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उत्तराखंड कैबिनेट ने कीड़ा जड़ी विपणन और दोहन नीति को दी मंजूरी

कीड़ाजड़ी के कारोबार को सरकार ने वैध घोषित कर दिया है. मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह की अध्यक्षता में सचिवालय में कैबिनेट की बैठक में कीड़ा जड़ी के दोहन और संग्रहण के लिए कैबिनेट ने नीति को मंजूरी दी है. कीड़ा जड़ी की तस्करी रोकने के साथ स्थानीय लोगों को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए यह निर्णय लिया गया है.

सरकार जड़ी खरीदने वाले व्यापारियों को भी पंजीकृत करेगी. उत्तराखंड वन विकास निगम को जड़ी एकत्रित करने के लिए लाइसेंस जारी करने का अधिकार रहेगा. 100 ग्राम जड़ी एकत्रित के लिए पंजीकरण शुल्क एक हजार रुपये रहेगा. अप्रैल माह से इसका रजिस्ट्रेशन शुरू होगा.

कीड़ा-जड़ी सामान्य तौर पर समझें तो ये एक तरह का जंगली मशरूम है जो एक ख़ास कीड़े की इल्लियों यानी कैटरपिलर्स को मारकर उस पर पनपता है.इस जड़ी का वैज्ञानिक नाम है कॉर्डिसेप्स साइनेसिस और जिस कीड़े के कैटरपिलर्स पर ये उगता है उसका नाम है हैपिलस फैब्रिकस.यह हिमालयी श्रेणियों में 14,000 फीट की ऊंचाई पर पाया जाता है.

प्रदेश में इसके दोहन की नीति न होने के कारण पिथौरागढ़ और धारचूला के इलाक़ों में बड़े पैमाने पर स्थानीय लोग इसका दोहन और तस्करी करते रहें हैं. शक्ति बढ़ाने में इसकी करामाती क्षमता के कारण चीन में इसकी मुँहमाँगी क़ीमत मिलती है. इस पूरे इलाके जड़ी की तस्करी का जाल चीन तक फैला हुआ है. एक अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की कीड़ाजड़ी की तस्करी होती है.

विशेषज्ञों का मानना है कि इस फंगस में प्रोटीन, पेपटाइड्स, अमीनो एसिड, विटामिन बी-1, बी-2 और बी-12 जैसे पोषक तत्व बहुतायत में पाए जाते हैं. ये तत्काल रूप में ताक़त देते हैं और खिलाड़ियों का जो डोपिंग टेस्ट किया जाता है उसमें ये पकड़ा नहीं जाता.

गौरतलब है कि वर्ष 2013 में वन विभाग ने गाइडलाइन जारी की थी कि कीड़ा जड़ी का विदोहन केवल वन पंचायतें करेंगी निकालने के बाद कीड़ा जड़ी वन विकास निगम को दी जाएगी और वह एक निश्चित राशि देने के बाद इसकी नीलामी करेगा, मगर यह व्यवस्था प्रभावी नहीं हो पाई थी.

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