समाज

वो पहाड़ी लड़का अब वापस लौटना चाहता है

सभी बंधनों को दरकिनार कर दिल्ली में रह रहा वो पहाड़ी लड़का अब अपने गांव वापस लौट जाना चाहता है. उसने कभी नहीं सोचा था कि सपने पूरे होने के बाद इतने उबाऊ हो जाते हैं. Dream of Returning Home

उसे याद आते हैं वह दिन जब वह एक हथिया गाड़ी (एक हाथ से चलने वाली गाड़ी) लेकर पहाड़ के उबड़-खाबड़ रास्तों में मीलों दौड़ जाया करता था. हांफता था लेकिन थकता नहीं था. अब बगैर हांफे थक जाता है. कभी टिप्पर चलाना उसका सबसे बड़ा सपना था, आज उसे लग्जरी गाड़ी चलाने में भी बोरियत महसूस होती है. Dream of Returning Home

अब वो मौके तलाशता है पैदल चलने के लेकिन समय उसे इसकी इजाजत नहीं देता. पहाड़ों में बेपरवाह अवारागर्दी करने वाला वह लड़का अब 50 हजार रुपये के एक मोबाइल की कैद में है. मोबाइल ही उसे उठाता है और सोने का आदेश भी देता है. मां रातभर खांसे उसकी नींद नहीं टूटती लेकिन मोबाइल का हल्का सा वाइबरेशन किसी भी समय उसे चौंकन्ना कर देता है.

कब किससे बात करनी है ये भी मोबाइल ही बताता है. उसके मोबाइल में दोस्त, चाचा, चाची, भाई, भाभी, मौसी सबके नंबर फीड हैं लेकिन इन सबसे बात करने की इजाजत केवल त्योहारों में या किसी के मरने पर है. वह अक्सर अपने पहले मोबाइल को याद करता है जो उसे बड़ी मिन्नतों के बाद अपने दोस्त से मिला था.

इस मोबाइल पर वह अपनी मासूका को घंटों बात करता था. तब उसने सोचा न था कि वह एक दिन मोबाइल की कैद में होगा. मोबाइल की घंटी, गाड़ियों के हॉर्न और स्ट्रीट लाइटों की चमक अब उसे खीझ से भर देते हैं. अब उसे अच्छी नींद के लिए दो पैग लेने पड़ते हैं.

पहले वे चांदनी रात में खिड़की से पहाड़ों को निहारता हुआ जाने कब सो जाता था? सुबह कहीं पहाड़ के पीछे से निकलने वाला सूरज उसे बगैर आवाज किए उठाता था. डांड़े-कांठों में फैली सूरज की लालिमा उसे दिनभर ऊर्जावान रखती थी.

आजकल वे ज्यादा खाने से भी बचता है. शहरों में अक्सर लोग अब खाने से बचते हैं. ऐसे में उसे याद आता चाची का भदेली (कड़ाई) में बना भटिया, मां का बनाया लेटा (दूध में आटा मिलाकर बनने वाली डिश) और गाढ़ा रायाता जो उसकी दादी लाई डालकर बनाया करती थी.

इन सबसे ज्यादा याद आता है महीने में एक-दो बार ही बनने वाला मीट (मटन) उसके पापा बनाया करते थे. इसकी अलग ही खुशबू होती थी. लंच में मीट बनने की खबर सुन उसे नाश्ते के तुरंत बाद भूख लग जाती थी. अब वह नॉनवेज भी कम खाता है.

अब उसे भूख भी नहीं लगती, अब न उसकी कोई इच्छा है, और अब वे कोई सपना भी नहीं देखता था क्योंकि सपने उबाऊ होते हैं. वे वास्तविकता में जीना चाहता है अपनी मिट्टी की खुशबू के साथ केवल अपने गांव की मिट्टी के साथ.

राजीव पांडे

राजीव पांडे की फेसबुक वाल से, राजीव दैनिक हिन्दुस्तान, कुमाऊं के सम्पादक  हैं.

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