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रॉंग नंबर

रॉंग नंबर
-आशीष ठाकुर

एक दोपहर थी थकी-थकी, उदास, ठहरी हुई. खिड़कियाँ सूनी थी, आसमान अकेला. घर में सन्नाटा पसरा था. अब तो बेला के क़दमों की आवाज़ भी नहीं आती, पायल पहनना उसने कब का छोड़ दिया. घर का सारा काम-काज निपटा कर वो बैठे-बैठे रिमोट से टीवी के चैनल पलट रही थी, टीवी पर देखे भी तो क्या देखे! वहीं सेम ओल्ड शिट ( same old shit ) रोज़. कभी-कभी अलमारी से निकालकर पुराने एल्बम देख लिया करती है, शादी के पहले की, स्कूल-कॉलेज की तस्वीरें. वो चमकती यादें, वो सुनहरे आज़ादी के दिन. लेकिन थोड़ी ख़ुशी के बाद, नास्टैल्जिया एक लम्बी उदासी ले आता है, फिर वो घंटों उस उदासी से उबार नहीं पाती. फिर उसने सोचा, रेणु को कॉल कर ले,कितने दिन हो गए उससे बात नहीं की, उसने मोबाइल उठाया भी फिर ये सोच कर रख दिया, शायद ऑफिस में किसी काम या मीटिंग में बिजी हो, वो उसकी तरह हाउसवाइफ ( housewife ) थोड़े है! तभी अचानक फ़ोन बजा, उसने सोचा शायद रेणु का ही हो, देखा तो कोई अननोन नंबर था, उसने पिक किया तो सामने से आदमी को रौबदार, वज़नी आवाज़ सुनाई दी, उसने कहाँ : “हैल्लो… जी ये मिसेज अग्रवाल बोल रही है, देखिये जी आपका एक पार्सल आया है हमारे पास, कब भेजूं डिलीवरी के लिए…

इससे पहले बेला कुछ बोले, सामने वाला अपनी बात कनटिन्यू ( continue ) करते हुए बोला: “देखिये जी, अपनी तो आदत है डिलीवरी के पहले कॉल करके पूछ लेने की, वो क्या है न अच्छा रहता है, टाइम भी बच जाता है, वरना अब मेरा आदमी पार्सल लेकर आये और आप घर पे ना मिले, तो क्या फायदा?

सही है की नहीं… आप ही बताईये?”

बेला ने कहा: ” सॉरी ये रॉंग नंबर है”

सामने वाले ने चौक के कहा: जी रॉंग नंबर है? मतलब आप मिसेज अग्रवाल नहीं बोल रही?”

बेला ने कहा : ” जी नहीं”

सामने वाले ने कहा: “मतलब ये 98@#$%&674 नहीं है”

बेला ने कहा:” है, नंबर यहीं है”

सामने वाले ने कहा: “हैं! नंबर सही है तो रॉंग कैसे हो सकता है?”

बेला ने थोड़ा झुंझलाते हुए जवाब दिया:” क्योंकि मैं मिसेस अग्रवाल नहीं हूँ, आप अपना नंबर चेक कीजिये”

सामने वाले ने एक पॉज ( pause ) लेते हुए कहा :” नंबर तो शायद यहीं था, फिर भी मैं एक बार और चेक करता हूँ…  सॉरी फॉर डिस्टरबेन्स ( sorry for distrubance ) माफ़ी चाहता हूँ, आपको परेशान किया”

बेला ने कहा: नो इट्स ओके ( no, its ok )

इससे पहले की बेला फ़ोन कट करती, सामने वाले ने कहा :”आपकी आवाज़ बहुत खूबसूरत है, बहुत टाइम बाद ऐसी आवाज़ सुनी.”

बेला ने एक रुखा सा थैंक्यू यू बोला. वो फ़ोन रखने ही वाली थी, कि सामने वाले ने फिर कहा :” आप बुरा ना माने तो एक सलाह दूँ”

बेला के जवाब की प्रतीक्षा किये बिना ही उसने सलाह देना शुरू कर दिया, वो बोला :” आप किसी रेडियो स्टेशन में आर. जे. बनने का ट्राई क्यों नहीं करती, धूम मचा देगी आपकी आवाज़. मैं तो आपका शो रोज़ सुनुँगा.”

अब के बेला ने बिना कुछ जवाब दिए बिना ही फ़ोन कट कर दिया.

बेला को अपनी आवाज़ सुनना अच्छा लगा, बहुत टाइम बाद किसी ने उसकी तारीफ की. खिड़की में बाहर आसमान में जाने कहाँ से भटकती एक बदली आ गई, तपती दोपहर में थोड़ा सुकून आ गया.

शाम को खाना बनाते हुए बेला अपना पसंदीदा गाना ” ज़रा सा झूम लूँ मैं” गुनगुना रही थी, अपने कॉलेज के दिनों में वो ये गाना खूब गया करती थी. “दिलवाले दुल्हनियाँ ले जायेंगे” के इस गाने ने कई दिलवालों के दिल में उसकी चाहत जगा दी थी. उनमें से एक अक्षय भी था, एक साधारण मध्यम वर्गीय परिवार का होनहार लड़का. लेकिन बिना मोबाइल और सोशल नेटवर्किंग के उस ज़माने में सिर्फ आँखों ने आँखों से बातें की, दिल की बात ज़ुबान पे आते-आते कॉलेज का फाइनल ईयर आ गया और साथ में संदीप भी. मम्मी-पापा ने सब देखभाल के संदीप को पसंद किया था, और जब उन्होंने पसंद कर लिया, तो फिर बेला की पसंद और नापसंद का तो सवाल ही नहीं उठता.

“क्या बात है, आज खाने के साथ गाना फ्री” संदीप की आवाज़ उसे कॉलेज के ज़माने से आज में खींच लायी. अच्छा लड़का था संदीप, दिखने में ठीक-ठाक, कमाता अच्छा है, उसका ख्याल भी रखता है. ज़माने के हिसाब से तो बढ़िया ही है, लेकिन… जाने भी दो इस लेकिन को… इसने कई अच्छी-भली ज़िंदगियाँ बरबाद कर दी.

“अरे आप आ गए ऑफिस से, पता ही नहीं चला” बेला ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा.

“आप हाथ-मुँह धो लीजिये मैं चाय रखती हूँ, रिया… रिया… टीवी बंद करो और होमवर्क करने बैठो. ये लड़की भी ना, पूरे दिन टीवी से चिपकी रहती है” बेला ने शिकायत भरे लहज़े में संदीप से कहा, संदीप अपने मोबाइल पे ऑफिस के मेल चेक करने में बिजी हो गया.

अगला दिन फिर वैसा ही था, उदास सा, खाली-खाली. समझ नहीं आता, यह मन का खालीपन है जो चारो और फैला है या दिन का खालीपन है जो मन में घर कर गया है काम-काज निपटा कर बेला दो मिनट बैठी ही थी कि मोबाइल बज उठा, नंबर अननोन था, उसने कॉल रेसीव किया तो सामने वाले ने कहा :” तो क्या सोचा आपने?”

बेला को आवाज़ तो सुनी हुई सी लगी, पर वो याद नहीं कर पायी कि किसकी है, उसने रूखेपन से कहा:” किस बारे में, और आप कौन?”

सामने वाले ने कहा :”भूल गई ना, खैर इसमें आपकी गलती नहीं है, ज़माना ही ऐसा है, भलाई करने वालो को कोई याद नहीं रखता.”

बेला को थोड़ी-थोड़ी आवाज़ पहचान में आयी, उसने कहा :” आप वो कूरियर वाले तो नहीं, जिन्होंने…”
सामने वाले ने बेला की बात काट कर कहा :” जी कूरियर वाला नहीं, एडवाईस ( advice ) वाला, भूल गई आपको आ. जे. ( RJ ) बनने की एडवाईस…

बेला ने कहा:” हाँ याद आया… आज कैसे फ़ोन किया?”

सामने वाले ने कहा:” यहीं पूछने को फ़ोन किया, कि क्या सोचा आपने?”

बेला ने जवाब दिया :”किस बारे में?”

सामने वाले ने कहा :” आर जे बनने के बारे में और किस बारे में!”

बेला को समझ नहीं आया, क्या जवाब दे उसको. इससे पहले वो कुछ कहे, सामने वाले ने बोला :” कहीं आपको ऐसा तो नहीं लग रहा, मैं टाइमपास कर रहा, देखिये मैं सीरियस हूँ…. आपको इस बारे में सोचना चाहिए…. सीरियसली सोचना चाहिए”

इतना कहकर उसने कॉल कट कर दिया. बेला ने सोचा, अजीब आदमी है.

फ़ोन रखने के बाद उसकी नज़र शोकेस में रखी हुई ट्राफियों पे गई, ये उसे कॉलेज में मिली थी, कुछ बेस्ट संचालन के लिए, तो कुछ बेस्ट सिंगर के लिए. इनमे से एक बेस्ट डुएट के लिए भी थी, जो उसने अक्षय के साथ गाया था. ट्राफियां वक़्त के साथ अपनी चमक खो बैठी थी. बेला ने अपना गला खंखारा और गाने कि कोशिश की, लेकिन ऐसा लगा आवाज़ के ऊपर बरसों की बर्फ पड़ी है. जाने कितनी परतों के नीचे उसकी आवाज़, उसका अस्तित्व पड़ा है. जो शायद अब तक दम तोड़ चूका होगा. तभी फ़ोन फिर बजा, बेला ने सोचा शायद अननोन नंबर फिर से हो, लेकिन इस बार नंबर नोन ( known ) था उसके पति संदीप का. फ़ोन उठाते ही संदीप ने बिना टाइम वेस्ट करते हुए कहा :” सुनों, इस वीकेंड मेरे कुछ दोस्त आ रहे हैं डिनर पे”

बेला ने कहा:” लेकिन संडे को तो हमें मंदिर जाना है, पूजा करने”

संदीप ने कहा :” ओफ्फो, तुम भी ना, मंदिर अगले संडे चलेंगे…

बेला ने कहा:” आप हमेशा ऐसा ही करते हो… मेरा हर प्रोग्राम….”

संदीप ने उसकी बात बिच में ही काट दी, और कहा:” अब तुम फिर से शुरू मत हो जाओ, मुझे बहुत काम है ऑफिस में, रखता हूँ”

इतना कहकर उसने कॉल काट दिया. बेला ने एक बार संदीप के नाम को और एक बार अननोन नंबर को देखा.

2-3 दिन वीकेंड की तैयारी में ही गुज़र गए, क्या बनाना है, कैसे क्या करना है? एक दिन अचानक से दोपहर में मोबाइल फिर बजा, बेला देखा तो पहचान गई, वहीँ अननोन नंबर था. एक पल रूककर उसने कॉल एक्सेप्ट किया.

बेला:” हेलो”

सामनेवाले ने कहा :” जी पहचाना? रॉंग नंबर”

बेला ने कहा: ” लगता है आप मुझे RJ बनवा के ही मानोगे”

सामनेवाले ने कहा :”आप RJ बनेगी, तो मेरा ही फायदा होगा”

बेला ने कहा:” फायदा! आपका क्या फायदा होगा?”

सामनेवाले ने जवाब दिया :”अब आप RJ बनेगी, तो फेमस तो हो ही जाओगी, लाखों लोग आपकी आवाज़ सुनेंगे, फिर मैं गर्व से कहूँगा. ..सुन रहे हो ये आवाज़… इसको मैंने ढूँढा”

अनायास ही बेला हँस पड़ी. उसे उसकी बातें मज़ेदार लगने लगी थी. उसे ये भी पता था कि ये सब फालतू की बातें हैं, लेकिन नदी जब बरसों से शांत हो, तो उसमे एक छोटा सा पत्थर भी फेंकों तो तरंग दूर तक जाती है.

सामनेवाले ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा:”मुझे लगता है, आपकी आवाज़ जितनी खूबसूरत है, आप भी उतनी ही खूबसूरत होगी.”

मोबाइल कान में लगाए वो आईने के सामने रुकी. अपने आप को जी भर के देखा.
सामनेवाले ने कहा:” बताईये, सच कह रहा हूँ ना मैं”

बेला ने अपने अक्स को देखकर सोचा:” नहीं, झूठ, बिलकुल झूठ कह रहा है ये, मैं खूबसूरत थी…लेकिन अब!”

अक्स और बेला के बीच गुज़रे हुए सारे बरस खड़े हो गए,इन बरसों के हाथ खाली थे, बेला ने इन सालों में बहुत कुछ खोया, वो अब कहीं नहीं है, उसका जी चाहा जो खोया वो सब वापस पा लें, लेकिन कैसे….?
तभी सामनेवाले की आवाज़ ने बेला के ख्यालों को पिघला दिया, वो बोला:” लगता है आपको अपनी तारीफ अच्छी नहीं लगी”

बेला ने कुछ जवाब नहीं दिया, वो बस अपने आप को देखती रही.

सामनेवाले ने कहा:”अच्छा मैं आपकी ऐज गेस करता हूँ… 28?”

बेला को उसका लहज़ा अच्छा लगने लगा… उसे भी इस खेल में मज़ा आने लगा. बोरिंग सा घर एकदम से जैसे कोई कसीनों में बदल गया. जहाँ फन है, एडवेंचर है, जहाँ अंजाम सोचकर दांव नहीं लगाया जाता.

बेला ने जवाब दिया:” गलत”

सामनेवाले ने कहा ” तो फिर 25 ?

बेला ने कहा:”कम”

सामनेवाले ने एक पल का पॉज लिया और कहा:”अब आप स्वीट सिक्सटीन तो हो नहीं सकती, सच बताईये”

बेला ने चुहल करते हुए कहा :” औरतों को उम्र नहीं पूछा करते”

फिर बेला के मन में आया वो भी उससे पूछे, उसके बारे में, वो कौन है, नाम क्या है? लेकिन वो बातों के इस सिलसिले को मोड़ना नहीं चाहती थी, खुद के बारे में बातें करना, खुद की तारीफ सुनना उसे अच्छा लग रहा था. तभी मोबाइल में टू… टू की आवाज़ ने उसका ध्यान खींचा. देखा तो संदीप का कॉल आ रहा था. उसने एक बार तो सोचा कि ये कॉल कट करके संदीप का कॉल ले लें, लेकिन उसे पता था वो क्या बोलेगा?

बेला ने बात जारी रखते हुए कहा:” आप कुछ कह रहे थे”

सामनेवाले ने कहा: मैं ही कह रहा हूँ, आप तो सिर्फ सुन रही है”

बेला चुप रही, अभी तक वो आईने के सामने ही खड़ी थी, उसका मन नहीं हो रहा था वहां से हटने का, गर्मी के कारण माथे से पसीना बहने लगा, उसने पोछा तो माँग का सिन्दूर भी फ़ैल गया, फैला हुआ सिन्दूर उसे अच्छा लगा.

तभी सामनेवाले ने कहा: “अच्छा एक बात पूँछू, आप बुरा तो नहीं मानेगी?”

बेला ने कहा:” ये तो बात पे डिपेंड करता है”

सामनेवाला बोला :”रहने दीजिये, आप बुरा मान जाएगी”

बेला ने कहा:”पूछ के देखिए, शायद ना भी मानूँ ”

सामनेवाले ने कहा:” और अगर मान गई तो?”

बेला ने जवाब दिया:” और अगर नहीं मानी तो”

सामनेवाला बोला :”तो बात आगे बढ़ जाएगी”

बेला बोली:”तो बढ़ जाने दीजिये”

बेला के जवाब से सामनेवाला दो पल को चुप हो गया. बेला ने उसकी टाँग खींचते हुए कहा :” क्या हुआ, डर गए?”

सामनेवाले ने जवाब दिया :”फिर कभी”

बेला ने कहा: “जैसी आपकी मर्ज़ी”

सामनेवाले ने फ़ोन रख दिया. फिर वीकेंड आया, संदीप के दोस्त भी. बेला ने पूरे मन से डिनर तैयार किया, वो खुश थी, उसे एक तरह का हल्कापन महसूस हो रहा था. उसे लग रहा था जैसे सारी शिकायते छुट्टी पे चली गई हैं. उसे अपने आस-पास सब कुछ अच्छा लग रहा था. संदीप भी बेला के व्यवहार देखकर थोड़ा अचरज हो रहा था, उसने सोचा था कि बेला ये सब अनमने मन से करेगी, चिढ़ेगी, लेकिन आज तो ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. सदीप के बिना बोले ही ड्रिंक्स के लिए पापड़, नमकीन आते रहे. कारण जो भी हो, वो खुश है, सब ठीक है, अच्छा ही है , संदीप ने सोचा.

आनेवाले कुछ दिन बेला के इंतज़ार में बीते, रोज़ दोपहर में काम-काज से निपटने के बाद वो मोबाइल के पास बैठ जाती, शायद रॉंग नंबर अब आये, तब आये ! लेकिन नहीं आया. उसने सोचा शायद उसने उस दिन कुछ ज़्यादा ही बोल दिया था, उसे बुरा तो नहीं लग गया, या फिर सोचा हो सकता है किसी काम में बिजी हो… या फिर हो भी सकता ना आए, कौन सा रिश्ता है उसका, जो वो कॉल करे. शायद टाइमपास को कर रहा होगा…. खैर इसी बीच संदीप ने उसे सरप्राइज कर दिया, एक दिन ऑफिस से आकर उसने बेला को अपने पास खींच लिया, और बोला :”एक ही काम रोज़-रोज़ करके बोर नहीं हो जाती”

संदीप के इस सवाल पे बेला को आश्चर्य हुआ, उसने कुछ जवाब नहीं दिया, देती भी क्या? सवाल में ही जवाब छुपा था.

संदीप ने बात कंटिन्यू करते हुए कहा:”बेला मैं सोच रहा हूँ, क्यों ना हम दोनों कहीं घूमने चले, हम दोनों… सिर्फ हम दोनों”

बेला ने कहा कुछ नहीं, एकटक संदीप को देखती रही.

संदीप ने कहा:’ रिया को मम्मी के पास छोड़ देंगे, शादी के बाद हम हनीमून पे नहीं जा सके, तो क्या हुआ अब चलते है”

बेला में फीकी सी हँसी हँसते हुए जवाब दिया:” रहने दीजिये, आपका घूमना, पिछली बार भी प्लान किया था, क्या हुआ, ऑफिस में काम आ गया, उसके पिछली बार शादी में चले गए” कहते-कहते बेला की आखें भर आयी.

संदीप ने कहाँ कुछ नहीं, उसे अपने पास खींचा और अपनी जेब से २ टिकट्स निकाल के दे दिए, और बोला:” ये टिकट्स है, होटल बुक कर दिया है और ऑफिस से छुट्टी भी ले ली है , बस…”

अब बेला की रुलाई फूट पड़ी, आँखों का बांध टूट गया, मानों सालो की जमी बर्फ़ पलों में पिघल गई. संदीप थोड़ा डर सा गया, वो बेला के बालों में हाथ फैरता रहा और बेला रोती रही.

बिस्तर पर कपड़े फैले हुए थे, बेला जाने की तैयारी कर रही थी. पहाड़ो में जा रहे है, गर्म कपड़े रखना ज़रूरी है. तभी उसका मोबाइल बजा, ज़रूर संदीप का होगा उसने सोचा, लेकिन नंबर अननोन था, बेला ने पहचान लिया, थोड़ा रूककर कॉल रेसीव किया.

सामनेवाले ने कहा:”कैसी है आप? कहीं आप मुझे भूल तो नहीं गई ना…. रॉंग नंबर… ”

बेला ने कुछ जवाब नहीं दिया. सामनेवाला ने बात करना जारी रखा :” सॉरी इतने दिनों बाद कॉल कर रहा हूँ, ये बिज़नेस के लफड़े-झगड़े, परेशान कर रखा है इन्होने…खैर छोड़िये…मैं आपसे कुछ कहना चाह रहा था… आप सुन रही है ना”

बेला ने कहा:”जी”

सामनेवाले ने कहा:” मैं आपसे मिलना चाहता हूँ…. वो भी अकेले में”

बेला ने कहा:” अकेले में क्यों?”

सामनेवाले ने कहा:” मैं सोच रहा था कि क्यों ना रॉंग नंबर को राइट में बदल दे, देखिये, मैंने तो पूरी तैयारी कर ली है आपसे मिलने की, नयी शर्ट, जीन्स रेडी है और गाना भी सोच लिया है तुमने बुलाया और हम चले आये… तो बताओ, कब-कहाँ आये?”

बेला ने कहा :” देखिये आपको ज़रूर कोई ग़लतफ़हमी हुए है, ये रॉंग नंबर है”

इतना कहकर उसने कॉल कट कर दिया और मोबाइल स्विच-ऑफ कर दिया.

अपना पसंदीदा गाना “ज़रा सा झूम लूँ मैं” गुनगुनाते हुए वो संदीप का सूटकेस जमाने में बिजी हो गई.

 

आशीष ठाकुर मूलतः मध्यप्रदेश के निवासी हैं. फिलहाल पिछले 15 वर्षों से मुंबई में रहते हैं. पहले एडवरटाइजिंग, फिर टेलीविज़न और अब फ्रीलांसिंग करते हुए मीडिया से जुड़े हुए हैं. फिल्मों और साहित्य से गहरा जुड़ाव रखते हैं और फिलहाल इसी क्षेत्र में कुछ बेहतर करने के लिए प्रयासरत है.

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Girish Lohani

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