हैडलाइन्स

आज थल मेले का आखिरी दिन है

आज थल मेले का आखिरी दिन है. महीने भर चलने वाला थल मेला अब तीन में सिमट गया है. आधुनिकता के दौर में थल मेले की पूरी रंगत भी गायब हो गयी है. कुछ साल पहले तक मेले में भगनौल, झोड़ा चांचरी की झलकियाँ तो दिखती थी पर अब मेला बड़े-बड़े स्पीकरों में चटक-पटक गीत और नेताओं के भाषण तक रह गया है. बालेश्वर मन्दिर में पारम्परिक पूजा के अतिरिक्त पूरा थल मेला बदल गया है.
(Thal Mela Pithoragarh Uttarakhand)

एक समय ऐसा भी था जब थल मेले में काशीपुर से कपड़े और पीतल के बर्तन आते थे, काली कुमाऊं से लोहे बड़ी-बड़ी कढाइयां आती, मथुरा और बरेली से हलवाई आते थे, खूब बड़े-बड़े झूले लगे रहते, जगह-जगह आदमी औरतें झोड़े, भगनौल गाते नजर आ जाते.

थल मेले की पुरानी रंगत को बचाकर रखने का काम छोटी-छोटी समिति या व्यक्तिगत प्रयासों से सामान बनाकर स्टाल लगाये लोगों ने किया है. खरे फ़ायदे का सौदा न होने के बावजूद दिनभर कड़ी मेहनत करते लोग इस बात की उम्मीद जगाते हैं कि मेले में अब भी कुछ बचा है.

इस बात को कहने में गुरेज नहीं किया जाना चाहिये कि थल मेला अपना व्यापारिक महत्त्व खो चुका है. सांस्कृतिक महत्त्व का डिब्बा गोल करने में स्थानीय प्रशासन कोई कसर नहीं छोड़ता. मेले को आधुनिक और आकर्षित बनाने की प्रशासनिक सनक उत्तराखंड के तमाम मेलों का मूल स्वरूप खा चुकी है. स्थानीय प्रशासन की नजर में भव्य मेले का मतलब केवल बड़ा-बड़ा मंच, बड़े-बड़े स्पीकर, लम्बा चौड़ा टेंट और उसमें लगी कुर्सियां हैं. स्थानीय प्रशासन को न भगनौल से मतलब है न झोड़े से और न चांचरी से. यह पूरे उत्तराखंड की एक सच्चाई है कि जिस-जिस पारम्परिक मेले में उत्तराखंड सरकार का प्रशासन अपनी भागीदारी बढ़ाता है वह अपना मूल पारम्परिक स्वरूप खो देता है.   

थल मेले का धार्मिक महत्त्व आज भी जस का तस है. आज थल मेला बचा है तो अपने धार्मिक महत्त्व के कारण. आज भी बालेश्वर मंदिर में आस-पास के सभी गावों के लोग पूरी आस्था के साथ पूजा करते हैं. बालेश्वर मंदिर में हज़ारों की तादाद में लोग पूजा कराते हैं. बालेश्वर मंदिर के विषय में अधिक यहां पढ़ें: थल का बालेश्वर मन्दिर: जगमोहन रौतेला का फोटो निबंध
(Thal Mela Pithoragarh Uttarakhand)

-काफल ट्री फाउंडेशन

Support Kafal Tree

.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब

1980 के दशक में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के जूलॉजी विभाग में प्रवक्ता रहे पूरन चंद्र जोशी.…

4 days ago

कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल…

6 days ago

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

1 week ago

पहाड़ में बसंत और एक सर्वहारा पेड़ की कथा व्यथा

वनस्पति जगत के वर्गीकरण में बॉहीन भाइयों (गास्पर्ड और जोहान्न बॉहीन) के उल्लेखनीय योगदान को…

1 week ago

पर्यावरण का नाश करके दिया पृथ्वी बचाने का संदेश

पृथ्वी दिवस पर विशेष सरकारी महकमा पर्यावरण और पृथ्वी बचाने के संदेश देने के लिए…

2 weeks ago

‘भिटौली’ छापरी से ऑनलाइन तक

पहाड़ों खासकर कुमाऊं में चैत्र माह यानी नववर्ष के पहले महिने बहिन बेटी को भिटौली…

2 weeks ago