समाज

फतोड़ना कि गदोरना – अद्भुत है कुमाऊनी भाषा का शब्द भण्डार

भले कुमांउनी भाषा न होकर अभी तक बोली ही मानी जायेगी, क्योंकि न तो इस का मानकीकरण हुआ है और न व्याकरण. लेकिन लिपिबद्धता की सीमितता के बावजूद वाचिक परम्परा से पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित इस का शब्द भण्डार इतना विशाल है कि कभी कभी तो लगता है कि हर भाव को अभिव्यक्त करने के लिए जिस शब्द सम्पदा का अकूत भण्डार कुमांउनी में उपलब्ध है, शायद ही दूसरी भाषाओं में होगा। भाषा का कोई लिखित व्याकरण न होते हुए भी व्याकरण सिद्धांतों का भरपूर अनुशीलन हमारे पुरखों ने बखूबी शब्द रचना को गढ़ने में किया गया है. Beauty of Kumaoni Language

हिन्दी भाषा को ही लें – मूल शब्द,गन्ध अथवा बू शब्द में सु अथवा दुः उपसर्ग बनने से सुगन्ध और दुर्गन्ध या बद अथवा खुश उपसर्ग लगाने से बदबू व खुशबू शब्द बनता है. सुगन्ध अथवा दुर्गन्ध या खुशबू और बदबू अमूमन यही शब्द प्रयोग होते हैं, हर तरह की गन्ध अथवा बू के लिए. कभी कभी महक शब्द का इस्तेमाल होता है, इसके साथ न उपसर्ग प्रयुक्त होता है और न प्रत्यय. महक एक्र ऐसा शब्द है कि जो सुगन्ध व दुर्गन्ध दोनों में प्रयुक्त हो जाता है. यह व्यक्ति के अपने अनुभव पर निर्भर करता है कि वह उसके लिए सुगन्ध का काम कर रही है या दुर्गन्ध का. मिसाल के तौर पर कमरे में शराब की महक आ रही है या बस सिगरेट की गन्ध से महक रही है. इसमें शौकीन व्यक्ति को वह महक खुशबू हो सकती है, जब कि दूसरे को इसके विपरीत. Beauty of Kumaoni Language

यहां तुलना हिन्दी से हो रही है, देववाणी संस्कृत प्रसूता हिन्दी का शब्द विन्यास दूसरी भाषाओं के अपेक्षाकृत ज्यादा तार्किक व वैज्ञानिक है. लेकिन जब बात कुमाउंनी शब्द भण्डार की होती है तो इसका शब्द कोष हिन्दी से भी दो कदम आगे ही दिखता है.

घ्राण यानि सूंघने के लिए प्रयुक्त होने वाले विभिन्न कुमाउंनी का एक शब्द पर्याप्त है कि किस गन्ध की बात हो रही है. मसलन –  हन्तरैन (सूती कपड़ा जलने की गन्ध), बुकड़ैन (ऊनी कपड़ा जलने की गन्ध), चुरैन (पेशाब की गन्ध), टौंटैन (हल्दी की गन्ध), खोंसैन (मिर्च जलने की गन्ध), सितड़ैन (सीलन की गन्ध) इसी तरह कई शब्द हैं जो अपना अर्थ स्वतः स्पष्ट करने में सक्षम हैं. आप देखेंगे कि गन्ध संबंधी शब्दों में एक ही समान प्रत्यय का उपयोग हुआ है. यथा – सितड़ैन, चुरैन, हन्तरेन, बोकड़ेन, खौंसेन, सुनैन, जवैन, बसैन, गनैन, भुवैन, टौटेन, असवैन, भुटैन आदि.

ध्वन्यात्मक शब्द में भी एक शब्द वे हैं जो किसी ध्वनि की गंभीरता को दर्शाती हैं, ऐसे शब्दों में अन्तिम वर्ण पर अधिक जोर देने के लिए डेढ़ वर्ण का प्रयोग होता है. जैसे धातु से उत्पन्न होने वाली ध्वनि टन को कुमाउंनी में टन्न, वर्तन खनकने की आवाज को खन्न आदि आदि. इसमें प्रत्यय का उपयोग तो नहीं होता लेकिन अन्तिम वर्ण के पूर्व उसी वर्ण का आधा वर्ण जोड़ दिया जाता है. दूसरे ध्वन्यात्मक वर्ण व हैं जो प्रत्यय के साथ प्रयुक्त हुए हैं. यथा – कुकाट (कुत्ते अथवा इन्सान का अनर्गल प्रलाप), सुसाट (हवा की सरसराहट अथवा श्वासोच्छवास), दणदणाट (ओले अथवा मूसलाधार वारिश की ध्वनि), पड़पड़ाट (कागज मरोड़ने की ध्वऩि), टिटाट (रोने की ध्वनि) – ये शब्द भी क्रिया की जानकारी के लिए स्वतः स्पष्ट हैं. इन सभी ध्वन्यात्मक शब्दों में आप देखेंगे कि  आट प्रत्यय का ही उपयोग होता है. यथा – कुकाट, चुचाट, चिचाट, टुटाट, टिटाट, भुभाट, सुसाट, दणदणाट, सणसणाट, मणमणाट, पड़पड़ाट, भड़भड़ाट, तड़तड़ाट, खणमणाट आदि.

तीसरे तरह के शब्द वे हैं, जो क्रिया पद से संबंधित हैं. जैसे पीटने के लिए कुमांउनी में अलग अलग शब्द आते हैं. फतोड़ि (हाथ से पीटना), गदोड़ि (मुट्ठी या मुक्के से पीटना) आदि. इनमें भी हर तरह की पिटाई के लिए कुमाउंनी में अलग अलग शब्द बना है और उनके लिए प्रत्यय भी एक सा ही प्रयोग हुआ है. यथा- फतोड़ि, लझोड़ि, दमोड़ि, अमोरि, गदोरि, फचोरि, भचोरि इत्यादि. Beauty of Kumaoni Language

मजे की बात है कि उच्चारण में विचित्रता समेटे इस बोली को लिपिबद्ध करने के लिए देवनागरी लिपि ही पर्याप्त है, केवल शब्दान्त के वर्ण में हृस्व रूप ही कुमाउंनी बोली को अलग अर्थ दे देता है. दाद (हिन्दी में में अर्थ दाग) इसी के अन्त वर्ण को कुमाउंनी में हृस्व कर देने से दाद् (बड़ा भाई) हो जाता है. इसी तरह  आम का आम्, दीदी का दीदि, आदि आदि.

ये तो सिर्फ बानगी भर है. कुमाउंनी शब्द भण्डार की चर्चा की जाय तो एक शब्द में ही पूरा भाव समाहित रहता है. लेकिन आज की पीढ़ी में अपनी दुधबोली के प्रति जो उदासीनता दिख रही है, उससे इस बात की चिन्ता अवश्य है कि हम अपनी बोली की इस समृद्ध विरासत को कहीं धीरे धीरे खो न दें.

– भुवन चन्द्र पन्त

लेखक की यह रचना भी पढ़ें: ऐसे बना था नीमकरौली महाराज का कैंची धाम मंदिर

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भवाली में रहने वाले भुवन चन्द्र पन्त ने वर्ष 2014 तक नैनीताल के भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय में 34 वर्षों तक सेवा दी है. आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से उनकी कवितायें प्रसारित हो चुकी हैं

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