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फूलों की घाटी: दुनिया की सबसे खूबसूरत जगहों में एक

1931 में अंग्रेज पर्वतारोही फ्रेंक सिडनी और होल्ड्स वर्थ कामेट पर्वत से रास्ता भटककर एक सुरम्य घाटी में पहुँच गए. यह घाटी सैंकड़ों प्रजातियों के रंग-बिरंगे जंगली फूलों से अटी पड़ी थी. हरे घास के विशालकाय मैदान में असंख्य फूलों को देखना इनके लिए मन्त्रमुग्ध कर देने वाला था. इस तरह फूलों की घाटी की खोज हुई.

फ्रेंक सिडनी और होल्ड्स वर्थ कामथ ने अपने देश लौटकर ‘वैली ऑफ़ फ्लावर्स’ नाम से एक किताब लिखी और फूलों की घाटी दुनिया भर में मशहूर हो गयी. 1982 में इसे संरक्षित राष्ट्रीय उद्यान घोषित कर दिया गया.  

1939 में ब्रिटिश महिला जॉन मार्गरेट भी फूलों की घाटी देखने यहाँ पहुंची. अपने प्रवास के दौरान उन्होंने यहाँ से कई प्रजाति के फूलों को भी लन्दन भेजा अगस्त 1939 में ही उनकी यहाँ एक दुर्घटना में मृत्यु हो गयी, इसे फूलों की घाटी के एक शिलालेख में अंकित किया गया है.  

समुद्र तल से 3352 से 3658 मीटर ऊंचाई पर स्थित इस लम्बी-चौड़ी घाटी में सैंकड़ों प्रजातियों के रंग-बिरंगे फूल पाए जाते हैं. इस घाटी का क्षेत्रफल 90 वर्ग किमी के आस-पास है.  यूँ तो फूलों की घाटी साल के बारहों महीने बेहद खूबसूरत दिखाई देती है लेकिन बरसात का मौसम इसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा देता है. बरसात के बाद यह हरी घाs से तो लकदक हो ही जाती है, इसी जुलाई अगस्त और सितम्बर के महीने में यहाँ 600 से अधिक प्रजातियों के रंग-बिरंगे फूल खिला करते हैं.

रंग-बिरंगे फूलों के अलावा यहाँ पर लाल लोमड़ी, हिमालयी भालू, कस्तूरी मृग हिम तेंदुआ आदि जानववर और हिमालयी परिंदे भी देखे जा सकते हैं.

फूलों की घाटी उत्तराखण्ड के गढ़वाल मंडल के चमोली जिले में है. जोशीमठ से 23 किमी दूर गोविन्दघाट तक मोटर मार्ग से पहुँचने के बाद पैदल रास्ता फूलों की घाटी को जाता है. यह फूलों की घाटी और हेमकुंड को जाने वाला रास्ता है. गोविन्द घाट से 12 किमी किमी की कठिन चढ़ाई वाला रास्ता काकभुसुण्डी घाटी से होता हुआ गोविन्द धाम पहुँचता है. पूरा रास्ता मनोरम जलधाराओं और घने देवदार के जंगलों से होकर गुजरता है.

गोविन्द धाम और गोविन्द घाट दोनों में ही सिखों का गुरुद्वारा है जहाँ रहने-खाने के पर्याप्त बंदोबस्त हैं. यात्रा काल में यहाँ लगभग दिन के 20 घंटे लंगर का आयोजन किया जाता है.

गोविन्द धाम से एक किमी आगे चलने के बाद एक दोराहा मिलता है, जहाँ से दो पगडंडियां अलग-अलग चल पड़ती हैं. बायीं ओर वाली पगडण्डी पकड़कर आप 3 किमी का चढ़ाई-उतार वाला आसान सा रास्ता तय करके फूलों की घाटी पहुंच सकते हैं. दूसरा रास्ता 4 किमी की खड़ी चढ़ाई में आपकी परीक्षा लेता हुआ हेमकुंड साहिब छोड़ देता है.           

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Sudhir Kumar

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