समाज

क्या आवश्यक हैं रामलीला में अशोभनीय प्रसंग?

सीता स्वयंवर व धनुष यज्ञ प्रसंग में अनेक रामलीलाओं में फूहड़ता देखने को मिलती है. धनुष तोड़ने आये राजाओं की वेशभूषा, भाषा बोली और उनके द्वारा बोले व गाये जाने वाले संवाद और गीत दर्शकों को खटकते हैं. अश्लील किस्म के शब्दों और गीतों का प्रयोग किसी भी तरह शोभा नहीं देता है. इसी के साथ ब्रिटिश या नेपाली राजा का अभिनय भी स्वाभाविकता के विपरीत लगता है. नेपाली राजा का कंधे में डोका बांधकर आना या किसी अन्य राजा का हुक्का गुड़गुड़ करते और खांसते हुए आना भी शोभा नहीं देता. जनक दरबार के मंत्री और राजाओं के आगमन पर मजाक और उपहास के रूप में राजाओं के प्रति कथन भी किसी प्रकार से अच्छा नहीं लगता. ये अभिनय और संवाद भले ही दर्शकों को हंसाने में सफल हो जाते हों परन्तु ऐसे दृश्य रामलीला मंचन की गंभीरता और गरिमा में कमी अवश्य ला देते हैं. (Unnecessary and Obscene Parts of Ramlila)

राक्षस कुल के पात्रों – खर-दूषण, मेघनाद, कुम्भकर्ण आदि को मंच पर शराब पीते हुए दिखाना भी फूहड़ ही है. कहीं-कहीं तो रामलीला में ये पात्र असली शराब पीकर वास्तविक राक्षसी माया दिखाने लगते हैं. इन राक्षस पात्रों के दरबार में अप्सराओं को बुलाना, उनका नृत्य और उनके द्वारा गाये जाने वाले गीत भी अश्लीलता और फूहड़ता की सीमा पर पहुँचते लगते हैं. फ़िल्मी गीत व उसी शैली का नाच किसी भी प्रकार शोभनीय नहीं कहा जा सकता. (Unnecessary and Obscene Parts of Ramlila)

तुलसीकृत ‘रामचरितमानस’ में रावण को कहीं भी पतित नहीं दिखाया गया है. उसकी तुला एक ऐसे सम्राट से की गयी है जो बहुगुणी व कुशल राजनैतिज्ञ है. रामलीला नाटक भी इसी पुस्तक के आधार पर लिखे गए हैं. लेकिन रामलीला के मंचन में उसे एक ऐसे पात्र के रूप में दिखाया जाता है जो कि बहुत गिरा हुआ है.

इसी तरह कैकेयी-मंथरा संवाद प्रसंग, सुषेण-वैद्य प्रसंग, शबरी प्रसंग और केवट प्रसंग आदि में अत्यधिक हास्य का भाव लाने के निमित्त उनकी गंभीरता में कमी आ जाती है.

कुमाऊँ की रामलीला में विदूषक (जोकर) भी एक मुख्य पात्र होता है. विशेषतः ग्रामीण क्षेत्र की रामलीलाओं में विदूषक एक अनिवार्य और मुख्य पात्र होता है. यहाँ स्व. खीमनाथ जैसे विदूषक भी हुए हैं जिनके किसी रामलीला में आने की सूचना मात्र से अपार जनसमूह उमड़ आता था. स्व. खीमनाथ रामलीला के किसी भी पात्र का भीने कर लेते थे और उनके अभिनय व विदूषक कर्म में कहीं भी अश्लीलता या फूहड़ता नहीं मिलती थी. आज विदूषक के रूप में स्व. खीमनाथ जैसे कलाकार तो नहीं रहे परन्तु विदूषक की परम्परा बरकरार है.

ग्रामीण क्षेत्रों में रामलीलाओं में विदूषक का काम दर्शकों को हंसाना होता है. काफी देर तक एक ही स्थान पर बैठे दर्शकों में नीरसता, बोझिलता और सुस्ती आ जाती है जिसे तोड़ने के लिए विदूषक आता है ताकि दर्शक पुनः तल्लीन होकर रामलीला देख सकें. कोई कोई विदूषक हास्य के साथ ही सामाजिक विसंगतियों और विद्रूपताओं पर भी व्यंग्य करते हैं.

ग्रामीण क्षेत्र की रामलीलाओं में विदूषक का पात्र हर समय तैयार रहता है. उसे कभी भी मंच पर आने की छूट सी मिली रहती है. इस कारण ही कई विदूषक गंभीर दृश्यों के बीच भी उपस्थित हो जाते हैं और दृश्य की गंभीरता को समाप्त कर देते हैं. लक्ष्मण-शक्ति, अंगद-रावण संवाद, जटायु मरण, हनुमान द्वारा लंका दहन, रावण विलाप और मन्दोदरि विलाप ऐसे गंभीर और कारुणिक ओप्रसंग हैं जिनके बीच विदूषक के आने से उनकी गंभीरता ख़तम हो जाती है और उनका आना अशोभनीय लगाने लगता है.

रामलीलाएं हमारी संस्कृति की वाहक हैं. साथ ही रामलीला कथानक हमारी सामाजिक व्यवस्था का आदर्श रूप है. इस आदर्श व सांस्कृतिक परम्परा के वास्तविक स्वरूप को बनाए रखने के लिए जो कुछ भी अश्लील, अशोभन और फूहड़ दिखाई देने लगा है, उसे रोका जाना आवश्यक है.

हयात सिंह रावत

(यह आलेख ‘पुरवासी’ के अंक 18 – वर्ष 1997 में छपे हयात सिंह रावत के लेख का संक्षिप्त संस्करण है. ‘पुरवासी’ का आभार.)

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

View Comments

  • वर्तमान में अश्लीलता या फूहड़ता के मायने ही बदल गए हैं। लोग मानने को ही तैयार नहीं होते कि ये सब अश्लीलता की सूची में आता है। यहाँ तो दृष्टिदोष बताया जाता है मतलब देखने का नजरिया ठीक रखो। विदूषक सामन्य तौर पर हर जगह की रामलीला और कृष्णलीला में होते हैं पर फूहड़ता की अनुमति कहीं भी नहीं होनी चाहिए।

Recent Posts

उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ

उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…

2 days ago

जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया

अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…

6 days ago

कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी

हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…

6 days ago

पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद

आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…

6 days ago

चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी

बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…

6 days ago

माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम

आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…

6 days ago