कला साहित्य

उर्दू काव्य में हिमालय

हिमालय की महिमा का गुणगान संस्कृत और हिन्दी की तरह उर्दू काव्य में भी मिलता है. इसकी विराटता का ज़िक्र उर्दू भाषा के कवियों ने भी खूब किया है. इसका कारण यह है कि हिमालय ने सम्पूर्ण भारतीय चितन और मनीषा को प्रभावित किया है और उन्हें चेतना से संयुक्त किया है. उर्दू भाषा के अनेकानेक कवियों ने अपनी-अपनी दृष्टि से हिमालय का यशोगान किया है. पर तीन कवियों का नाम इस संदर्भ में बड़े आदर के साथ लिया जाता है. इकबाल, नजीर बनारसी और अमीक हनफी. इन तीनों कवियों ने हिमालय की विशालता का वर्णन खूब किया है.
(Urdu Poem About Himalayas)

इकबाल ने सांस्कृतिक दृष्टि से, नजीर बनारसी ने सामाजिक एवं राष्ट्रीय दृष्टि से तथा अमीक हनीफ ने प्राकृतिक दृष्टि से हिमालय का मूल्यांकन किया है. इन कवियों की दृष्टि बड़ी ही व्यापक और पैनी है. इन्होंने इसे राष्ट्रीयता, एकता और प्रेम का प्रतीक माना है. हिमालय सदियों से भारत का पोषक, रक्षक और प्रहरी रहा है. इसने आबोहवा, वर्षा, खनिज पदार्थों, जड़ी-बूटियों आदि अनेक दृष्टि से भारत को समृद्ध किया है. भारत इसका आभारी है और भविष्य में भी रहेगा. जहाँ तक काल का प्रश्न है, इन्होंने अपनी दो कविताओं तराना-ए-हिन्दी और हिमालय में पर्वतराज की महिमा का वर्णन किया है. इन्होंने प्रथम कविता में भारत भूमि का वर्णन करते हुए लिखा है कि हमारा हिन्दुस्तान सारे जहाँ से अच्छा है. यह एक बाग है और हम भारतवासी इसके बुलबुल हैं; अगर हम विदेश में रहते हैं तो भी यह हमारे दिल में रहता है. हम जहाँ कहीं भी जाते हैं, यह सदा हमारे दिलोदिमाग में रहता है. भारत ही नहीं अपितु विश्व का सबसे ऊंचा पर्वत हिमालय आसमान का हमसाया है. वह हमारा संतरी और रक्षक है. इसकी गोदी में हजारों नदियाँ खेलती रहती हैं. यह हमारा सांस्कृतिक गुलशन है और स्वर्ग के देवता भी इसके लिए तरसते रखते रहते हैं –

परवत वो सबसे ऊंचा हमसाया आसमां का
वो संतरी हमारा, वो पासवां हमारा
गोदी में खेलती हैं इसकी हजारों नदियाँ
गुलशन है जिनके दम से रश्के जनां हमारा

कवि पुनः कहता है कि हे गंगा, तुझे वह दिन याद है जब तुम्हारे किनारे पर हमारा कारवां उतरा था. कवि इसी के माध्यम से इस बात पर बल देता है कि दुनिया का कोई भी मजहब पारस्परिक लड़ाई को बढ़ावा नहीं देता, और फिर हम तो भारतवासी है और हमारी राष्ट्रीयता का यह तकाजा है कि हम मिल-जुलकर आपस में रहें. संसार की सारी पुरानी सभ्यताएँ जिनमें यूनान, मिश्र और रोम प्रमुख हैं, मिट गयीं पर हमारी सभ्यता अभी भी बची हुई है. हमारी संस्कृति में कुछ ऐसी बात अवश्य है कि दुश्मनों के लगातार आघात के बावजूद भी यह मिट नहीं सकी. कवि को अपनी संस्कृति पर नाज है कि वह अनेक काल-चक्र में पड़कर भी आज मौजूद है. कवि कहता है कि हमें अपनी संस्कृति पर नाज है क्योंकि वह हमें कभी भी मिटने नहीं देगी. चाहे कोई लाख चेष्टा क्यों न करे, वह हमारी भारतीयता को, हमारी एकता और प्रमविष्णुता को समाप्त नहीं कर सकता. इस प्रकार इकबाल ने तराना-ए-हिन्दी में भारत और हिमालय की सशक्त परम्परा का उल्लेख किया है और विभिन्न दृष्टिकोणों से इसका मूल्यांकन किया है.
(Urdu Poem About Himalayas)

इन्होंने अपनी दूसरी कविता “हिमालय” में इसकी विराटता, व्यापकता और सुन्दरता का सजीव चित्र प्रस्तुत किया है –

ए हिमाला ए फसीले-किश्वरे-हिन्दोस्ता!
घूमता है तेरी पेशानी को शुक कर आसमां!
तुझमें कुछ पैदा नहीं, दैरीना-रोजी के निशां!
तू जवां है गर्दिशे-शानों-शहर के दर्मियां.
एक जलवा था कलीमें-तूरे-सीना के लिए !
तू तजल्ली है सराया चश्मे-वीना के लिए !

अर्थात् हिमालय भारत देश की दीवार है. आसमान इसके मस्तक को झुक कर चूमता है. यह कभी वृद्ध नहीं होता और अनेकानेक कालचक्र में भी जवान रहता है. हजरत मूसा ने इसके तूर नामक पहाड़ पर ईश्वर की परम ज्योति का दर्शन किया था और यह एक प्रकार का जलवा था. है, हिमालय, तू ज्योति है, साकार है और एक सच्चा पारखी है. इस तरह इकबाल ने हिमालय के विविध रूपों और उसके मनोमुग्धकारी दृश्यों का इस कविता में अच्छा वर्णन किया है. उन्होंने हिमालय से सम्बन्धित उन घटनाओं का भी वर्णन किया है, जो आज इतिहास और पुराण के विषय-वस्तु बन गए हैं और आज भारतवासियों को जिस पर नाज है . इकबाल पुनः इसकी प्रशंसा में लिखते हैं –

हे हिमालय ! दास्तां उस वक्त थी कोई सुना
मस्कने आवा-ए-इन्सां जब बना दामन तेरा
कुछ बता उस सीधी सादी जिन्दगी का माजरा
दाग जिस पर गाजा-ए-रंगे-तकल्लुफ का न था.
हाँ, दिखा दें ए तसव्वुर फिर वो सुबह-आ-शाम तू
दौड़ पीछे की तरफ ए गर्दिशे अय्याम तू.

कवि कहता है कि हे हिमालय, तुम उस वक्त की कोई कहानी सुनाओ, जब तुमने पहले पहल प्रथम मानव को आश्रय दिया था. तुम उस सरल जिन्दगी के बारे में बताओ जिसपर तकल्लुफ के रंग की लीपापोती नहीं थी. तुम उस पहले वाले सुबह- शाम को दिखा दो . ऐ ! समय के चक्र, तुम उस इतिहास को प्रगट कर दे. सारांश यह कि कवि ने इन पक्तियों में हिमालय में बसने वाले उस अदिम मानव के बारे में वर्णन किया है जो बड़े ही नेक, ईमानदार और सरल थे. उनमें कृत्रिमता नाम की कोई चीज नहीं थी. उनका चरित्र बड़ा ही पवित्र और उदात्त था . संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि इकबाल ने अपनी इस कविता में अपनी राष्ट्रीयता का भव्य परिचय दिया है; इन्होंने भारतभूमि के प्रति अपने लगाव का वर्णन किया है और अन्ततोगत्वा अपने देशप्रेम का परिचय दिया है .
(Urdu Poem About Himalayas)

नजीर बनारसी एक अच्छे कवि और शायर हैं. इनकी रचनाओं में देश-प्रेम और राष्ट्रीयता की एक अच्छी झलक मिलती है. इन्होंने “वतन का शिवालय” नाम की एक कविता लिखी है जिसमें हिमालय के विविध पक्षों पर विचार किया गया है. सन् 62 में भारत की पावन भूमि पर जब चीन ने आक्रमण किया था, तब कवि का वीरत्व जाग उठा था और इसने हिमालय का आह्वान कर एक अच्छी कविता लिखी थी. इस कविता में कवि ने हिमालय को वतन का शिवाला कहा है .

कलाओं का मन्दिर अदब का शिवाला,
पवन का पुराना निगाहबां हिमाला
यह भारत का मस्तक है भारत का मस्तक
किसी के झुकाए नहीं झुकने वाला !
हिमालय की चट्टान बन कर लड़ेंगे
हम एक-एक चप्पा की खातिर लड़ेंगे.

कवि का कथन है कि हमें किसी की जरूरत नहीं है. हम अपने वतन की हिफाजत खुद कर लेंगे. चीनी लुटेरों को यहाँ आने का कोई हक नहीं है. अमर फरिश्तों को भी यहाँ आना होगा तो हमसे इजाजत लेकर आयेंगे . यह हमारी भूमि है. यह हमारा प्यारा वतन है. इस आक्रमण को व्यर्थ सिद्ध करने के लिए कवि देशवासियों को आह्वान करते हुए कहता है कि हे मेरे देशवासियों, आज तूफान तुम्हें बुला रहा है, अतः तुम गुफाओं और मंडपों से निकलकर इस आक्रमण को व्यर्थ करो. कवि पुनः कहता है कि हे मेरे देशवासियो ! तुम शेर हो, तुम्हारी तराई आज खतरे में है. आज तुम्हारे सामने तुम्हारा शिकार आ रहा है. अतः कछारों से निकलकर उसे अपने वश में कर लो . आज देश पर जुल्म की घटा छा गई है और तुम्हारे गरजने का मौसम भी आ गया है. कवि इस कविता में देशवासियों को प्रेरित करते हुए कहता है कि तुम चीनियों के इरादों पर पानी फेर दो. तुम हिन्द सागर से रवानी लेकर चलो. तुम आज दुश्मनों को ऐसी करारी चोट दे दो कि वह घबराकर वापस लौट जावे. हे भारत के वीर जवानो ! तुम तीर की तरह बढ़ते आओ और दुश्मनों को घायल करते जाओ .
(Urdu Poem About Himalayas)

कवि इस हमले को रेखांकित करते हुए कहता है कि यह हम सभी की इज्जत पर हमला है. यह पुरखों की इज्जत पर हमला है. यह हमला किसी सीमा तक सीमित नहीं है बल्कि यह पूरे देश पर हमला है. मगर हमें इस हमले से घबराना नहीं चाहिये ; बल्कि डटकर इसका मुकाबला करना चाहिए. कारण हमारे शरीर में भी कम लहू नहीं है. हम इस हमले का डटकर सामना करेंगे और आवश्यकता पड़ने पर लाखों की बलि चढ़ायेंगे. अगर दुश्मन ने हमारे देश के किसी भी एक हिस्से पर अधिकार किया तो हम उसको रक्त-रंजित कर देंगे और लाखों लाशों का अम्बार लगा देंगे. हम ईंट का जवाब पत्थर से देंगे . इस हमले के भयावह रूप का वर्णन करते हुए लिखता है –

है शायर की पाकीजा दुनिया पे हमला,
है कवियों की हर ऊंची उपमा पे हमला,
है खतरे में पाकीजगी कल्पना की-
यह हमला है लहराती गंगा पे हमला !
बचे जिस तरह भी हिमालय बचाओ !
बचाओ वतन का शिवालय बचाओ !

अर्थात् चीनियों का यह आक्रमण हमारी संस्कृति और सभ्यता पर है. यह हमारी उपमाओं पर हमला है . आज हमारी दिव्य कल्पना खतरे में पड़ी है. यह हमारी गंगा मैया पर एक क्रूर हमला है. देशवासियो ! जिस तरह भी हो सके, इस हिमालय को बचाओ . हिमालय हमारे वतन का शिवालय है – इसे किसी भी कीमत पर बचावो . आज तुम्हारा प्रहरी हिमालय तुमसे वलिदान मांगता है . अत अपना बलिदान देकर भी इसे बचाओ .
(Urdu Poem About Himalayas)

इकबाल और नजीर बनारसी की ही परम्परा में मु० अमीक हनीफ आते हैं. इनकी कविता “मीठे सपने समेट लाते थे” में एक तरफ जहाँ हिमालय की प्राकृतिक सुषमा का वर्णन है; वहीं दूसरी तरफ हिमालय की पहाड़ियों पर चीनियों के आक्रमण का भी चित्रण है जिसके फलस्वरूप आज हिमालय की पहाड़ियाँ गोलियां खाकर चीख रही हैं. कवि व्यंजना के माध्यम से यह कहना चाहता है कि हे देशवासियो ! आज तुम्हारे हिमालय पर आक्रमण हो रहे हैं; तुम इसका डटकर मुकाबला करो और दुश्मनों के दांत खट्टे कर दो. कवि हिमालय का वर्णन करते हुए लिखता है कि हिमालय की ढाल पर चरवाहे मस्त होकर गाते थे, बांस वन सीटियां बजाते थे; बेत के पुल लचकते रहते थे और तलुओं को गुदगुदाते थे. हिमालय के साए में झरने पिछली चांदनी की तरह गुनगुनाते थे और हवा के झोंके दिशाओं को झंकृत करते रहते थे. हिमालय के बादल अपने पंखों से ब्रह्मपुत्र को थपथपाते थे और इस दृश्य को देखकर दर्शक अपनी आंखों में मीठे सपने समेट लाते थे. हिमालय हर प्रकार से भरपूरा था. लेकिन दुश्मनों के आक्रमण के फलस्वरूप आज इसकी स्थिति बदल गयी है . आज इसकी पहाड़ियाँ भयाक्रान्त है.
(Urdu Poem About Himalayas)

आज उस बर्फ पोश वादी में
हो गए हैं पहाड़ सर व कफन
गोलियाँ चीख चीख पड़ती हैं
गूंज उठते हैं कोहो दश्तो दमन

नजीर बनारसी ने अपनी अन्य कविताओं में भी हिमालय की गरिमा का वर्णन किया है और इसके माध्यम से भारतवासियों में चेतना पैदा की है. उन्होंने अपनी सुप्रसिद्ध कविता “हमारा हिन्दुस्तान” में भारत और हिमालय के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन किया है—

हंसता परवत हंसमुख झरना,
पांव पसारे गंगा जमना
गोदी खेले धरती माता
मेरा निवास स्थान यहीं है, हमारा हिन्दुस्तान यहीं है .
एक तो ऊंचे सबसे हिमालय
उस पर मेरे देश का झंडा
धरती पर आकाश का धोखा
मेरा निवास स्थान यही है, हमारा हिन्दुस्तान यही है .

नज़ीर बनारसी ने अपनी दूसरी कविता “दिल आज दिल से, कदम से कदम मिला के चलो” में भारतवासियों को हिमालय से प्रेरणा लेने की सीख दी है —

लहू में गंगो जमन दोनों की रवानी है,
तुम्हारा दिल नहीं भारत की राजधानी है,
हिमालय की तरह अपना सर उठा के चलो
दिल आज दिल से, कदम से कदम मिला के चलो.

नजीर बनारसी ने अपनी एक सुप्रसिद्ध कविता “समय की पुकार” में अपने देशवासियों को समय की पुकार को सुनने के लिए आग्रह किया है और साथ ही यह चेतावनी भी दी है कि उसे किसी भी कीमत पर अपने देश के साथ घात नहीं करना चाहिए –

इस वक्त गजल की बात न कर
संतान हंसे तो कैसे हंसे
इस वक्त है माता खतरे में,
संसार के परवत का राजा
है अपना हिमालय खतरे में
है सामना कितने खतरों का
है देश की सीमा खतरे में
ए दोस्त वतन से घात न कर
इस वक्त गजल की बात न कर.
(Urdu Poem About Himalayas)

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद गुप्त का यह लेख 1980 में प्रकाशित हो चुका है.

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