2018 का नोबेल शांति पुरस्कार कांगो के महिला रोग विशेषज्ञ डेनिस मुकवेगे और यज़ीदी महिला अधिकार कार्यकर्ता नादिया मुराद को मिला है. 25 वर्षीय नादिया मुराद को यह पुरस्कार बलात्कार के ख़िलाफ़ जागरुकता फैलाने के लिए दिया गया है.
नादिया मुराद उत्तरी इराक़ के शिंजा के पास कोचू गांव के पास रहती थी. वह यज़ीदी समुदाय से ताल्लुक रखती हैं. 2014 में आईएस ने नादिया मुराद के गाँव पर हमला किया और उसे बंधक बना लिया. बीबीसी को दिये अपने एक इंटरव्यू में नादिया ने बताया कि जब उन्हें बंधक बनाया गया तो वह छः में पढ़ती थी. लड़ाकों ने गांव के मर्दों को मारने के बाद बच्चों और महिलाओं को तीन ग्रुप में बांट दिया.
पहले ग्रुप में युवा महिलाएं थी, दूसरे में बच्चे, तीसरे ग्रुप में बाक़ी महिलाएं. हर ग्रुप के लिए उनके पास अलग योजना थी. बच्चों को वो प्रशिक्षण शिविर में ले गए. जिन महिलाओं को उन्होंने शादी के लायक़ नहीं माना उन्हें क़त्ल कर दिया. अन्य महिलाओं को दूसरे ग्रुप में ले जाया गया. इस बीच उनका बलात्कार और शोषण भी किया गया.
मोसुल में उन्हें इस्लामिक कोर्ट में पेश किया गया. जहां लड़ाकों उन्हें बेचा गया, किराये पर दिया गया या तोहफ़े में दिया गया. नादिया जब एक लड़ाके के चंगुल से भागती हुई पकड़ी गयी तो सजा के तौर पर छः सुरक्षा गार्ड ने नादिया का बलात्कार किया. अगले तीन महिने नादिया का यौन उत्पीड़न होता रहा.
एक दिन मौका पाकर नादिया वहां से भाग निकली और एक मुस्लिम परिवार की सहायता से कुर्दिस्तान की सीमा तक पहुँच गयी. कई महीनों शरणार्थी शिविर में रहने के बाद जर्मन सरकार ने जब 1000 लोगों की मदद करने का फैसला किया तो नादिया उनमें से एक थी.
एक एनजीओ की सहायता से नादिया ने अपनी बात संयुक्त राष्ट्र के सामने रखी और दुनिया को बताया कि उसके साथ क्या हुआ और उसके साथ की महिलाओं के साथ क्या हुआ.
दूसरे नोबल शान्ति पुरूस्कार विजेता डेनिस मुकवेगे डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो में कार्यरत एक स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं. उन्हें गंभीर यौन हिंसा की शिकार महिलाओं के इलाज मे विशेषज्ञता हासिल है. उन्होंने और उनके सहकर्मियों ने तीस हज़ार से अधिक बलात्कार पीड़ितों का इलाज किया है. उन्होंने विश्व को बताया कि बलात्कार सिर्फ़ युद्ध में किए गए हिंसक कृत्य नहीं थे, बल्कि किसी रणनीति का हिस्सा थे. कई बार महिलाओं का समूहों में सार्वजनिक बलात्कार किया जाता. एक रात के भीतर ही पूरे गांव की महिलाओं का बलात्कार हो जाता. ऐसा करके वो सिर्फ़ महिलाओं को ही नहीं बल्कि समूचे समुदाय को चोट पहुंचा रहे थे. पुरुषों को बलात्कार देखने के लिए मजबूर किया जाता था. इस रणनीति का नतीजा ये हुआ कि लोग अपने गांव छोड़कर भागने लगे, उन्होंने अपनी ज़मीनें छोड़ दीं, अपना संसाधन और बाकी सबकुछ छोड़ दिया. ये एक प्रभावशाली रणनीति थी. कांगो में चल रहे गृह युद्ध के बीच डेनिस पिछले दो दशकों से अपना काम कर रहे हैं.
जब एकबार डेनिस मुकवेगे पर हमला हुआ तो वह परिवार के साथ स्वीडन चले गये. इसके बाद डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो की महिलाओं ने सड़कों पर आकर प्रदर्शन किये और उनके वापस आने के लिये टिकट के लिये धन इकठ्ठा करना शुरू किया. गरीबी के सबसे निचले पायदान में रह रही महिलाओं के प्रयास को डेनिस मुकवेगे मन नहीं कर पाये और 2013 में एकबार फिर अपने देश लौट आये.
लौटने के बाद डेनिस मुकवेगे अपने अस्पताल में ही रहते जहां उनकी सुरक्षा के लिये हमेशा तीस महिलाएं खड़ी रहती हैं. डेनिस मुकवेगे कहते हैं उन महिलाओं ने मुझे काम करने की प्रेरणा दी और अब में अपना काम कर रहा हूँ.
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डेनिस मुकवेगे के साथ वो तीस महिलाएं भी नोबेल की हकदार हैं जो उनकी सुरक्षा के लिए खड़ी रहती थीं|
यह भी समझना होगा कि किसी पुरुष के लिए महिलाओं के हित में काम करना कितना मुश्किल है अगर महिलाएं खुद साथ न दें|