संस्कृति

उत्तराखंड के लिए कई मायनों में खास है लोकपर्व बसंत पंचमी

उत्तराखंडी समाज में बसंत पंचमी का महत्व उसी तरह है जिस तरह मकरैणी यानी मकर संक्रांति का. पंचमी पर स्नान आदि का महत्व है और इस दिन लोग मंदिरों में दर्शन करने जाते हैं. यह ऋतु पर्व ग्रामीण समाज के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि करीब छह माह के बाद फिर से खेतों में बुआई का काम इसी दिन से शुरू होता है.
(Basant Panchami 2022 Uttarakhand)

इस दिन सुबह स्नान करके घरों में लिपाई-पुताई होती है, पूड़ी-पकौड़ी बनाई जाती है, घर की चौखट पर हरियाली चिपकाई जाती है. इसके बाद घर की मुख्य महिला टोकरी में फूल, दीप, अगरबत्ती, खाद, पानी, हल्दी टीका, कुदाल रखकर खेत में जाकर हलजोत की रस्म करती हैं. जिन लोगों के बैल हुआ करते हैं वे इस दिन खेत में बैलों के साथ रस्म के तौर पर बुआई करते हैं. जिनके बैल नहीं होते, वे कुदाल से खुद ही खेत में एक जगह पर खुदाई कर वहां पर खाद आदि से जमीन तैयार करते और उसका घर से टोकरी में लाई गई पूजन सामग्री से पारंपरिक पूजन करते हैं.

इस तरह धरती मां से अच्छी पैदावार के लिए आशीर्वाद लिया जाता. इस दिन से उत्तराखंड के ग्रामीण इलाकों में खेती-बुआई का काम फिर से शुरू हो जाता है. महिलाएं खासकर इस दिन मिलकर अलग-अलग इलाकों में बने धाम में दर्शन भी करने जाती हैं. वहीं शहरों में हलजोत की रस्‍म भी करते हैं. यहां गमले और क्यारियों में हलजोत की रस्म शहर में भी की जा सकती है ताकि इस पर्व की इस खूबसूरत रस्म को हमेशा जीवित रखा जा सके.
(Basant Panchami 2022 Uttarakhand)

उत्तराखंड में बसंत पंचमी से बैठकी होली की शुरुआत हो जाती है. मां सरस्वती के पूजन के साथ लोग पंचमी के दिन पीले कपड़े पहनते हैं और पीला खाना खाते हैं.उत्तराखंड के ज्यादातर हिस्सों में बसंत पंचमी के दिन पीले और मीठे चावल बनाएं जाते हैं और लोग इसका सेवन करते हैं.

इस दिन से प्रकृति के सौंदर्य में निखार दिखने लगता है. वृक्षों के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और उनमें नए-नए गुलाबी रंग की कलियां और पत्ते मन को मुग्ध करते हैं. इस दिन को बुद्धि, ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती की पूजा-आराधना के रूप में मनाया जाता है

फ्योंली बुरांश का है खास महत्व

बसंत पंचमी के मौके पर पहाड़ों में बुरांस के फूल और फ्योंली के फूल का काफी महत्व है. बसंत ऋतु के आगमन पर इन फूलों को काफी शुभ माना जाता है पंचमी के दिन बच्चे इन फूलों को इकट्ठा कर गांव के घर की दहलीज पर रखते हैं और उसके सुख समृद्धि की कामना करते हैं.फलस्वरुप घर के बड़े बुजुर्ग इन बच्चों को दान दक्षिणा के रूप में उनकी टोकरी में गुड़,आटा चावल या कुछ रुपये इन्हें भेंट करते हैं. प्रथा के अनुसार बसंत पंचमी के बाद ही पहाड़ों में बुरांश के फूलों को इसके पेड़ से तोड़ा जाता है.
(Basant Panchami 2022 Uttarakhand)

ध्यांणियों का खास पर्व

बसंत पंचमी का त्यौहार विवाहित महिलाओं के लिए एक खास पर्व होता है. इसी दिन विवाहित महिलाएं अपने मायके जाती हैं और अपने परिवार वालों से भेंट करती हैं. इस लोक पर्व के मौके पर उन्हें कोई रोक-टोक नहीं होती है. मायके वाले भी अपनी ध्याणियों का बेसब्री से इंतजार करते हैं और उनके मायके आगमन की खुशी में कई तरह के पकवान भी बनाए जाते हैं जिनमें आरसे, गुलगुले, स्वाले, पकौड़े, खीर, मिठ्ठू भात आदि पकवान शामिल हैं. एक ही मायके से सभी विवाहित बहनें इस दिन खुशी-खुशी अपने मायके में इकठा होती हैं. और एक दूसरे से भेंट करती हैं.
(Basant Panchami 2022 Uttarakhand)

निधि सजवान

मूल रूप से टिहरी गढ़वाल की रहने वाली निधि सजवान डेनियलसन डिग्री कॉलेज के इतिहास विभाग में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं. निधि वर्तमान में छिंदवाड़ा, मध्य प्रदेश में रहती हैं.

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इसे भी पढ़ें : पहाड़ के लोक में ‘ढोल-दमाऊ’ का महत्व

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