समाज

उत्तराखंड के इस इलाके में दुल्हन जाती है बारात लेकर दूल्हे के घर

उत्तराखंड अपनी सांस्कृतिक विवधता के लिये खूब जाना जाता है. गढ़वाल, कुमाऊं, जौनसार, भाबर से मिलकर बने इस राज्य में हर समाज की अपनी अनूठी परम्परा है. जौनसार-बावर क्षेत्र की विवाह प्रणाली भी कुछ इस तरह की है जो भारत के अन्य हिस्सों से बेहद अलग और ख़ास है. जौनसार-बावर क्षेत्र में होने वाले विवाह की सबसे बड़ी विशेषता है- दुल्हन का अपनी बारात लेकर दूल्हे के घर जाना.    
(Unique Marriage Traditions Uttarakhand)

जौनसार बावर क्षेत्र में विवाह को जजोड़ा कहा जाता है. जजोड़ा का शाब्दिक अर्थ है- जो जोड़ा उस भगवान ने बना दिया है. यहां बारातियों को जोजोड़िये कहा जाता है. विवाह के अवसर पर यहां अलग-अलग नृत्य और लोकगीत जैसे मेशाक, जेठा, पटेबाजी. सारनदी टांडा आदि होते हैं.

जौनसार बावर क्षेत्र में विवाह की तय तारीख से एक दिन पहले दूल्हे की ओर से चाचा, पिता, मामा या भाई और गांव के तीन मुख्य लोग दुल्हन के घर जाते हैं. ये लोग दूल्हे की ओर से दुल्हन के लिये शादी का जोड़ा, गहने और श्रृंगार आदि का सामान ले जाता हैं.
(Unique Marriage Traditions Uttarakhand)

विवाह की तय तारीख को दुल्हन पक्ष के सभी लोग ढोल-नगाड़ों के साथ नाचते-गाते बारात दूल्हे के घर ले जाते हैं जहां उनके स्वागत में बकरे काटे जाते हैं और एक विशेष डेरे में गोश्त, चावल, रोटी, पूरी, हलवा, दाल, साग-सब्जी आदि का प्रबंध किया जाता है. बारातियों के स्वागत की किसी भी तरह की कोई कसर नहीं छोड़ी जाती.           

दूल्हे के घर में ही दूल्हा और दुल्हन का विवाह होता है यहीं सात फेरे लेकर विवाह संपन्न होता है. विवाह के अगले दिन सभी जोजोड़िये सुबह के समय छांइया लगाकर अपने-अपने घरों को चले जाते हैं. शादी के तीसरे या पांचवे दिन दुल्हन, दूल्हे के साथ अपने घर जाती है जिसे दुणोजिया कहा जाता है. दुणोजिया के स्वागत में भी बकरे काटकर ख़ुशी का इजहार होता है.
(Unique Marriage Traditions Uttarakhand)

इस विषय पर एक लम्बी पोस्ट यहां पढ़ें: जोजोड़ा : जौनसार-बावर की अनूठी विवाह प्रणाली

काफल ट्री फाउंडेशन

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago