलास धोते देखा जा सकता था. बाबा के दरबार में पहुंचने पर भक्त अपने ओहदे को मन्दिर के प्रवेश द्वार पर ही छोड़कर एक सामान्य व्यक्ति की भांति सेवा कार्य में संलग्न दिखाई देते हैं.

15 जून के समारोह के मौके पर मन्दिर परिसर के लिए प्रवेश द्वार तथा निकास द्वार अलग-अलग बने हुए हैं. कैंचीधाम मन्दिर के मुख्य गेट पर प्रवेश द्वार बना होता है, जहां निःशुल्क जूते रखने का बड़ा सा टैन्ट लगा होता है और मन्दिर कमेटी से जुड़े श्रद्धालु ही आपको टोकन नंबर देकर जूते संभालने का कार्य करते हैं. इसी तरह की व्यवस्था निकास द्वार पर भी है. लेकिन मन्दिर में प्रवेश केवल प्रवेश द्वार से ही किया जा सकता है. मन्दिर में प्रवेश के लिए शिप्रा नदी के ऊपर बने पुल को पार कर पग प्रक्षालन के लिए पानी के नल लगे हुए हैं.

मुख्य गेट पर प्रवेश करते ही सर्वप्रथम कीर्तनमण्डली के कक्ष से ’ श्री राम जय राम जय जय राम’ नाम कीर्तन की कर्णप्रिय धुन सुनाई पड़ती है. पहले यह कक्ष केवल भजन मण्डली के बैठने का स्थान था, बाद में इसी कक्ष में मां वैष्णो देवी की प्रतिमा प्रतिस्थापित की गयी. थोड़ा आगे बढ़ने पर शिव मन्दिर, लक्ष्मी नारायण मन्दिर, हनुमान मन्दिर के दर्शन होते हैं. हनुमान मन्दिर से निकलते ही दाहिनी ओर मुड़कर हनुमान मन्दिर के पीछे वह पवित्र गुफा है, जहां कभी क्षेत्र के प्रख्यात सोमवारी बाबा की गुफा हुआ करती थी. इसी गुफा में कैंचीधाम मन्दिर बनने से पूर्व बाबा नींब करौरी महाराज ने अपने चरण रखे और इस स्थान पर मन्दिर बनाने का संकल्प लिया.
(Baba Neem Karoli 2021)

प्राचीन गुफा के अन्दर शिला को आज भी उसी प्राकृतिक स्वरूप में सहेजा गया है, केवल चारों ओर दीवार से घेर कर कमरे की शक्ल दी गयी है. यहां वह पुरातन धूनी आज भी दर्शनार्थ उपलब्ध है. प्रारम्भिक वर्षों में इसी गुफा के बाहर, मन्दिर आने वाले भक्तों के लिए शुद्ध देशी घी का प्रसाद (आलू- पूड़ी) बना करता था. जिसका सिलसिला सुबह से रात्रि तक अनवरत जारी रहता.

आगे सीढ़ी चढ़ने पर दाहिनी ओर मन्दिर प्रबंधन का कार्यालय है, जहां मन्दिर के प्रबन्धक, विनोद जोशी बैठा करते हैं और पूरी व्यवस्था का संचालन यहीं से करते हैं. इसी से लगा वह कक्ष है, जो बाबा नींब करौरी की कुटिया हुआ करती थी. यहीं बहुत छोटे से कमरे में तखत पर बिछे कंबल में स्वयं भी कंबल लपेटे बाबा नींब करौरी के दर्शन हुआ करते थे. कमरे का आकार छोटा होने पर दक्षिण दिशा की ओर खुलने वाले झरोखे से ही बाबा का दीदार कर भक्त धन्य होते थे. गर्मियों में कभी-कभार मन्दिर कार्यालय के तखत पर भी महाराज जी बैठा करते. आस्थावान भक्त तो आज भी कहते हैं कि सच्चे मन से खिड़की से झांकने पर आज भी उन्हें बाबा दर्शन देते हैं. महाराज जी की शय्या आज भी इसी स्थान पर लगी है और नित्य इसकी पूजा-अर्चना होती है. हालांकि आज उसी के ठीक सामने भी महाराज की गद्दी लगी है, जहां भक्त श्रद्धावनत होते हैं. मन्दिर कार्यालय के ठीक सामने मां विन्घ्यवासिनी देवी का मन्दिर है जो बाद में बना.

सन् 1973 में बाबा नींब करौरी महाराज के देह त्यागने के बाद उन्हीं की कुटिया के सामने बाबा नींब करौरी महाराज का मन्दिर बना, जिसमें बैठी हुई मुद्रा में उनकी संगमरमर की प्रतिमा स्थापित है जो एकदम सजीव प्रतीत होती है. 1973 में बाबा नींब करौरी के ब्रह्मलीन होने के बाद सिद्धि मां ने मन्दिर परिसर की पूरी व्यवस्था स्वयं संभाली. सिद्धि माई को भक्तों ने वहीं सम्मान व श्रद्धा दी जो उनकी बाबा जी के प्रति थी. बताते है कि ब्रह्मलीन होने से पूर्व से बाबा ने सिद्धि मां के लिए एक पंक्ति लिखी थी –

मां, जहां भी तू रहेगी, वहीं मंगल हो जायेगा.  

लोगों का यह भी मानना है कि देह त्याग के उपरान्त महाराज जी अपनी सारी अलौकिक शक्तियों को सिद्धि मां को हस्तान्तरित कर गये थे. सिद्धि मां बाबा के देहत्याग के बाद भी अक्सर कहा करती थी कि महाराज जी अब भी हमारे बीच ही मौजूद हैं. दिसम्बर 2017 में सिद्धि मां के ब्रह्मलीन होने पर उनकी भी भव्य प्रतिमा स्थापित कर अलग पूजा कक्ष निर्मित किया गया है.

कैंची धाम मन्दिर में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है. यहां दूसरे मन्दिरों की तरह धूप-बत्ती करने व प्रतिमाओं के सम्मुख प्रसाद अर्पित करने पर रोक है. प्रसाद चढ़ाने के ईच्छुक श्रद्धालु अपनी लाई हुई प्रसाद सामग्री को मन्दिर के पुजारी के माध्यम से ही चढ़ा सकते हैं. दूसरे मन्दिरों की तरह यहां बाहरी पण्डों को पूजा अर्चना करने की अनुमति नहीं है और न मन्दिर के प्रवेश द्वार के अन्दर भिखारियों की भीड़ नजर आती है. इतनी एहतियात बरतने के कारण ही मन्दिर की सफाई व्यवस्था देखते ही बनती है. लगता है कि मन्दिरों में स्थापित देव प्रतिमाऐं कल ही प्रतिस्थापित की गयी हो. दानदाता चाहें तो अपनी श्रद्धा के अनुसार मन्दिर के द्वार पर रखी गयी दान पेटियों में अपना गुप्त दान कर सकते हैं.

इससे आगे बढ़ने पर मन्दिर की सीमा समाप्त होती है और मन्दिर तथा परिसर के बीच एक चहारदीवारी बनी है, जिसके उस पार केवल मन्दिर परिसर के लोगों को ही जाने की अनुमति दी जाती है, लेकिन 15 जून व गुरूपूर्णिमा जैसे विशेष अवसरों व नवरात्रों के दौरान चहारदीवारी के उस पार भी आम श्रद्धालु प्रवेश कर सकते हैं क्योंकि यज्ञशाला व भण्डारे का प्रसाद वितरण मन्दिर के दूसरी छोर पर ही होता है जो सभी के लिए खुला रहता है. चहारदीवारी की दूसरी ओर जाते ही एक विशाल उतीस का पेड़ है, जिसके नीचे एक बड़ी सी शिला पर नींब करौरी महाराज बैठा करते थे. आज भी श्रद्धालुओं के लिए यह एक पवित्र एवं पूजनीय स्थल है. बताते हैं कि जब महाराज जी का यहां पदार्पण हुआ, यह उतीस का पेड़ जर्जर अवस्था में सूखने की कगार पर था. महाराज ने अपने भक्त पूर्णानन्द तिवारी को आदेश दिया कि इसकी जड़ पर रोज पानी दिया करे और आज यह पेड़ पूरी तरह हरा भरा व स्वस्थ अवस्था में है.

इसी के ठीक सामने यज्ञ कुण्ड बना है. जहां शारदीय नवरात्र के अवसर पर नौ दिन तक दुर्गासप्तशती पाठ व हवन का आयोजन किया जाता है. इसी परिसर में बाहर से आने वाले भक्तों के लिए आवासीय व्यवस्था भी की जाती है तथा परिसर के अन्तिम छोर पर प्रथम मंजिल पर बैठकर प्रसाद ग्रहण करने वाला बड़ा हॉल बनाया गया है, जब कि भूमितल पर राशन आदि सामग्री का गोदाम तथा प्रसाद तैयार किया जाता है. 15 जून के अवसर पर तो कमरे मालपुओं से ठसाठस भरे रहते हैं.

इसी छोर पर मन्दिर परिसर का निकास द्वार है, जहां से विशेष अवसरों पर प्रसाद वितरण के साथ श्रद्धालुओं को विदा किया जाता है, जब कि अन्य दिनों में मन्दिर परिसर में दर्शन के उपरान्त प्रवेश द्वार से ही दर्शनार्थी लौट जाते हैं.

15 जून के वार्षिक समारोह की प्रतीक्षा न केवल श्रद्धालुओं को रहती है, बल्कि इस अवसर पर लगने वाले एक दिनी मेले में सूदूर क्षेत्रों से छोटे व्यवसायी अपनी दुकानें सजाते हैं मन्दिर के मुख्य गेट से नेशनल हाईवे पर दोनों तरह लगभग आधे किमी की दूरी तक दुकानें सजी रहती है. भवाली कस्बे व नैनीताल से राज्य परिवहन की विशेष बसों के अतिरिक्त प्राइवेट टैक्सियां संचालित होती है. कई वाहन स्वामी इस मौके पर श्रद्धालुओं के लिए निःशुल्क वाहन की सुविधा भी मुहैय्या कराते हैं. इस बीच पूरे पहाड़ को जोड़ने वाला नेशनल हाईवे भवाली से रामग़ढ़, नथुवाखान, क्वारब को डायवर्ट कर नेशनल हाईवे वाहनों से यातायात मुक्त किया जाता है. कैंचीधाम आने वाले सार्वजनिक वाहनों को भी लगभग 2 किमी पहले ही रोक दिया जाता है, जहां से श्रद्धालु पैदल ही कैंची धाम तक की यात्रा करते हैं. श्रद्धालुओं के लिए विभिन्न व्यवसायियों द्वारा जगह जगह पर शीतल पेय की निःशुल्क व्यवस्था रहती है.
(Baba Neem Karoli 2021)

यहां एक बात गौर करने की है कि कुम्भ मेले जैसे अवसरों पर पूरा प्रशासनिक अमला जहां वर्षों से पूरे लाव-लश्कर के साथ मेले की तैयारियों में व्यस्त हो जाता है, वहीं कैंची धाम मेले में मन्दिर प्रबन्धन ही पूरे मेले की प्रबन्धन व्यवस्था स्वयं करता है. केवल सुरक्षा व यातायात व्यवस्था के नाम पर प्रशासन कुछ दिन पूर्व एहतियातन निर्णय लेकर अपना सहयोग देता है. मेले के अपार जन समूह की तुलना में सुरक्षा व्यवस्था लगभग नगण्य होने के बावजूद आज तक के इतिहास में कभी कोई एक भी अप्रिय घटना इस दौरान नहीं घटी और सब व्यवस्थित तरीके से शान्तिपूर्वक सम्पन्न होता है. बाबा जी के भक्तों का मानना है कि इस मेले की पूरी व्यवस्था को महाराज जी स्वयं संभालते हैं.

इस वर्ष कोरोना वैश्विक महामारी के चलते मन्दिर के कपाट बाहरी दर्शनार्थियों के लिए बन्द कर दिये गये हैं. समस्त भक्त अपने घर से बाबा नींब करौरी महाराज तथा कैंचीधाम का स्मरण कर इस वैश्विक महामारी से मुक्ति व जनकल्याण की प्रार्थना करें और कामना करें कि महाराज समस्त विश्व को कोरोना मुक्त कर दें ताकि आने वाले वर्ष में 15 जून के समारोह में हमें उसी उत्साह व श्रद्धा के साथ शिरकत कर सकें.
(Baba Neem Karoli 2021)

भवाली में रहने वाले भुवन चन्द्र पन्त ने वर्ष 2014 तक नैनीताल के भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय में 34 वर्षों तक सेवा दी है. आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से उनकी कवितायें प्रसारित हो चुकी हैं.

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