कॉलम

ताऊ जी का व्यक्तित्व इलाके में किंवदंती था

कुछ लोग बड़े करिश्माई व्यक्तित्व के होते हैं. जटिल से जटिल परिस्थिति में भी सटीक समाधान देते हैं. समाज से…

5 years ago

काले कव्वा : एक दिन की बादशाहत

मकर संक्रांति से ठीक एक दिन पहले ‘घुघते’ आदि पकवान बनाकर दूसरी सुबह बच्चों के द्वारा कव्वों को खिलाये जाते…

5 years ago

वो मेरा ‘काटो तो खून नहीं’ मुहावरे से जिंदा गुजर जाना

पहाड़ और मेरा जीवन – 64 (पिछली क़िस्त:  सुंदर लाल बहुगुणा से जब मिला मुझे तीन पन्ने का ऑटोग्राफ )…

5 years ago

पहाड़ से आये लोग हल्द्वानी में सम्पन्न घरों के बजाय आम घरों में मेहमान बनना पसंद करते थे

सन 80 से पहले पहाड़ी क्षेत्रों को मैदानी क्षेत्रों से जोड़ने वाली यातातया व्यवस्था वर्तमान के मुकाबले बहुत ही कम…

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काले कौआ : ले कौवा पुलेणी, मी कें दे भल-भल धुलेणी

पूस की कुड़कुड़ा देने वाली ठंड, कितना ही ओढ़ बिछा लो, पंखी, लोई लिपटा लो कुड़कुड़ाट बनी  रहती. नाक से भी…

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ठांगर घेंटने का सगुर होना चाहिए

कौन बनेगा हमारा ठांगर? जिसमें हम लगूले, हरे-भरे से, ऊपर चढ़कर अपनी सफलता पर इतरायेंगे. फल देंगे और फिर एक…

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दारमा घाटी के परम्परागत घर और बर्तन

दारमा इलाके में फाफ़र और उगल को भकार के साथ कुंग में भी जमा किया जाता. दारमा के दुमंजिले मकानों  में…

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साठ के दशक में हल्द्वानी का समाज

सन् 1970 तक शादी-ब्याह की रस्में भी यहां ठेठ ग्रामीण परिवेश में ही हुआ करती थीं. न्योतिये प्रातः पहुँच जाते…

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अल्मोड़ा के सिमतोला, कसार देवी और बिनसर में हुए ताज़ा हिमपात की तस्वीरें

2020 के पहले खूबसूरत हिमपात के बाद अल्मोड़ा के सिमतोला, कसार देवी और बिनसर का प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता…

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भय बिनु होय न प्रीति का पहाड़ी कनेक्शन – चेटक लगना

बचपन से कई ऐसे संवाद धार्मिक प्रसंगों में सुनते आये हैं जिनका आशय तो हम नहीं समझ पाते लेकिन अतार्किक…

5 years ago