उत्तराखंड के आदि निवासी कौन हैं सदियों से बहस का मुद्दा रहा है. सवाल का उत्तर जो भी हो पर इस बात पर दोराय नहीं है कि वर्तमान में उत्तराखंड में रहने वाली अधिकांश जातियां बाहरी हैं. यहां रहने वाली अधिकाँश जातियों का यहां बसने से संबंधित अपना-अपना इतिहास मौजूद है. ऐसे में यह सवाल और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि आखिर उत्तराखंड का आदि निवासी कौन है?
(Uttarakhand ke Aadi Nivasi)
इस सवाल के जवाब की पड़ताल हेतु अगर धार्मिक साहित्य की मदद ली जाये तो हमें इसका जवाब वेद, पुराण, महाभारत, रामायण आदि में ही मिल जाता है. इसके अतिरिक्त कालिदास कृत रघुवंश महाकाव्य में. बाणभट्ट कृत कादम्बरी में, बारहमिहिर की बारही संहिता में, राज शेखर की काव्य मीमांसा में एक ही उत्तर मिलता है.
सभी जगह वर्तमान उत्तराखंड क्षेत्र में एक जाति के होने के साक्ष्य मिलते हैं, किरात. किरात, जिन्हें कुणिन्द या पुलिन्द भी कहते हैं. उत्तराखंड क्षेत्र की पहली राजनैतिक शक्ति थे कुणिन्द. उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में तीसरी-चौथी सदी तक कुणिन्दों का ही शासन रहा.
(Uttarakhand ke Aadi Nivasi)
महाभारत के तीन पर्वों : वन-पर्व, सभा पर्व और भीष्म पर्व में किरात जाति का वर्णन मिलता है. रामायण में वशिष्ठ-अरुंधती प्रसंग के समय भी किरात जाति का उल्लेख हुआ है. स्कन्दपुराण के केदारखंड में तो यहां तक कहा गया है कि पांडुपुत्र अर्जुन और शिव के मध्य हुए तुमुल संग्राम में भगवान शिव ने किरातों का ही नेतृत्व किया था. आज भी यह स्थान शिवप्रयाग नाम से प्रसिद्ध है.
कालान्तर में पशुचारन और आखेट के द्वारा अपन जीवनयापन करने वाले किरात जाति के लोगों को आर्यों ने शुद्र एवं अर्द्ध शूद्र की संज्ञा दी. वर्तमान में उत्तराखंड में रहने वाली शिल्पकार जाति इन्हीं किरातों के वंशज हैं. उत्तराखंड में रहने वाली सभी जातियों में केवल शिल्पकार ही हैं जो उत्तराखंड के आदि निवासी हैं.
(Uttarakhand ke Aadi Nivasi)
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यह सर्वथा गलत है कि उत्तराखंड के शूद्र या शिल्पकार जतियाँ यहाँ की मूल निवासी हैं। बल्कि हकीकत यह है कि यहाँ की शिल्पकार जतियाँ भी यहाँ के वर्तमान निवासियों के साथ समय समय पर यहाँ बाहर से ही आयी हैं। यहाँ के मूल निवासी 'भिल्ल, किरात, खश, कुणिंद, कुषाण, तंगण, परतंगण' आदि जतियाँ हैं जिनका जिक्र महाभारत आदि ग्रंथों में हैं। इनमें से कुछ जतियाँ मिश्रित हो गयी हैं जैसे खश, जिसे आज भी खस्या कहते हैं। कुछ को हमने उनके मुर्दा दफनाने की पद्धति के कारण मुसलमान घोषित कर डाला, जैसे 'चुड़ेर'। और जो लोग ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में रहते हैं, जो आज भी पशुपालक हैं, इन्हें हम पर्वतीय भी कहते हैं, ये भी मूल निवासी हैं। जिनके नैन-नक्श, चेहरे-मोहरे, रीति-रिवाज, तीज-त्योहार, बोली-भाषा, देवी-देवता हमसे सर्वथा भिन्न हैं। जिनका सोमेश्वर देवता प्राचीन वैदिक सोम देवता है, जिसकी ये पूजा करते हैं, यह शिव नहीं है, क्योंकि इसके मंदिर में शिवलिंग न होकर देवता की मूर्ति होती है, जो शिवालयों में नहीं होती।
Yeh bekar ki baaton ka prachaar kyun kiya jaa raha hai...agar sabhi jaatiyan bahar ki hai...to kumaoni gadwali bhasha kahan SE aayi...jabki ek bhasha sadiyon ke baad banti hai...yeh anushthaan Jo auron SE alag hai kahan se aaye....
Kol sabse pracheen prajati hai