पहाड़ों में लोग मेहनतकश होते हैं. पहले सड़कें बहुत कम थी, यातायात के साधन नहीं थे तो आदमी पैदल चला करते थे. मेहनत करने से नमक की कमी हो जाती होगी तो नमक ज्यादा खाया जाता था फिर पहाड़ों मे प्रचुर मात्रा में फल वगैरह होते थे तो उनके साथ नमक खाया जाता था. पहाड़ के लोगों ने तब कई प्रकार के मसाले वगैरह मिलाकर नमक को स्वादिष्ट बना दिया. आज भी पहाड़ों में कई जगह पहाड़ी पिसी लूण के नाम से नमक बेचकर स्वरोजगार को बढावा दिया जा रहा है और पहाड़ के नमक के स्वाद को देश-विदेश भेजा जा रहा है.
(Uttarakhand Traditional Flavored Salts)
पहाड़ों में नमक की बात करूं तो सबसे पहले बारी आती है एक मसालेदार नमक की जो शायद संयोगवश बन पड़ा होगा. सिलबट्टे पर घर के मसाले, लहसन, राई, मेथी, भांग, पुदीना आदि पीसा जाता है तो सिलबट्टे पर थोड़ा-थोड़ा स्वाद सारी चीजों का रच जाता है. जब उस पर नमक के कणिक पीसे जाते थे तो बिना मसाला डाले मसालेदार नमक तैयार हो जाता था. इस नमक के स्वाद का जवाब नहीं.
अब आते हैं दूसरे नमक पर. ये हुआ लूण के कणिक यानि पहले बिकने वाला डली वाला नमक. इसको हमने बचपन में जब ईजा को समय न हो वह रोटी पकाकर चली गई हो और सब्जी भी न हो तो तब रोटी के साथ ऐसे ही टपुक जैसा कटकाकर खाया है. आज के लोगों को अटपटा लगे पर बचपन में नमक के कुटक-कुटुक करने में मजा आता था. कभी कम तो कभी ज्यादा नमक जीभ में अलग-अलग स्वाद देता था.
एक नमक ऐसे भी बनता था जिसमें कढाई में तेल डालकर जीरा या धनिया डालकर दो चार नमक के कणिके डाल देते थे. अब तेल को अचारी तेल की तरह और नमक को कटकाकर रोटी बुका लेते थे. इसका भी अपना मजा था.
(Uttarakhand Traditional Flavored Salts)
एक नमक बनता था जतकाव (प्रसव के बाद) महिलाओं के लिए या कई बार बीमार लोगों के लिए. इसे पकाई लूण कहते थे. नमक को खूब पानी डालकर कढाई में डालकर आँच पर चढा दिया जाता था. फिर पूरा पानी भिटकाकर (पकाते-पकाते सुखाकर) नमक को बिलकुल सूख जाने पर रख लिया जाता था. शायद ये इसलिए भी करते होंगे ताकि समुद्री नमक से गन्दगी निकल जाय.
अब बारी आती है पहाड़ के सर्वाधिक प्रचलित भांग के नमक की. भाग के नमक के बिना पहाड़ की कई चीजें अधूरी है. खटाई या सना हुवा चूख की तो इसके बगैर कल्पना भी नहीं की जा सकती. भांग का नमक घी के साथ रोटी तो प्रिय नाश्ता हुआ. मडुवे की रोटी के साथ तो स्वाद का जवाब नहीं. भांग के बीजों को भूनकर नमक के साथ सिलबट्टे पर पीस लो भांग का नमक तैयार.
भांग की तरह ही अलसी का नमक भी बनाया जाता है. यह बहुत गुणकारी माना जाता है. इसको रोटी आदि के साथ और खटाई के साथ प्रयोग करते हैं. एक नमक बनता है जीरे का. कच्चे जीरे को नमक के साथ पीसकर बनाया जाता है. यह ककड़ी और काफल के साथ बढिया लगता है. काफल में सरसों का कच्चा तेल डालकर जीरे का नमक मिलाकर खाओ मजा ना आए तो पैसे वापस.
(Uttarakhand Traditional Flavored Salts)
लहसुन की कलियों का नमक नासपाती और बड़े मेहल के साथ जमता है. लहसुन की पत्तियों का नमक सने हुए नीबू आदि में पड़ता है. हरी मिर्च, धनिया का नमक ककड़ी के साथ एकदम मस्त होता है. माल्टा वगैरह में जीरे धनिया पत्ती मिर्च का नमक खाया जाता है. छांछ में जीरा पुदीने का नमक डालकर बढिया लगता है.
इसके अलावा तिल भूनकर तिल का नमक, धुंगार का नमक, दुन (धुंगार) का नमक, भंगीर के बीजों का नमक (गदुवे के डावे) के साथ, मेथीदाना को भूनकर मेथी का नमक भी बनता है. ये बाय-बात के लिए फायदेमंद होता है. धनिये के हरे बीजों का नमक भी बनता है. यह जौले के साथ मजेदार होता है. जौले के साथ जीरे का नमक भी खाते हैं.
नमक मुख्य रूप से यही बनते थे. इसके अलावा अपनी कल्पनाशक्ति से जीरा, धनिया (पत्ता या साबुत) लहसुन, पुदीना आदि से मसालेदार नमक बन जाते थे. इसके अलावा एक पल्लूण भी प्रयोग होता था जिसे हिन्दी में काला नमक कहते हैं. इसको खाने से पदैन बास आती थी पर गैस वगैरह बनने पर हाजमा खराब होने पर इसका प्रयोग करते थे.
(Uttarakhand Traditional Flavored Salts)
वर्तमान में हरिद्वार में रहने वाले विनोद पन्त ,मूल रूप से खंतोली गांव के रहने वाले हैं. विनोद पन्त उन चुनिन्दा लेखकों में हैं जो आज भी कुमाऊनी भाषा में निरंतर लिख रहे हैं. उनकी कवितायें और व्यंग्य पाठकों द्वारा खूब पसंद किये जाते हैं. हमें आशा है की उनकी रचनाएं हम नियमित छाप सकेंगे.
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