अशोक पाण्डे

पहाड़ के जंगलों से आग के निशान नहीं मिटा सकेगी बारिश

शरद में पीले पड़े पत्तों वाला खूबसूरत लैंडस्केप नहीं यह भरपूर बरसातों वाली जुलाई में बिनसर के जंगल की कल की तस्वीरें है. (Burnt Binsar Forest in Rains)

संसार की दस सबसे सुन्दर जगहों का नाम लेने को कहा जाय तो मैं हर बार बिनसर का नाम लूंगा. अल्मोड़ा से करीब 25-30 किलोमीटर दूर स्थित बिनसर एक संरक्षित वन्य अभयारण्य है और अपने शानदार जंगलों के लिए जाना जाता है. हर महीने एक या दो बार न जाऊं तो जीवन अधूरा सा लगता है. (Burnt Binsar Forest in Rains)

जला हुआ बुरांश का पौधा

इन गर्मियों में समूचा उत्तराखंड अभूतपूर्व जंगली आग की चपेट में आया था. बिनसर भी आया.

तमाम सरकारी दावों और कोशिशों के बावजूद सच्चाई यह है कि बारिश न आती तो इस विकराल आग को बुझाने की कूव्वत और इच्छाशक्ति किसी के पास नहीं थी.

अब जब कि बारिशें आ गयी हैं और बिनसर इस मौसम में अमेजन के जंगलों जितना हरा-भरा हो जाया करता था, इस बार उसे देखना पीड़ादायक था. जले हुए जंगल की यह तस्वीर बताती है कि मनुष्य का लालच और निहायत गैरजरूरी कामों में पैसे तबाह करने वाली हमारी सरकारें प्रकृति को बचाने के लिए कितनी तत्पर हैं. पिछले सप्ताह भर मैंने ऐसे दृश्य पूरे कुमाऊं-गढ़वाल में इफरात में देखे अलबत्ता बिनसर की हालत देख कर मुझे रोना आ गया.

बिनसर में बुरुंशकुटी के नीचे का इलाका

अब होना यह चाहिए कि अगले साल आग न लगे इसके लिए ग्रामीण अंचलों में आग बुझाने की ट्रेनिंग दिया जाना अभी से शुरू कर दिया जाना चाहिए. जंगलात के अधिकारियों से मौक़ा मुआयना कर इन गर्मियों में हुए नुकसान का अंदाजा लगाने को कहा जाना चाहिए. मंत्री-नेताओं को भी अपना हाड़ हिलाकर कुछ दिन पहाड़ में पैदल घूमना चाहिए.

पिछले साल का बिनसर

लेकिन होगा असल में ये कि बारह बच्चों और तीन मास्टरों वाले सरकारी स्कूल के वृक्षारोपण कार्यक्रम होगा और उसमें अध्यक्ष जी का भाषण होगा. अगले साल जब मई-जून में फिर से आग लगेगी और जनता-सरकार-अफसर-मंत्री, सारे के सारे बरसातों के आने का इन्तजार करेंगे.

एक मौसम ऐसा भी तो आएगा न जब बरसात होगी ही नहीं. उसने हमारे पाप तारने का ठेका थोड़े ही लिया हुआ है!

-अशोक पाण्डे

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