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अकल्पनीय अंत हुआ था परवीन बाबी के जीवन का

परवीन बाबी भारत की पहली फ़िल्मी अभिनेत्री थी जिनकी तस्वीर मशहूर पत्रिका ‘टाइम’ ने अपने कवर पर छापी थी. उन्हें सत्तर के दशक की फिल्मों की महारानी कहा जाय तो अतिशयोक्ति न होगी. उन्होंने फिल्मों में अपने पदार्पण के बाद से हिन्दी फिल्मों की नायिका की पारंपरिक छवि को अपने ग्लैमर से आमूलचूल बदल डाला था.

उन्हें एक लिहाज़ से अपने समय की ट्रेंडसेटर भा कहा जा सकता है.

अपने छोटे से करियर में परवीन बाबी ने अनेक सफल फिल्मों में अभिनय किया. जहाँ भारतीय फिल्मों की शास्त्रीय नायिकाएं साड़ी पहन कर स्क्रीन पर आती थीं, परवीन ने अपने पाश्चात्य लिबासों से उस छवि को बिलकुल ही उलट डाला था.

ऐसी लोकप्रिय नायिका का जैसा अंत हुआ उसके बारे में लिखने की कल्पना ही बहुत त्रासद लगती है.

अपने अंतिम दिनों में परवीन बाबी भीषण मानसिक अवसाद की शिकार रहीं और अनेक लोगों ने उन्हें पागल तक कह डाला था. उनके डिप्रेशन की शुरूआत अस्सी के दशक के अंतिम वर्षों में हो चुकी थी जब उन्हें लोगों ने अपनी नासमझी में एक असफल अभिनेत्री और न जाने क्या-क्या कहना शुरू कर दिया था. अवसाद के इन शुरुआती दिनों में वे अपने साक्षात्कारों में अनेक हॉलीवुड और बॉलीवुड के सितारों पर इल्जाम लगाती थीं कि उन्हीने उन्होंने उनकी ह्त्या करने के प्रयास लिए. लोगों ने इसे चेतावनी की तरह लेने के बजाय परवीन पर तमाम तरह के इल्जाम मढ़े.

परवीन बाबी के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर महेश भट्ट, कबीर बेदी और डैनी जैसे सितारों ने समय-समय पर बयानात दिए और भट्ट ने तो इस थीम को लेकर बाकायदा ‘वो लम्हे’ नाम की फिल्म तक बनाई लेकिन परवीन बाबी की असल सुध किसी ने नहीं ली.

एक समय ऐसा था जब परवीन के सामने निर्माताओं की कतार लगी रहती थी और एक समय ऐसा भी आया जब उनकी मौत की खबर उनके चले जाने के तीन दिनों के बाद लोगों को मिली. उनका इस तरह दुनिया से जाना अतीव त्रासद था. यह अहसास और भी त्रासद है कि जब उन्हें अपने चाहने-जानने वालों के सहारे की ज़रूरत थी, उन्हें अकेले मरने के लिए छोड़ दिया गया था.

आज जब कि परवीन बाबी का जन्मदिन है. वे आज सत्तर साल की होतीं. उन्हें याद करने के अलावा इस बात की टोह लिए जाने की भी जरुरत है कि फ़िल्मी मायानगरी की चमकीली सुरंगों में ऐसे कितने सितारे भटक रहे हैं जिनकी असल कहानियाँ शायद ही कभी रोशनी का मुंह देख सकेंगी.

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