उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में आज का दिन बड़ा पवित्र माना जाता है. आज महिलाएं वट सावित्री का उपवास रखती हैं. ज्येष्ठ मास, कृष्णपक्ष में मनाया जाने वाला यह त्यौहार पति की दीर्घायु, अखंड सौभाग्य, पुत्र-पुत्रों द्वारा वंश वृद्धि और परिवार की सुख, शांति, समृद्धि के लिए महिलाओं द्वारा मनाया जाता है. आज महिलायें उपवास रखकर वट वृक्ष की परिक्रमा कर इसके चारों ओर सूत का धागा लपेटती हैं. यहां पढ़िये वट सावित्री के दिन पढ़ी जाने वाली कथा –
(Vat Savitri Story Uttarakhand)
द्रदेश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी. संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने अठारह वर्षों तक मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं. इससे प्रसन्न होकर सावित्री देवी ने प्रकट होकर उन्हें एक तेजस्वी कन्या के पैदा होने का वर दिया. सावित्री की कृपा से जन्म लेने वाली कन्या नाम भी सावित्री रखा गया.
रूपवान सावित्री के बड़े हो जाने पर भी कोई योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे. उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा. वर की तलाश में सावित्री तपोवन में भटकने लगी. वहां साल्व देश के सत्ताचुत राजा द्युमत्सेन रहते थे क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था. उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण करना चाहा.
सावित्री के पिता को भी सत्यवादी, सर्वगुण संपन्न सत्यवान अपनी पुत्री के वर के रूप में पसंद था. वेदों के ज्ञाता सत्यवान अल्पायु थे इस वजह से नारद मुनि ने सावित्री को सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी थी. इसके बावजूद सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह रचाया.
(Vat Savitri Story Uttarakhand)
एक वर्ष बीत जाने के बाद पिता की आज्ञानुसार सत्यवान लकडियां और फल लेने वन में गए. उनके साथ सावित्री भी थीं. यहाँ नियतिनुसार सत्यवान की वृक्ष से गिरकर मौत हो गयी. यमराज ने उनके सूक्ष्म शरीर को लेकर यमपुरी को प्रस्थान किया तो सावित्री भी साथ चल पड़ी.
यमराज ने सावित्री को समझाया कि मृत्युलोक के शरीर के साथ कोई यमलोक नहीं आ सकता इसलिए अपने पति के साथ आने के लिए तुम्हें अपना शरीर त्यागना होगा. सावित्री की दृढ निष्ठा और पतिव्रतधर्म से प्रसन्न होकर यम ने एक-एक करके वरदान के रूप में सावित्री के अन्धे सास-ससुर को आँखें दीं, खोया हुआ राज्य दिया, उसके पिता को सौ पुत्र दिये और सावित्री को लौट जाने को कहा. परन्तु सावित्री अपने प्राणप्रिय को छोड़कर नहीं लौटी.
आखिर में यमराज ने कहा कि सत्यवान को छोड़कर चाहे जो माँग लो. सावित्री ने यमराज से सत्यवान से सौ पुत्र प्रदान होने का वरदान मांग लिया. यम ने बिना सोचे प्रसन्न मन से तथास्तु भी कह दिया. यमराज के आगे बढ़ने पर सावित्री ने कहा – मेरे पति को आप साथ अपने लेकर जा रहे हैं और मुझे सौ पुत्रों का वर दिये जा रहे हैं. यह कैसे सम्भव है? मैं पति के बिना सुख, स्वर्ग और लक्ष्मी, किसी की भी कामना नहीं करती. बिना पति के मैं जीना भी नहीं चाहती. वचनबद्ध यमराज ने सत्यवान के सूक्ष्म शरीर को सावित्री को लौटा दिया और सत्यवान को चार सौ वर्ष की आयु भी प्रदान की.
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