समाज

ओ परुआ बौज्यू की गायिका वीना तिवारी

यदि उत्तराखंड और विशेषरूप से कुमाऊं अंचल की बात करूं तो यहां की सर्वाधिक पसंदीदा फीमेल वाइस नईमा खान उप्रेती, वीना तिवारी और कबूतरी देवी रही हैं और इन सभी गायिकाओं ने अपनी-अपनी कर्णप्रिय आवाजों से समूचे उत्तराखंड को अभिभूत किया. जब-जब भी कुमाऊनी लोकगीतों का जिक्र आएगा और इन पर कोई इतिहास बनेगा तो इन सभी लोकगायिकाओं का नाम सर्वोच्चता के शिखर पर होगा.
(Uttarakhand Folk Singer Veena Tiwari)

निःसंदेह इन सभी लोकगायिकाओं में वीना तिवारी का नाम सर्वाधिक और शीर्ष पर लिया जाएगा क्योंकि उन्होंने उपरोक्त दोनों गायिकाओं की तुलना में काफी प्रचुर संख्या में, जोकि लगभग पांच सौ की संख्या में हैं, लोकगीतों को अपनी मधुर आवाज से संजोया है. वो केवल कुमाऊनी गीतों तक ही नही सीमित रहीं वरन अनेकों गढवाली लोकगीतों को भी उन्होंने स्वर दिया. उनकी आवाज में एक सरलता, सहजता और कुमाऊनी पृष्ठभूमि की छाप रची बसी है. वीना तिवारी जी ने लखनऊ के भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय से वोकल में परास्नातक की उपाधि ली थी. बाद में उन्होंने एक संगीत शिक्षिका के रूप में अपनी सेवाएं दी. मूलतः वीना तिवारी जी मायका खोल्टा मोहल्ला, अल्मोड़ा व ससुराल ज्योली, हवालबाग में है.

फोटो: वरिष्ठ पत्रकार जगमोहन रौतेला

बीसवीं सदी के छठे दशक के उत्तरार्ध में ट्रांजिस्टर ने कुमाऊं के गांव-गांव में अपनी पकड़ बना ली थी क्योंकि वो विद्युत से चलने की बजाय सामान्य टार्च बैटरी से चलते थे, चूंकि उस दौर में सब जगहों पर विद्युतीकरण का अभाव था, अतः ट्रांजिस्टर की पकड़ गांव-गांव में हो चुकी थी. पर्वतजन की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए सन 1963 में आकाशवाणी लखनऊ ने अपना आंचलिक कार्यक्रम उत्तरायण आरम्भ किया जोकि शुरू-शुरू में तो केवल पंद्रह मिनट का हुआ करता था पर राजधानी से सुदूर रहने वाले उत्तराखंड वासियों में यह प्रोग्राम इतना लोकप्रिय हो चुका था कि आकाशवाणी लखनऊ को आहिस्ता-आहिस्ता अपनी इस पेशकश को पूरे एक घंटे तक विस्तारित करना पड़ा था.
(Uttarakhand Folk Singer Veena Tiwari)

उस दौर के प्रमुख लोकगायक व लोकगायिकाओं को सुनने के लिए पहाड़ियों का हुजूम ट्रांजिस्टर से सायं पांच बजे से ही चिपक जाता था. तब मेल वाइस में गोपाल बाबू गोस्वामी, शेर दा अनपढ़, मोहन सिंह रीठागाड़ी, जीत सिंह नेगी,नरेन्द्र नेगी आदि गायकों एवं फीमेल वाइस में वीना तिवारी एवं कबूतरी देवी ऐसे नाम थे जिनके द्वारा प्रस्तुत गीत उत्तरायण कार्यक्रम में लगभग हर रोज सुनने को मिल जाते थे. जहां तक मुझे याद है कि हर सोमवार व बृहस्पतिवार को कुमाउनी व गढ़वाली लोकगीतों का फरमाईशी कार्यक्रम हुआ करता जिसमें वीना तिवारी एक ऐसा नाम था जिनके गीत एक ही फरमाईशी कार्यक्रम में कई-कई बार सुनने को मिलते. तब दूरदर्शन तो था नहीं केवल कल्पना से ही उनकी छवि बना लिया करते थे. वीना तिवारी श्रोताओं में इस दौर का एक जाना माना नाम हुआ करता था. लाखों पर्वतजनों के साथ-साथ मैं भी उनकी सुमधुर, गंभीर और कर्णप्रिय आवाज का एक लोभी भंवरा था.

इन लोकगायकों के एक से एक अनमोल गीत होते हैं लेकिन उनमें से कुछ एक गीत लोकगायक की स्थायी पहचान बन जाता है. कुछ ऐसे ही लोकगीत जैसे “बाट लागी बरात चेली बैठ डोली मा’’ व “झन दिया बौज्यू छाना बिलोरी’’ तथा “ओ परूवा बौज्यू चप्पल के ल्याछा यस’’ कुछ ऐसे लोकगीत हैं जो बरबस वीना तिवारी का स्मरण करा देते हैं.  बाट लागी बरात चेली तथा छाना बिलोरी गीत तो वीना तिवारी के नाम से स्थायी रूप से चिपककर उनकी अमिट छाप बन चुके हैं. इसी तरह शेर दा अनपढ़ के साथ जुगलबन्दी में वीना तिवारी द्वारा गाया गीत “ओ परूवा बौज्यू चप्पल के ल्याछा यस’’ भला कौन भूल सकता है जो उस दौर का एक सर्वाधिक चर्चित लोकगीत था. हालाकि यह एक हास्य प्रमुख गीत है पर वीना तिवारी जी ने अनेक ऐसे गीत गाएं हैं जिनके भावों में गम्भीरता है तथा पर्वतीय लोकजीवन व लोकसंस्कृति की छवि झलकती है. बेटी की ससुराल पर विदाई का गीत ’’ बाट लागी बरात चेली बैठ डोली मा’’ हर इन्सान की आंखे नम कर देती हैं.  ” फूलबुरांशी का कुमकुम मारो” आज भी एक लोकप्रिय होली गीत है. वीना तिवारी जी द्वारा स्वर दिए गए अधिकतर गीत क्रमशः श्री चारू चन्द्र पांडे जी, श्री गोपाल दत्त भट्ट जी और श्री बंशीधर पाठक जिज्ञासु जी के द्वारा रचित हैं हालाकि ये सूची बहुत वृहद है पर मुख्यतः इन तीनों लोक रचनाकारों की रचनाएं ही उनके अधिकतर गानों का हिस्सा है.

वीना तिवारी जी द्वारा स्वरबद्ध “पारक भिड़ा जाणिए बटुवा रे”, “पार भीडा बुरूँशी फुली रौ” आदि कुमाऊनी लोकगीत भी काफी सराहे गए. प्रसिद्ध मांगल गीत ‘दे देवया बाबा जी कन्या को दाना’ गीत को भी उन्होंने अपनी आवाज दी जोकि कुमाऊनी समाज में अतिप्रशंसित रहा. साथ ही उन्होंने कुमाउँनी लोरी गीत गाकर भी अपनी कला का बेमिसाल परिचय दिया. उनके द्वारा गाए गीत की धुन ‘झन दिया बाज्यू छाना बिलौरी’ को बीटिंग रिट्रीट 2022 में भारतीय सेना द्वारा राजपथ दिल्ली में प्रस्तुत किया गया.
(Uttarakhand Folk Singer Veena Tiwari)

निःसंदेह श्रीमती वीना तिवारी उत्तराखंड के लोकगीत गायिकाओं में अव्वल रही हैं पर खेद की बात है कि उत्तराखंड बनने के दो दशक बाद भी वहां की सरकार ने उन्हें उस उचित सम्मान से नही नवाजा जिसकी वो हकदार थीं. खैर अब एक अत्यंत सुखद खबर आई है कि उन्हें ‘यंग उत्तराखण्ड सिने अवार्ड 2022’ के अन्तर्गत ‘यंग उत्तराखण्ड लीजेंडरी सिंगर अवार्ड 2022’ प्रदान किया गया है. विस्मृत सी हो चुकी इस लोकगायिका को इस संस्था द्वारा याद किये जाने के वास्ते जूरी के सदस्यों के प्रति आभार बनना स्वाभाविक है. आमजन कलाकार के व्यक्तित्व को भले ही भूल जायें लेकिन उनके द्वारा समाज को जो अवदान रहता है वह कभी भी नहीं भुलाया जा सकता और चिरस्मरणीय रहता है. वीना तिवारी जी का नाम भले ही लोग भूल जायें लेकिन ’छाना बिलोरी ’ व ‘बाट लागी बरयात चेली’ लोकगीतों से उनकी पहचान उत्तराखंड के जनमानस में हर हमेशा जीवन्त रहेगी.

मां सरस्वती की वरद्पुत्री वीना तिवारी के गीतों के स्वरों में जो मिठास और सरसता है, लोकव्यवहार में भी वह उतनी ही सहज, सरल, सौम्य, मृदु भाषी एवं आत्मीयता से परिपूर्ण है. वर्तमान में हल्द्वानी में सैटल हो चुकी वीना तिवारी जी अपने लोगों से सदैव अपनी ही लोकभाषा कुमाऊनी में बात करना कुमाउनी लोकभाषा के प्रति उनके अगाध स्नेह को दर्शाता है. हम उनके स्वस्थ एवं चिरायु जीवन की कामना करते हैं ताकि लम्बे समय तक वे संगीत प्रेमियों का मार्गदर्शन व प्रेरणा देती रहें.
(Uttarakhand Folk Singer Veena Tiwari)

मूल रूप से अल्मोड़ा के रहने वाले डा. नागेश कुमार शाह वर्तमान में लखनऊ में रहते हैं. डा. नागेश कुमार शाह आई.सी.ए.आर में प्रधान वैज्ञानिक के पद से सेवानिवृत्त हुये हैं. अब तक बीस से अधिक कहानियां लिख चुके डा. नागेश कुमार शाह के एक सौ पचास से अधिक वैज्ञानिक शोध पत्र व लेख राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में प्रकाशित हो चुके हैं.

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