वामन चोरधड़े मराठी लोकजीवन और लोकसाहित्य के गंभीर अध्येता रहे हैं इसलिए ग्रामीण जीवन का यथार्थ चित्रण उनकी कहानियों में पाया जाता है. समसामयिक घटनाओं को अपने कथ्य का आधार बनाते हुए उन्होंने सामाजिक राजनीतिक गतिविधियों का शाब्दिक जीवन प्रतिबिम्ब प्रस्तुत किया. उनकी रचनाओं में दुर्बल उपेक्षित जनों के जीवन में घट रही विदग्धता और दाहकता का चित्रण बहुत प्रभावपूर्ण तरीके से किया गया है.
(Aaghat Drama Performance in Pithoragarh)
सन 1935 के आसपास से मराठी कहानी में बदलाव की आहट का सूत्र पात वामन चोरधड़े कर चुके थे. कॉलेज में शिक्षा प्राप्त करते हुए उन्होंने 1932 में अपनी पहली लघु कहानी ‘अम्मा ‘ लिखी. तब से गाँव की समस्याओं को उकेरती उनकी कहानियाँ वागीश्वरी, मौज और सत्यकथा जैसी लब्ध प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में छपती रहीं.
1945 के आसपास दुनिया मंदी के संकटों के साथ विश्वयुद्धों की विभीषिकाओं से जूझ रही थी. शहरीकरण और औद्योगीकरण के चलते ग्रामीण जीवन में उथल पुथल होने लगी थी और भारत में स्वाधीनता संघर्ष अपने चरम उत्कर्ष में था. पर मराठी कहानी साहित्य इन सबसे हट मध्यमवर्गीय पारिवारिकता से आबद्ध था. उसे ऐसी स्थिति से मुक्त करने की दिशा में पहल करने की कोशिश कुसुम देश पांडे और वामन चोरधड़े ने की.
आजादी के साथ ही क्योँ और कैसे हिन्दू और मुसलमानों के भाईचारे और सौहार्दपूर्ण रिश्तों के बीच दरार बढ़ाने की कोशिश होती है और छोटी छोटी घटनाएं आपसी आस विश्वास को पल भर में चकनाचूर कर देतीं हैं यही आघात की कहानी का मूल आधार है.
(Aaghat Drama Performance in Pithoragarh)
आघात कहानी का नाट्य रूपांतरण सुनील कुमार शर्मा ने किया. आजादी के समय एक ही डाल पर खिले फूलों की तरह खिल रहे रशीद मियां, चन्दन,बाबूजी,आई, विट्ठ्या और सरपंच के साथ एक छोटे से गाँव के ग्रामीणों की दैनिक गतिविधियों के साथ सुख दुख में अपनी पूरी हिस्सेदारी निभा रहे हैं. ख़ुशी पर गुड़ मीठा बंटता है दुख दर्द पर सर पर हाथ फेर ढांढस दिया जाता है.पर तभी बम्बई से आया कोई एक ऐसी चिंगारी सुलगा देता है जो धीरे धीरे सुलगती है. लोग कुछ समझ भी नहीं पाते. जिन्हें इसका ताप महसूस होता है वो हाशिये पर धकेल कर ऐसे आतंकी और अपराधी बना दिए जाते हैं जैसे सारा अपराध उन्हीं का हो.
आघात नाटक का ताना बाना ऐसे ही परिदृश्य को बुनता हुआ उन घटनाओं स्थितियों को सामने रख देता है जो समाज में उस वर्ग विभेद की कारक है जिससे नफरत पनपती है. पहले से चले आए रिश्ते किरच-किरच हो जाते हैं और आखिर कार यह सोचना ही पड़ता है कि कहीं न कहीं देश में चल रहे जाति धर्म को ले कर भेद भाव को उपजाना आख़िर कर क्योँ? फिर क्या हो कि यह समझ आए कि इंसानियत और मानवता ही सबसे ऊपर है और यही वह समाधान भी जो समस्याओं को सुलझाने का वादा कर सकने में समर्थ बनती है और तभी आती है खुशहाली.
आघात नाटक का निर्देशन किया अनीता बिटालू ने. अनीता का जन्म हुआ पिथौरागढ़ जिले के सीमांत धारचूला में खोतिला गाँव में जहां से उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भी ली और फिर एल. एस. एम. स्नातकोत्तर महाविद्यालय पिथौरागढ़ से विज्ञान वर्ग से स्नातक कि पढ़ाई की. कॉलेज के दिनों से ही रंगमंच का रुझान रहा और शुरुवात का मौका मिला कैलाश कुमार के निर्देशन में नाटक ‘उरुभंगम’ से.
(Aaghat Drama Performance in Pithoragarh)
पिथौरागढ़ में कैलाश कुमार के प्रयासों से भाव राग ताल अकादमी की स्थापना हुई. आघात का मंचन कई सफल प्रस्तुतियों के बाद लंदन फ़ोर्ट, रामलीला परिसर के खुले मंच में 27 नवंबर 2020 को संपन्न किया गया. मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय द्वारा प्रदत्त अध्ययन अनुदान योजना के अंतर्गत संपन्न इस नाटक की प्रस्तुति में मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय भोपाल के निदेशक आलोक चटर्जी व कुमाऊं मण्डल विकास निगम पिथौरागढ़ के प्रबंधक दिनेश गुर्रानी का मार्गदर्शन रहा. संगीत दिया वेंकेटेश नकुल ने. ध्वनि व तकनीक संभाली दीपांशु जोशी ने.
मंच पर प्रभावी भूमिकाओं में रोहित यादव, सूरज रावत, भरत कुमार, अंजलि कलोनी, गोवर्धन, प्रीति रावत, जीतेन्द्र धामी, निशा कलोनी ने बेहद सधा संतुलित अभिनय किया .
पिथौरागढ़ में ऐसी प्रस्तुति आस जगाती है और यह अवसाद भी कि इतनी सशक्त प्रस्तुति को देखने बहुत बहुत ही सीमित दर्शक आते हैं वह भी उस सोर घाटी में जहां नाटक देखने को देव सिंह मैदान और महाविद्यालय का स्टेज खचाखच भर जाया करता था.
(Aaghat Drama Performance in Pithoragarh)
जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.
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