हैडलाइन्स

सवाल: पहाड़ी और पेपर घोटाला

वैसे हम पहाड़ी हमेशा ही ठगे  गए. जब हम उत्तर प्रदेश में थे, उस वक़्त अलग राज्य बनने के लिए हमने मार खाई. हमारी मां-बहनों से बेइज्जती की गई. कई लोगों की जान चली गई. उस वक़्त कई तरह की उम्मीदें रही. अलग-अलग तरह की बात होती. कुछ लोग कहते राज्य बनने के बाद नौकरी मिलेगी. स्कूलों में जो यादव, भूमिहार,  मौर्य शिक्षक हैं  उनके बदले हम पहाड़ियों की औलादों को नौकरी मिलेगी. पुलिस में भी भूमिहार, बरनवाल, खंगार जाति के जो लोग हैं वे अपने घर चले जायेंगे. फिर हमारे बच्चे खाकी वर्दी पहनेंगे.
(Uttarakhand Bharti Scam 2022)

कुछ लोगों की इस बात पर दिल्ली सहित अन्य महानगरों में होटलों में काम करने वाले नौजवान भी राज्य आंदोलन में कूद गए. कुछ नेता हर गांव में सड़क पहुँचाने, स्कूल खुलने, पानी की पीड़ा को दूर करने, युवाओं को रोजगार देने की बात करते. राज्य बनने के बाद यह हुआ भी. गांवों में सड़क बनी (उसमें मेरा गांव भी शामिल है), स्कूल भी बने, अस्पताल भी बने. 

जो सड़क 10 साल पहले बनी. वह जल्द ही एक तरह से बीमार हो गई. उसको बनाने वाले ठेकेदार अब विधायक या बड़े नेता बन गए. स्कूल का भवन बनाने वाले भी जो पहले 60 किलो के थे. उनका वजन भी 80 हो गया. स्कूल में अब शिक्षक हैं, लेकिन पढ़ने वाले छात्रों की कमी है.

बहरहाल, अब नौकरी की बात. बहुत लोग नौकरी में लगे. हम पहाड़ियों के माँ बाप की एक ही ख्वाहिश होती है. लड़का किसी तरह सरकारी नौकरी में लग जाय (अब लड़की भी), इसके लिए वह ग्राम प्रधान से लेकर ब्लॉक प्रमुख सभी से कहते हैं कि मेरे लड़के की नौकरी लगा दे और विधायक से भी. खैर हमारे विधायक (पहले) तो विधानसभा में नौकरी लगाने को लेकर ही चर्चाओं में रहे. तब विधायक जी ने पत्रकारों पर भी दया दिखाई. किसी के लड़के को नौकरी दी, किसी के भाई, तो किसी की पत्नी को विधानसभा में सरकारी कुर्सी में बिठा दिया. हालांकि जब नौकरी का जुगाड़ लग रहा था. मैं ना तो विधायक से मिला, ना ही किसी रिश्तेदार की नौकरी लगाने के लिए मैंने चमचागिरी की.
(Uttarakhand Bharti Scam 2022)

आज तो विधानसभा में सभी नेताओं का कोई ना कोई आदमी नौकरी कर रहा.  मेरे वह दोस्त भी सरकारी नौकरी में लगे. जिनको साल 2010 से 2012 में 1500 की अखबार की नौकरी में अल्मोड़ा के नार्जन रेस्टोरेंट में चाउमीन और मोमो खिलाता. उनको खर्च के लिए उधार देता. एक सरकारी नौकरी के लिए मैंने भी साल 2014 में परीक्षा दी. मामूली नंबरों से रह गया. उसके बाद कभी सरकारी नौकरी के पीछे नहीं भागा.

अब बात आज उत्तराखंड में हो रहे परीक्षा घोटाले की. रोज नई बात सामने आ रही है. पुलिस भर्ती की जांच की बात सामने आने के बाद अब  ये भी हो सकता है कि यदि भर्ती में फर्जीवाड़ा सामने आया तो जो दरोगा जी आज वर्दी का रौब दिखा रहे हैं. वह भी पैदल हो जाएंगे. हो सकता है नियम का पाठ पढ़ाने वालो ने भी किसी का हक मारा हो.

जिस तरह से घोटाला सामने आ रहा है  उससे लगता है कि अब एलटी परीक्षा पर भी लोग सवाल उठाने लगे हैं.

बात तो यह भी है कि इतना बड़ा घोटाला हो गया. कई युवा और उनके परिवार वाले सदमे में आ गए. जुगाड़ से नौकरी पाने वालों की नींद भी हराम है. सवाल फिर उठता है… छोटी-छोटी बात पर धरने में बैठने वाले हरीश  रावत और उत्तराखंड कांग्रेस के तेवर नरम है. आम आदमी पार्टी और यूकेडी भी अभी तक प्रेस नोट और धरने तक सीमित है. अब तो सोशल मीडिया में मुख्यमंत्री, कैबिनेट मंत्रियों के परिचितों की विधानसभा में नौकरी लगने की बात सामने आ रही है.

दूसरी और भर्ती घोटाले की जांच चल रही और आरोपी पकड़े जा रहे हैं. लेकिन बड़ौनी और राजू के बारे में कुछ पता नहीं. क्या उनके खिलाफ भी मुकदमा होगा? क्या राज्य बनने के बाद जो भी परीक्षायें हुई उन सबमें गड़बड़ी हुई ?,  क्या इस पेपर घोटाले की सीबीआई जांच होनी चाहिए?, या फिर जो अगली परीक्षा होगी उसमें कोई गड़बड़ी नहीं होगी उसकी गारंटी कौन लेगा? या फिर हर परीक्षा का रिजल्ट आने के बाद मेरे से कम उम्र के नौजवान अपने घर में यहीं कहेंगे जिनका जुगाड़ था उनकी नौकरी लग गई… उनके घर वाले भी नेता और अफसरों को नजर आएंगे.
(Uttarakhand Bharti Scam 2022)

कई प्रमुख दैनिक अख़बारों में काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद डालाकोटी वर्तमान में अंग्रेजी दैनिक टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए काम कर रहे हैं.

इसे भी पढ़ें: कोरोना से लड़ती उत्तराखण्ड की महिलाएं कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा सम्मानित

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Sudhir Kumar

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