बंसत पंचमी का दिन उत्तराखंड में सबसे पवित्र दिनों में एक माना जाता है. स्थानीय भाषा में इसे सिर पंचमी भी कहा जाता है. आज के दिन अपनी-अपनी स्थानीय नदियों को गंगा समझ कर स्नान किया जाता है और यह माना जाता है कि यह आज के दिन स्थानीय नदियों में किया गया स्नान गंगा स्नान के समान है. पहाड़ों में बसंत पंचमी के दिन की पवित्रता को इस तरह समझा जा सकता है कि आज के दिन किसी भी के शुभ कार्य के लिये लगन करने की आवश्यकता नहीं होती.
(Traditional Basant Panchami in Uttarakhand)
पैट-अपैट को लेकर पहाड़ों में खूब मान्यता रहती है. पहाड़ियों के काज-काम भी इसी पैट-अपैट के अनुसार होते हैं. किसी भी काज-काम के लिये पैट होना अनिवार्य है. पैट का शाब्दिक अर्थ हिन्दी महीने की तारीख से है. काम-काज के अर्थ में पैट का मतलब शुभ दिन है. पैट-अपैट की गणना कुंडली के अनुसार पंचांग देखकर की जाती है. यह माना जाता है कि बसंत पंचमी के दिन सभी शुभ कार्य किये जा सकते हैं. यही वजह है कि पहाड़ों में आज के जनेऊ और विवाह जैसे शुभ कार्य बिना लगन के खूब किये जाते हैं.
पहाड़ी क्षेत्र कृषि प्रधान क्षेत्र हैं यहां आज कृषक परिवारों के घरों में सुबह के समय खीर बनती है. इससे पहले सुबह-सुबह घर की लिपाई-पुताई की जाती है. घर के मुख्य दरवाजे के ऊपर टीका लगाया जाता है. घर के मंदिर में पूजा के बाद घर के मुख्य दरवाजे के ऊपर (स्तम्भ के दोनों ओर) गोबर के साथ जौ की हरी पत्तियों को लगा दिया जाता है.
बहुत से गावों में बिना गोबर के जौ की पत्तियों को रखा जाता है. कुछ जगहों में घर की मुख्य देली पर सरसों के पीले फूल भी डाले जाते हैं. अपने ईष्ट देवता के मंदिर में भी सरसों के पीले फूल चढ़ाये जाते हैं. जौ की हरी पत्तियां घर के प्रत्येक सदस्य के सिर अथवा कान में रखे जाते हैं और उसे आर्शीवचन दिये जाते हैं.
(Traditional Basant Panchami in Uttarakhand)
पहाड़ों में जौ की हरी पत्तियों को सुख और सम्पन्नता का सूचक माना जाता है. कुछ गावों में जौ की एक छोटी पूरी पौध दरवाजे के ऊपर गोबर के साथ लगाई जाती है वहीं कुछ स्थानों में जौ की केवल पांच पत्तियां लगाई जाती है.
आज के दिन बच्चों को पीले कपड़े पहनाये जाते हैं. इसके साथ ही आज के दिन बच्चियों के नाक और कान भी छेदे जाते हैं. बच्चियों के नाक कान छेदते समय उन्हें खाज़ (कच्चे चावल) और गुड़ खिलाया जाता है.
(Traditional Basant Panchami in Uttarakhand)
–काफल ट्री डेस्क
इसे भी पढ़ें: रूपकुंड यात्रा के शुरुआती दिन
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…