चम्पावत जिले का अधिकांश भाग ‘काली कुमाऊं’ के नाम से जाना जाता है. बिशुंग गांव इसी काली कुमाऊं का एक ऐतिहासिक गांव है. बिशुंग गांव के लोग अपने शौर्य और पराक्रम के लिये दुनिया भर में जाने जाते हैं. बिशुंग गांव के विषय में मौजा भेटा के सांप का एक किस्सा कहा जाता है.
(Bishung Village of Uttarakhand)
कहते हैं एक समय जब राजा की पत्नी के गर्भ में अधिक समय तक बच्चा रह गया तो रानी कष्ट पाने लगी. राजा को उसके राजपुरोहितों ने इसका कारण मौजा भेटा के सांप का दोष बताया. यह सांप एक बड़े से पत्थर के नीचे था. पुरोहितों ने बताया की सांप के मारे जाने पर ही राजा को संतान प्राप्त होगी. राजा की सभा में आवाज उठी कि वह कौन वीर है जो इस काम को कर सकता है.
राज्यभर में जब किसी की हिम्मत न हुई तब दो भाइयों ने दरबार में आकर पूछा कि अगर उन्होंने सांप को मर दिया तो उन्हें क्या मिलेगा. राजा ने राजसभा में उच्चा पद देने की बात कही. तब बड़े भाई ने अपने अपनी गदा से बड़े पत्थर को तोड़ दिया और छोटे भाई ने अपनी कटार से सांप का काम कर दिया. बद्रीदत्त पांडे अपनी किताब ‘कुमाऊं का इतिहास’ में कहते हैं कि शिला फोड़ने वाले भाई के वंशज ही बाद में फर्त्याल और सांप मारने वाले भाई के वंशज महरा कहलाये.
(Bishung Village of Uttarakhand)
चंद वंश में महर धड़े और फर्त्याल धड़े पूरे कुमाऊं में सबसे शक्तिशाली यूं ही नहीं माने जाते हैं. इतिहास गवाह है जिनके साथ महर और फर्त्याल धड़े खड़े रहे सत्ता उनके ही नाम रही. ऐसी है बिशुंग की महान धरती. डॉ. रामसिंह अपनी किताब ‘राग-भाग : काली कुमाऊं’ में बिशुंग को धौनी जाति का भी मूल गांव मानते हैं.
बिशुंग गांव के लोगों में आज भी यह शौर्य उनकी बाहों में दिखता है. इस गांव में जब होली होती है तो उनके ढोल की धमक से पूरी काली कुमाऊं धमकती है. उनकी होली में आज भी शौर्य की गाथाएँ हैं. बिशुंग की होली देखिये:
अपने पुरखों का सम्मान लिये इस गांव का बच्चा-बच्चा अपनी थाती को बचाने की पुरजोर कोशिश में लगा दिखता है. आज भी बिशुंग गांव के लहलहाते खेत उनका अपनी धरती से प्रेम और स्नेह ही दर्शाते हैं. किसी भी धरती के बेटों, बुजुर्गों, युवाओं, बच्चों और महिलाओं का एक साथ अपनी थाती को लेकर ऐसा प्यार अब दुनिया में कम ही देखने को मिलता है.
(Bishung Village of Uttarakhand)
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