स्वाधीनता संग्राम में अपना सर्वस्व निछावर करने की भावना से ओतप्रोत व गाँधी जी के विचारों से अत्यधिक प्रभावित बहुविध प्रतिभा के धनी वैद्य सीतावर पंत रहे. उनके सरल सहज प्रेम से भरे व्यवहार को आज भी नैनीताल और हल्द्वानी के उनके परिचित अपने दिल से लगाए हुए हैं.
(Ayurved Vaidya Nainital Haldwani)
सीतावर पंत जी का जन्म अल्मोड़ा जिले के दन्या ग्राम में वर्ष 1900 में हुआ. उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से आयुर्वेदिक शास्त्राचार्य की उपाधि प्राप्त की. छात्र जीवन से ही वह अंग्रेजी हुकूमत की खिलाफत करने लगे और देश के मूर्धन्य नेताओं के विचारों को जान अपने स्तर पर खूब सक्रिय रहे. धीरे धीरे उनका एक सबल व्यक्तित्व बना. वह सुदर्शन व्यक्तित्व के लम्बे आकर्षक थे.उनकी उपस्थिति गरिमामय थी.
स्वाधीनता संग्राम में उनकी सक्रिय हिस्सेदारी लगातार बढ़ती गयी. वह ब्रिटिश दमन के भुक्त भोगी रहे और अनेकों बार उन्हें जेल हुई. बाद में उन्होंने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ली संयुक्त उत्तर प्रान्त में वह मूर्धन्य नेता पंडित गोविन्द बल्लभ पंत के निकट सानिध्य में रहे. स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत पंडित सीतावर पंत उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने. वह नैनीताल डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के अध्यक्ष रहे.
(Ayurved Vaidya Nainital Haldwani)
आयुर्वेदिक चिकित्सा में उनका योगदान समस्त क्षेत्र के लिए लोकहितकारी रहा. उन्हें प्रयोगों में रूचि थी. उन्होंने आयुर्वेद के विभिन्न पक्षों का अध्ययन बहुत गहनता से किया था. वह अनुपान भेद के आधार पर हर रोगी का नुस्खा स्वयं तैयार करते. परंपरागत विधियों में समयानुसार परिवर्तन एवं संशोधन करते हुए उन्होंने आसव, अरिष्ट, रस एवं भस्म निर्माण में कुशलता प्राप्त की. उनके आसव व अरिष्ट के साथ च्यवनप्राश बहुत लोकप्रिय भी हुए और बाजार की अपेक्षा इनका मूल्य भी कम होता था.
सन 1925 में उन्होंने नैनीताल में तथा अगले ही वर्ष हल्द्वानी में कैलाश आयुर्वेदिक औषधालय खोला. रोग के लक्षण पहचानने की उनकी विशेषता व हर मरीज के लिए पृथक नुस्खे के संयोग से उनकी लोकप्रियता में वृद्धि होती रही. कैलाश आयुर्वेदिक फार्मेसी केवल आयुर्वेद की दुकान न थी यहाँ शहर के समृद्ध हों या सामान्य जन सामाजिक सरोकारों से जुड़ने का सन्देश व ऊर्जा भी पाते थे.
(Ayurved Vaidya Nainital Haldwani)
बच्चों को भी यहाँ आना बहुत पसंद था क्योंकि यहाँ उनका मनपसंद अनारदाना चूर्ण मिलता था. पंडित सीतावर पंत जी की व्यस्तता में उनके सुपुत्र फार्मेसी के समस्त कार्यों को देखते थे. वह बहुत आशावादी सरल और कुशल व्यवहार के थे. उनके बैठे होने पर कभी फार्मेसी खाली नहीं रहती थी.
कैलाश आयुर्वेदिक फार्मेसी में पंडित पीताम्बर पंत बहुमुखी प्रतिभा के बड़े ऊर्जावान पारखी वैद्य रहे. गंभीर स्थिति में वह शहर के किसी भी कोने में मरीज हो तुरंत पहुँच जाते. वह यहाँ के फॅमिली डॉक्टर होते और मरीज का पूरा इतिहास उन्हें याद होता. उनके आने से ही रोगी ठीक होने का अनुभव करता और बाकी रोग उन पुड़ियाओं और कागज का लेबल लगी भीतर रंगदार दवा भरी शीशियों से जिनका प्रयोग किया जाता. मरीज के घर से अगर कोई किशोर या बच्चा दवा लेने गया है तो उसे प्रेम से अनारदाना चूर्ण खिलाया जाता तो कभी चटपटी बटी. वैद्य पंडित पीताम्बर पंत अपने व्यवहार और ज्ञान से सबका दिल जीत लेते.
पंडित सीतावर पंत ने स्वानुभूत परीक्षण पर खरी उतरी औषधियों के नुस्खों को लिखित रूप से भी प्रस्तुत किया. उनके द्वारा लिखी गयी ‘समस्त रोग प्रमेह यमम’ पुस्तक प्रकाशित हुई जिसमें प्रमेह के लक्षणों को परंपरागत व प्रसिद्ध वैद्यों के सूक्तों व उनकी टीका के साथ वर्णित किया गया है. इसके दूसरे भाग में विभिन्न रोगों की विस्तृत चर्चा है. जिसमें मधुमेह, स्वप्नदोष सुजाक व गनोरिया जैसी बिमारियों पैर विवेचन है जिनके नाम से ही रोगी भयभीत हो जाते रहे. मूत्र परीक्षा एवं मूत्र रोगों के निदान पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है. पुस्तक के निष्कर्ष प्रमेह के निवारण से सम्बंधित हैं. जिनमें हिमालय में पायी जाने वाली भेषजों के संयोग से बनी औषधि के गुण धर्म विस्तार से बताये गए हैं.
(Ayurved Vaidya Nainital Haldwani)
जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.
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