कुछ दस बजे का समय रहा होगा, कुछ चल्लों की फोटो खींचते-खींचते मै एक प्राथमिक स्कूल के पास से गुजर रहा था. अध्यापिका और बच्चे नवम्बर की धूप सेकते हुए उस दिन की पढाई कर रहे थे. कुछ बच्चे आपस की मस्ती में व्यस्त थे, कुछ बेमन से पेंसिल से अपनी कापियों को खुरच रहे थे, तो कुछ गुलाबी ठंड को ऊँघ रहे थे. (Hesitation to Speak in Pahadi)
अध्यापिका अपनी सलाई के फंदों को तेज़ी से डालते हुए पास ही पड़े अपने मोबाइल फ़ोन मै आये किसी मेसेज को पढ़ मुस्कुराते हुए, बच्चों को टू टूजा फोर, टू थ्रीजा सिक्स का पाठ दे रही थीं. ( Hesitation to Speak in Pahadi)
बच्चों ने बैठने की लाइन को तितर बितर कर दिया था, पर फिर भी दूसरी लाइन में एक बच्चे का चेहरा सर्दी होने के बावजूद दमक रहा था. मोटे-मोटे फटे हुए लाल गाल, होंठों तक बहता सिकान और सर से कानों के पीछे तक बहता सरसों का तेल, ये सब काफी था, मुझ जैसे फोटोग्राफर को रोकने के लिये.
फटा-फट मेरे कैमरे ने कुछ तस्वीरें कैद कर लीं, मेरी पूरी कोशिश रही कि उस कक्षा को मेरे इस कृत्य का पता न चले, पर फिर भी एक-दो बच्चे जिनका अध्यापिका और कक्षा पर बिलकुल ध्यान नहीं था, उन्होंने मुझ को और मेरे कैमरे को देख लिया. जल्द ही पूरी की पूरी कक्षा मेरी और देखने लगी.
अध्यापिका ने शायद मुझे कोई पत्रकार समझा और अपने आधे बुने स्वेटर को अपने पालीथीन के बैग में छुपाते हुए बोली – भैया कहाँ से हो, बच्चों की फोटो क्यों खिंच रहे हो. मैंने अपना परिचय दिया और जब उनको विश्वाश हो चला की मै कोई आवारा हूँ , तो उन्होंने फिर से अपने लाल पालीथीन से स्वेटर निकाल लिया और अपने ऊन को सुलझाते हुए फिर फंदे डालने लगीं.
मै कुछ और बोलता इससे पहले ही वो अपनी कक्षा से बोली – चलो रे सब गुड मार्निंग बोलो. बच्चों ने आदेश का पालन किया और एक सुर मै गुड मार्निंग का गीत गाने लगे. अध्यापिका थोड़ा मुस्कुरायी, उनके बच्चों को अंग्रेजी आती है जैसा भाव मैंने पड़ा.
मैंने जिस बच्चे की फोटो खिंची थी, उससे मैंने अपनी पहाड़ी बोली मै पुछा – तेर की नाम छ ला (तेरा क्या नाम है?)
उसने अपने सिकान को कुछ मैले पड़ चुके स्वेटर के बाजूओं से पोछते हूए कहा – मेर नाम कमल पुनेठा छ (मेरा नाम कमल पुनेठा है)
मै कुछ और पूछ पाता इतने मे अध्यापिका पास पड़ी प्लास्टिक की स्केल को उठा के चिल्ला पड़ी – हिंदी मैं नहीं बता सकता अपना नाम.
सारे बच्चे हँसने लगे, उस बच्चे ने सबकी तरफ देखा और फिर से स्वेटर के बाजूओं से सिकान पोंछते-पोंछते हुए, अपनी असन्तुलित पेंट ऊपर की और सहम कर हिंदी छोड़ अंग्रेजी मे बोलने की कोशिश में माय नेमे, माय नेमे – बोलने लगा.
मै फिर कुछ बोलूं इससे पहले अध्यापिका मुझ को सफाई देने लगी – ये गाँव से आता है, इसलिये थोड़ा कमजोर है, नहीं तो कोई भी बच्चा पहाड़ी मै बात नहीं करता, ये सब अपटूडेट हैं.
क्या बोलता – मेरी खुद की पहाड़ी बोली क्यों अध्कच्ची रह गयी और क्यों आज हम पहाड़ी बोलने को लेकर संकोच में आ जाते हैं, कुछ-कुछ कारण समझ आने लगे.
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पिथौरागढ़ के रहने वाले मनु डफाली पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रही संस्था हरेला सोसायटी के संस्थापक सदस्य हैं.
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