त्रिपुरी सुंदरी मंदिर की घंटियों के साथ देवी के मंत्र गुनगुनाता मूंगफली करारी की घाल और आरती के साथ हारमोनियम ढोलक की संगत लिए भजन के स्वर.
नंदा देवी मंदिर के प्रांगण में शाम की गुनगुनी धूप, नंदी का चबूतरा और आशीर्वाद की मुद्रा में गुस्सैल बाबा, बड़ी शांति से अपने में गुम चेहरे आंखों में चमक और चेहरों में मुस्कान. संध्या के समय की पूजा और सीढ़ी से उतरती आशीष पाने की इच्छुक आमा. दीवारों पर उत्कीर्ण भित्तिचित्र. पूजा पाठ का हर सामान चुटकियों में और अपनी सरहद पर पूरी निगहबान श्वान जोड़ी जो किसी भी वर्णभेद धर्म-कर्म भेद से परे है.
हां तराई भाबर से आई सब्जी भी है और सस्ता रेडीमेड भी. कुकांट मचा रहे टी.वी. से हट जरा घर से बाहर आओ की चेतावनी देते बंदर भी, इस घात में कि नहीं माने तो केबिल के तार में झूला झूलेंगे.
हां जबान में रस घोलने को जलेबा भी तैयार है. गर्मी होइ गई है यहां सब मिलता है मैक्सी, अंब्रेलाकट, पेटीकोट, टूपीस. बैग फट गया कोई बात नहीं, हां हां चप्पल भी रिपेयर होगी. बैल्ट भी जितना चाहो उतना कस लो.
कॉमरेड की हर लाल नीली हरी क्रांति के बारे में पता है तो क्या? लिखा जा रहा छप रहा पढ़ा जा रहा पूरा ज्ञान भी समाया है यहां. अपच नहीं होगा षटरस चूरन हाजमा गोली सब है.
बड़ी पुरानी दुकान है जनाब. मौलाना की दाढ़ी जैसी पकी. देवी देवता सब एक छत के नीचे तो मसाले भी. तांबे की कलाकारी के तो कहने ही क्या? अब दिनमान भर सामान हम भी बोकने वाले हुए. थोड़ा मुस्का भी लेते हैं.
मुंह तो चलता ही रहता है जबान फिसलती भी है तो कोई परेशानी नहीं. रागदरबार से लेकर राग मल्हार के गुटके मसाले रामपुरी बनारसी तमाखू चिलम वाला. खमीरा सब मौजूद और पुराने ढब के बब्बन पनवाड़ी तो रहे नहीं पर बंगला पान चलता ही है. मुझे भी दे ही जाता है कुछ न कुछ हर कोई राम के नाम पै.
कितने संगीत रसिक आए ठैरे महाराज अल्मोड़े में. अभी भी बंसी की तान मुरली के स्वर, तबले की धा-तेटे हर बीसवें घर से सुनाई दे जाएगी. घर लौट रहे हो तो जलेबी ले जाओ गुरु. गरमा गरम है.
बस बस हो गया अब.
शाम भी ढल गई.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…