कॉलम

यह धरती सबकी साझा है

आज सुबह आते-जाते दो-तीन बार उस पर नजर पड़ी. बुरी तरह भीगा हुआ था और जुगाली भी नहीं कर रहा…

6 years ago

सपने में भी भेड़ प्‍यासी है

शायदा  चंडीगढ़ में रहने वाली पत्रकार शायदा  का गद्य लम्बे समय से इंटरनेट पर हलचल मचाता रहा है. इस दशक…

6 years ago

सबसे खतरनाक है कामयाब लोगों का अलगाववाद

उन्हें इस देश की सड़कें नापसंद हैं. वो ज्यादातर सफर हवाई जहाज से करते हैं और हो सके तो हवाई…

6 years ago

फ़िल्मों की बहार उर्फ़ जाने कहां गए वो दिन – 3

(पिछली किस्त से आगे) और नजीर हुसैन हमेशा न जाने कैसे कोई एक बेहद अमीर आदमी होता है. उसकी बीवी…

6 years ago

फ़िल्मों की बहार उर्फ़ जाने कहां गए वो दिन – 2

(पिछली क़िस्त से आगे) सिनेमा की टिकटों के लिए खिड़की खुलने से काफी पहले ही लम्बी क़तार लग जाया करती…

6 years ago

फ़िल्मों की बहार उर्फ़ जाने कहां गए वो दिन – 1

जिस तरह पुराने हीरो अब हीरो नहीं रहे, एक दम ज़ीरो हो गए हैं या दादा-नाना बनकर खंखार रहे हैं,…

6 years ago

चलो दिलदार चलो – एक म्यूजिक डायरेक्टर थे गुलाम मोहम्मद

साहिर लुधियानवी ने लिखा था - “ये बस्ती है मुर्दापरस्तों की बस्ती”. ताज़िन्दगी आदमी इस मुगालते में जीता है कि…

6 years ago

उत्तराखण्ड की एक बीहड़ यात्रा की याद – 3

रूद्रप्रयाग जा रही रोडवेज की खटारा बस की सीट के नीचे बैग रख रहा था कि कातर भाव से आकाश…

6 years ago

आम के नाम

आम तो बस आम है. इसका कोई जवाब नहीं. खास ही नहीं, आम आदमी का भी मनपसंद फल. देश भर…

6 years ago

समाचारों के प्रस्तुतीकरण के वैचारिक चरित्र

पत्रकारिता की पाठ्यपुस्तकों में यह बताया जाता है कि हर समाचार में ‘कौन’, ‘क्या’, ‘कब’, ‘कहां’, ‘क्यों,’ और ‘कैसे’- का…

6 years ago