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उत्तराखण्ड की शान है उन्मुक्त चन्द

26 मार्च 1993 को जन्मे युवा क्रिकेटर उन्मुक्त चन्द की जड़ें उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जिले के छोटे से गाँव खड़कू भल्या में हैं. उनके पिता भरत चन्द ठाकुर और उनकी माता श्रीमती राजेश्वरी चन्द दोनों की शुरुआती शिक्षा पिथौरागढ़ में हुई थी. बाद में दोनों ने दिल्ली में शिक्षक के रूप में कार्य किया.

दायें हाथ के इस क्लासिक शैली के बल्लेबाज का ताल्लुक दिल्ली की टीम से है जिसके लिए वे रणजी ट्राफी समेत सभी प्रतियोगिताओं में नियमित हिस्सा लेते रहे हैं.

उन्मुक्त अपनी ख्याति के चरम पर 2012 में पहुंचे जब ऑस्ट्रेलिया में हो रहे अंडर-19 विश्व कप में वे भारतीय टीम के कप्तान थे. उनकी कप्तानी में भारत ने विश्वकप जीता. इस प्रतियोगिता का आख़िरी फाइनल मैच भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच टाउन्सविल में खेला गया था जिसमें कप्तानी पारी खेलते हुए उन्मुक्त ने नाबाद 111 रन बनाए थे. उन्मुक्त की इस पारी को देख कर इयान चैपल ने उन्हें भारतीय क्रिकेट का भविष्य बताया था.

बाद में वेस्ट इंडीज के खिलाड़ी और क्रिकेट के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों में एक गिने जाने वाले सर विवियन रिचर्ड्स ने कहा था कि उन्मुक्त की बल्लेबाजी देख कर उन्हें अपनी खुद की बल्लेबाजी की याद आ जाती है.

उन्मुक्त के बारे में उनके चाचा और ख्यात कवि-पत्रकार सुंदर चंद ठाकुर ने कुछ वर्ष पहले कबाड़खाना ब्लॉग में लिखा था: “दिल्ली में स्कूलों और मध्यवर्गीय घरों में बच्चों के करियर को लेकर माता-पिता बहुत चिंतित रहते हैं. उन्मुक्त के साथ भी ऐसा था. मैं आजमाना चाहता था कि अगर एक लक्ष्य चुनकर पूरी ताकत और समर्पण के साथ उसे हासिल करने की कोशिश की जाए, तो वह हासिल होता है या नहीं. लेकिन उन्मुक्त के दसवीं तक आते-आते मुझे भी डर लगने लगा. अगर क्रिकेटर नहीं बन पाया तो!

तब यह फेसला किया गया कि क्रिकेट के साथ उसकी पढ़ाई को भी बराबर महत्व दिया जाए. इस मामले में मैं उन्मुक्त को सलाम करूंगा. उन्मुक्त चौदह साल की उम्र में दिल्ली की अंडर-15 टीम में आ तो गया था, मगर उसे एक ही मैच खेलने को मिला, जिसमें वह कुछ खास नहीं कर पाया. तब हमें दिल्ली क्रिकेट की राजनीति समझ में आई क्योंकि उन्मुक्त ने दो साल लगातार टायल मैचों में सबसे ज्यादा रन बनाए थे. मगर उसके दिल्ली अंडर-15 टीम में आने से मुझे बहुत राहत मिली. जिस साल उन्मुक्त को दसवीं का बोर्ड देना था, उस साल नियम बदले और बीसीसीआई ने अंडर-15 के बदले अंडर-16 शुरू कर दिया. इस साल भी टायल मैचों में उन्मुक्त ने सबसे ज्यादा रन बनाए, मगर उसका फिर भी टीम में सेलेक्शन नहीं हुआ.

मैं गुस्से में फनफनाया तब उन्मुक्त की अब तक अखबारों में छपी खबरों की पूरी फाइल लेकर सीधे डीडीसीए के प्रेजिडेंट अरूण जेटली जी से मिला. उनके हस्तक्षेप से उन्मुक्त को तीसरे मैच में खेलने का मौका मिला. इसके बाद तो उन्मुक्त ने दिल्ली की ओर से रन बनाने का ऐसा सिलसिला शुरू किया कि उसे अंडर-19 की कप्तानी ही दे दी गई. मगर वह पढ़ाई को बराबर तवज्जो देता रहा और दसवीं के बोर्ड में महज डेढ़ महीने की तैयारी के बावजूद 83 फीसदी अंक लेकर आया.”

वह भारतीय टीम में जगह बनाने की राह पर है. आज उन्मुक्त का जन्मदिन है और इस मौके पर काफल ट्री उसे बधाई और शुभकामनाएं प्रेषित करता है.

डीपीएस नोएडा में चेतन चौहान से बैस्ट बैट्समैन का खिताब लेते हुए

पांच साल की आयु में उन्मुक्त

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