यह तो होना ही था!
उत्तराखंड में पर्यटन को बढ़ावा देने और सरकार की आय में बढ़ोत्तरी करने के नाम पर अब विख्यात हो चुकी जिस शादी के लिए औली के बुग्याल को किराए पर चढ़ा दिया गया था, वहां अब उसके कुपरिणाम दिखाई देने शुरू हो गए हैं. (Auli Overflows with Excreta after Wedding)
औली में शादी कीजिये और बद्री-केदार के प्रांगणों में डिस्को
प्रदेश भर के अनेक हलकों से इस आयोजन को न किये जाने की मांग उठी थी लेकिन सरकार के कान पर जूँ तक न रेंगी और उसने जो करना था वही किया. न्यायालय ने भी इस मामले में देरी हो चुकने की बता कहते हुए कुछ ख़ास एक्शन नहीं लिया. (Auli Overflows with Excreta after Wedding)
मजा बड़ी चीज है चचा! पहाड़ से हमें क्या लेना देना!
एक सुरम्य और शांत हिमालयी चारागाह को अमीरों की ऐशगाह बना देने के क्या दुष्परिणाम होंगे इस बाबत भी कई बातें कही जा चुकी थीं अलबत्ता जैसा हमने पहले कहा जिसने जो करना था वैसा किया.
अखबारों में उस कचरे और कूड़े के बड़े-बड़े ढेरों की असंख्य फोटो छपे अभी बहुत समय नहीं बीता है, जिसे गुप्ता ब्रदर्स वाली इस महंगी शादी ने बतौर तोहफा उत्तराखंड वालों के लिए छोड़ा था कि हालिया रिपोर्टें और भी खौफनाक मंजर दिखला रही हैं.
औली में करोड़ों के तमाशे के बाद पहाड़ का क्या होगा?
बरसातों का मौसम आ चुका है. पहली ही बरसातों के बाद औली में जो दिख रहा है उसे देख कर वितृष्णा कम हो रही है, लज्जा और असहायता अधिक महसूस हो रही है. शादी में आये मेहमानों के निपटान के वास्ते सीवर के जो गड्ढे बनाए गए थे वे अब बजबजा कर बाहर निकल आये हैं और मेहमानों द्वारा छोड़ा गया मल खुले में बहता हुआ ढलानों पर उतर रहा है. जाहिर है बदबू तो होगी ही लेकिन इस के कारण हो सकने वाली संक्रामक बीमारियों के बारे में सोचें तो रूह काँप उठती है.
यकीन न आ रहा हो तो आज के स्थानीय अखबार उठाकर देख लीजिये.
पर्यावरण को आज दुनिया भर की सरकारों के एजेंडे के टॉप पर होना चाहिए था! ख़ास तौर पर देश भर को जीवन देने वाले हिमालय में किसी भी तरह का एक भी कदम उठाने से पहले सौ बार सोचा जाना चाहिए था! लेकिन ये आसानी से समझ में आ सकने वाली वे बातें हैं जो नीति-निर्धारकों के पल्ले न जाने क्यों नहीं पड़तीं.
जय देवभूमि! जय उत्तराखंड!
उत्तराखंड में वैडिंग डेस्टिनेशन की संभावनाएं
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पर्यावरण बचाने के नाम पर अरबो का वारान्यारा तो हो ही रह है, अब उत्तराखंड की अपनी सरकार ने औली में जो किया उसकी जितनी निंदा की जाए कम है। हिमालय तफरीह करने और भौंड़े मनोरंजन का स्थान कतई नहीं। केदारनाथ त्रासदी से यदि नही सिख पाए तो इत्मिनान रखिए अभी बहुत कुछ देखना बाकी है।