वात्स्यायन ने ‘कामसूत्र’ में लिखा है: “यक्षरात्रिरिति सुखरात्रि:,यक्षाणां तत्र सन्निधानात तत्र प्रायशो लोकस्य द्यूतक्रीड़ा”. (Vatsyayan Kamsutra and Deepawali)
कार्तिक की अमावस्या को जब दीपावली पर्व मनाया जाता है, वात्स्यायन के समय में यक्ष-रात्रि उत्सव मनाया जाता था. दीपावली उत्सव का वर्णन पुराणों, धर्मसूत्रों, कल्पसूत्रों में विस्तृत रूप से मिलता है लेकिन आश्चर्य की बात है कि ‘कामसूत्र’ में दीपावली का कोई ज़िक्र न होकर यक्ष-रात्रि का उल्लेख हुआ है. (Vatsyayan Kamsutra and Deepawali)
यक्ष-रात्रि से यही अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय उस दिन यक्ष की पूजा होती रही होगी और द्यूत क्रीड़ा रचाई जाई रही होगी.
संभव है प्राचीन काल में शायद दीवाली का उत्सव शास्त्रीय या धार्मिक रूप से नहीं मनाया जाता रहा है क्योंकि वेदों, ब्राह्मण-ग्रंथों में इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता है. ‘पद्मपुराण’ और ‘स्कन्दपुराण’ में इस पर्व का विस्तृत वर्णन पाया जाता है. उसी के आधार पर दीपावली उत्सव का प्रचलन अब तक है.
कार्तिक की अमावस्या (दीपावली) के साथ यक्ष शब्द जोड़ने का तात्पर्य श्रीसूक्त से स्पष्ट होता है. श्रीसूक्त ‘ऋग्वे’द के परिशिष्ट भाग का एक सूक्त है. इस सूक्त के एक मन्त्र में ‘मणिना सह’ कहा गया है. इस वाक्य से प्रतीत होता है कि लक्ष्मी का सम्बन्ध मणिभद्र यक्ष से है. मणिभद्र यक्ष से लक्ष्मी का घनिष्ठ सम्बन्ध होने से कामसूत्र के काल तक दीपावली की रात यक्ष-रात्रि कहलाती रही.
इतना तो निस्संदेह कहा जा सकता है कि दीपावली का आधुनिक रूप में जो प्रचलन है वह ईसवी तीसरी शती के बाद से आरम्भ होता है और वात्स्यायन का समय इसी के पूर्व सुनिश्चित है. यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वात्स्यायन के काल में कार्तिक की अमावस्या की रात में लक्ष्मी पूजन और द्यूत क्रीड़ा की प्रथा रही होगी. (Vatsyayan Kamsutra and Deepawali)
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