जल अर्थात् मानव जीवन का आधार. मनुष्य अपनी सभी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जल पर निर्भर हैं इसके बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं. (Traditional Water Sources Almora)
प्रकृति द्वारा हमें शुद्ध जल के कई स्रोत उपहार स्वरूप प्रदान किए गए हैं. इसके अलावा कई मानव निर्मित जलस्रोतों द्वारा भी हमारी पानी की जरूरतें पूरी होती हैं. उत्तराखण्ड के मानव निर्मित जल स्रोतों में प्रमुख हैं— नौले.
नौले उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में जल आपूर्ति का मुख्य स्रोत हैं. पहाड़ी इलाकों, ख़ास तौर से उत्तराखण्ड राज्य, के कुमाऊं मण्डल में इन्हें जीवन, पवित्रता, वास्तुकला एवम आस्था का प्रतीक भी कहा जा सकता है.
पहाड़ों में जिस स्थान पर प्राकृतिक रूप से पानी का रिसाव हुआ करता है, वहाँ स्थानीय लोगों द्वारा पत्थरों से एक संरचना बना कर इस पानी को इकठ्ठा कर लिया जाता है, इस संरचना को ही नौला कहा जाता है. जल स्रोत को एक छोटा-बड़ा कुआँ बनाकर रोक लिया जाता है और इस जगह को पत्थरों द्वारा निर्मित दीवारों की मदद से चारों तरफ से बंद कर दिया जाता हैं. एक ओर से छोटा सा प्रवेश द्वार बना दिया जाता हैं, जहाँ से लोग पानी भर सकें. नौलों के द्वार छोटे इसलिए बनाये जाते हैं कि नौलों की स्वच्छता बनी रहे. जिससे एक साथ बहुत सारे लोग इसके भीतर जमघट न लगा सकें और जानवर भी अंदर प्रवेश न कर सकें.
नौले की भीतरी संरचना कुण्ड की तरह होती हैं और इसके भीतर सीढ़ीनुमा आकार भी देखने को मिलता है.
नौलों के गर्भ में विष्णु भगवान अथवा अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमा रखी जाती है. दीवारों में भी देवी देवताओं के चित्र उकेरे देखने को मिलते हैं. अधिकतर नौलों के आसपास सुंदर मंदिरों का निर्माण भी करवाया जाता है. नौलों को इस तरह आस्था व श्रद्धा से जोड़ना स्थानीय लोगों का नौलों के प्रति सम्मान व उसे संरक्षित रखने की भावना को दिखाता है.
कुमाऊं मंडल की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में हमें पौराणिक समय में बने हुए अनेकों पारंपरिक नौले देखने को मिलते हैं. यह नौले शहर की समृद्धि, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक धरोहर को दर्शाते हैं. पुराने समय में अल्मोड़ा नगर में कुल 360 नौले हुआ करते थे, जिनकी संख्या आज के समय में घटकर मात्र 27 –28 रह गई है.
प्राचीन काल में जब व्यापार पैदल मार्गों द्वारा किया जाता था तो इन मार्गों में जगह-जगह धर्मशालाओं व नौलों का निर्माण भी करा दिया जाता था. उस समय यह नौले न केवल राहगीरों बल्कि स्थानीय लोगों के लिए भी जल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत हुआ करते थे. घरों में नल आदि की व्यवस्था न होने, जल आपूर्ति के अन्य भौतिक साधनों के अभाव के कारण शहर की लगभग 70% आबादी स्वच्छ पेयजल के लिए इन्हीं नौलों पर आश्रित हुआ करती थी. धीरे-धीरे समय बीतने के साथ लोग इन्हीं जल स्रोतों के पास बसने लगे. बढ़ते औद्योगिकरण व मानवीकरण का ही परिणाम है कि आज अल्मोड़ा नगर में मात्र 27 –28 नौले ही जीवंत के रूप में मौजूद है, लगभग यही या इससे भी बुरी स्थिति हर पहाड़ी गाँव के नौलों की है.
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अल्मोड़ा में आज मौजूद प्रमुख नौलों में हैं—सिद्धिनौला, टपकेश्वर नौला, हाथी नौला, बेतालेश्वर नौला, चंपानौला, डोबानौला आदि.
अल्मोड़ा की पलटन बाजार में स्थित सिद्धि नौले का निर्माण चंदवंशी शासकों द्वारा अनेकों वर्षों पूर्व किया गया था. माना जाता है कि आज भी पूरे शहर में सबसे शुद्ध जल इसी नौले पर पाया जाता है. इसी क्रम में बेतालेश्वर नौले के महत्व की बात करें तो स्थानीय लोगों के अनुसार इस नौले के जल को सहस्त्र धारा के जल के समान ही पवित्र माना जाता था, जहाँ स्नान करने से सभी चर्म रोगों से मुक्ति मिल जाया करती थी.
अल्मोड़ा नगर में पारंपरिक स्रोतों में से एक है, नरसिंह बाड़ी नामक स्थान पर टपकेश्वर मंदिर के पास स्थित, शहर का एकमात्र कुआँ. क्योंकि पहाड़ी इलाकों में कुएं आसानी से देखने को नहीं मिलते, इस कारण इसका महत्व और भी बढ़ जाता है. दुर्भाग्य से कुएं के आसपास बढ़ती मानवीय गतिविधियों और लोगों की लापरवाही के कारण यह कुआँ भी अपना अस्तित्व खोने लगा है. कभी यह कुआँ 25 फीट गहरा हुआ करता था आज इसका 12 फीट हिस्सा मलबे से अट चुका है. कुएं के अस्तित्व को बचाने व इसके संरक्षण के लिए आशीष वर्मा द्वारा कोशिशें की जा रही हैं.
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नौलों का रखरखाव व संरक्षण न केवल प्राकृतिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है. बांज एवम देवदार के वृक्षों का अंधाधुंध कटान, औद्योगीकरण की धूल, नवीनीकरण, स्रोतों के आसपास कूड़ा–कचरा आदि इन नौलों के विलुप्त होने के प्रमुख कारण है.
नौलों के जलस्तर को बनाए व सुचारू रखने के लिए नौलों के आसपास कम से कम 200 मीटर की नाली होना आवश्यक है. परंतु आधुनिक समय में यह नाली कूड़े-कचरे से भरी रहती है. नौलों के ऊपर लोग भवन निर्माण आदि कार्य प्रारंभ कर देते हैं, जिन वजहों से नौले धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं. हालांकि सरकार अब इसका संज्ञान लेने लगी है. अब सरकार को भी हमारे परंपरागत जल स्रोतों को संरक्षित, सुरक्षित रखने की आवश्यकता महसूस होने लगी है. स्यूनराकोट के प्राचीन नौले को राष्ट्रीय महत्व का प्राचीन स्मारक घोषित करना सरकार की इसी जागरूकता का प्रमाण है. परंतु जब तक स्थानीय निवासी इन नौलों, धारों एवं इस तरह के अन्य पारंपरिक जल स्रोतों के महत्त्व को नहीं समझेंगे, उनके संरक्षण व स्वच्छता के लिए स्वयं प्रयास नहीं करेंगे, तब तक सरकार द्वारा किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ ही हैं.
(यह लेख आशीष वर्मा के साथ बातचीत पर आधारित है. भारतीय सेना में रह चुके आशीष वर्मा वर्तमान में वे स्वच्छता अभियान में अल्मोड़ा शहर के ब्रांड एंबेसडर, अल्मोड़ा मेडिकल एसोसिएशन एवं रेड क्रॉस सोसाइटी के सदस्य भी हैं. आशीष पारंपरिक जल स्रोतों के संरक्षण के लिए उल्लेखनीय काम कर रहे हैं) (Traditional Water Sources Almora)
निष्ठा पाठक जी. बी. पंत विश्विद्यालय, पंतनगर में कॉलेज ऑफ कम्युनिटी साइंस, डिपार्टमेंट ऑफ एक्सटेंशन एजुकेशन एंड कम्युनिकेशन की होनहार छात्रा हैं. अल्मोड़ा की रहने वाली निष्ठा इस समय अपनी पढ़ाई के सिलसिले में ‘काफल ट्री’ के लिए इंटर्नशिप कर रही हैं.
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