Featured

विशुद्ध पहाड़ी तकनीक से कमर के दर्द का इलाज करते हैं अल्मोड़े की पलटन बाजार के मोहन दा

अगर आप कमर की हुक, दर्द से परेशान हैं तो घबराइए नहीं सीधे चले आइए अल्मोड़ा के पलटन बाज़ार, मोहन दा की दुकान में. (Traditional Kumaoni Treatment of Pain)

जी हां हम बात कर रहें हैं एक विशुद्ध पहाड़ी इलाज जो कमर की हुक के लिए मोहन दा के पास आने वाले मरीजों के लिए रामबाण साबित होता है. मोहन सिंह रावत उर्फ़ मोहन दा के परिवार के लोग अपनी कई पीढ़ियों से इस इलाज को आम लोगों को उपलब्ध करा रहे हैं. (Traditional Kumaoni Treatment of Pain)

उनसे बात करने पर उन्होंने बताया कि अल्मोड़ा के पास स्थित बर्शीमी गांववासी उनके बुबु (दादा) – गुसाईं सिंह रावत, और बौज्यू (पिता) जमन सिंह रावत भी इस इलाज को लोगों को मुहैया कराते थे.

इस इलाज को वो एक छुरी के द्वारा किया जाता है. इस छुरी का का बिंडा (हत्था) पैयां (पदम के पेड़) की लकड़ी से बना होता है. इसे मरीज़ की पीठ पर धीरे धीरे स्पर्श कराया जाता है और धीरे-धीरे कमर का दर्द गायब हो जाता है. (Traditional Kumaoni Treatment of Pain)

इस दौरान वो कुछ मंत्र भी पड़ते हैं जो उन्हें उनके पिता बता गए थे. मोहन दा बताते हैं कि उनके बुबू दांतों का इलाज भी किसी जड़ी बूटी के माध्यम से करते थे. सबसे खास बात ये है कि मोहन दा इस सबके लिए कुछ भी पैसा नहीं लेते और पूरे समाज की निशुल्क सेवा करते हैं.

आज के इस दौर में जब पैसा ही आदमी का भगवान हो गया है और दीवाली का मतलब सिर्फ पैसा ही रह गया है मोहन सिंह रावत आज दीवाली के दिन भी निस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा अपनी छोटी सी दुकान में करते देखे जा सकते हैं.

मोहन दा अपनी आजीविका अपनी चाय की दुकान से चलाते हैं जो पिछले कई सालों से पल्टन बाज़ार में है. उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में इस तरह के और भी इलाज बहुत पहले से चले आ रहें हैं और लोगों को इनसे फायदा भी मिलता है. मोहन दा की दुकान चाहे छोटी हो उनका, दिल वाकई बहुत बड़ा है.

सभी फोटो एवं आलेख: जयमित्र सिंह बिष्ट

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

जयमित्र सिंह बिष्ट
अल्मोड़ा के जयमित्र बेहतरीन फोटोग्राफर होने के साथ साथ तमाम तरह की एडवेंचर गतिविधियों में मुब्तिला रहते हैं. उनका प्रतिष्ठान अल्मोड़ा किताबघर शहर के बुद्धिजीवियों का प्रिय अड्डा है. काफल ट्री के अन्तरंग सहयोगी.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago