Uncategorized

पिघलता हिमालय, दरकता मानव अस्तित्व

उत्तराखण्ड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ग्लोबल वार्मिंग का असर साफ तौर पर देखा जा सकता है. भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) के ताजा अध्ययन में इस बात का खुलासा किया गया है कि 3500 से 4500 मीटर की ऊंचाई पर तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी पाई गई है. इस बढ़ोत्तरी के साथ 4500 मीटर की ऊंचाई पर अधिकतम तापमान अब पांच डिग्री और 3500 मीटर की ऊंचाई पर 10 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने लगा है.

इसके अलावा रुद्रप्रयाग जनपद के केदारनाथ धाम और अन्य उच्च हिमालयी क्षेत्रों में तापमान बढ़ रहा है, जिस कारण यहां से बर्फ लगातार पिघलती जा रही है. 11 हजार फिट की ऊंचाई पर स्थिति केदारनाथ धाम में जहां वर्ष 2013 की आपदा से पूर्व जनवरी माह तक यहां 10 से 12 फीट तक बर्फ जमी रहती थी वहीं आपदा के बाद यहां चल रहे पुनर्निर्माण कार्यों और लगातार मानवीय गतिविधियों के चलते सालदर साल बर्फ लगातार पिघलती जा रही है.

वैज्ञानिकों का दावा इस बात की तस्दीक कर रहा है कि ग्लोबल वार्मिंग हिमालयी क्षेत्र के ग्लेशियरों को अपनी जद में ले रहा है. हाल ही में ग्लेशियर मैपिंग के दौरान चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं. वर्ष 1962 तक इन तीनों बेसिन पर ग्लेशियरों का आकार 2077 वर्ग किलोमीटर तक का था जो अब घटकर 1628 वर्ग किलोमीटर रह गया है. सीधे तौर पर कहें, तो ग्लेशियर के आकार में 21 फीसदी की कमी आई है.

भारतीय वन्यजीव संस्थान के वैज्ञानिकों ने अध्ययन के लिए उत्तराखंड में गंगोत्री बेसिन, हिमाचल प्रदेश में ब्यास बेसिन और सिक्किम में तीस्ता बेसिन का चुनाव किया गया है. इसमें जनवरी 2016 में यहां तापमान रिकॉर्ड करने के लिए डेटा लॉगर लगाए गए हैं. अब तक के अध्ययन की बात करें तो पुराने रिकॉर्ड के अनुसार तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस का इजाफा पाया गया है. इस दशा को उच्च हिमालयी क्षेत्र में तापमान की यह बढ़ोत्तरी किसी भी दशा में सामान्य नहीं माना जा सकता है.

हिमालयी ग्लेशियरों के पिघलने से जो परिस्थितियाँ बनती जा रही हैं. उससे पहाड़ की आबोहवा बदलने की गहरी चिन्ता सताने लगी है. ऐसे में पर्वतीय पर्यावरण के लिये ये किसी चुनौती से कम नहीं है. इसका प्रभाव सिर्फ उत्तराखंड तक ही नही बल्कि विश्व की सर्वोच्च पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट तक हो रहा है ,ग्लोबल वार्मिंग के चलते पिछले पचास सालों से लगातार गर्म हो रही है. दुनिया की 8844 मीटर ऊँची चोटी के आसपास के हिमखण्ड दिन-ब-दिन पिघलते जा रहे हैं.

हिमालयी क्षेत्र में जहाँ पहले बारह महीने बर्फ गिरती थी, अब वहाँ बर्फ गिरने के महीनों में कमी आई है. वहाँ बर्फ गिरने के महीने घट गए हैं जबकि बारिश भी होने लगी है. तात्पर्य यह कि अब इस इलाके में बारिश होने वाला इलाका 4000 से 4500 मीटर तक बढ़ गया है.

यह कितना खतरनाक हो सकता है इस बात का अंदाजा नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक वैज्ञानक शोध के खुलासे से लगाया जा सकता है . हालात बद-से-बदतर होते जा रहे हैं. अगर धरती का तापमान दो डिग्री बढ़ गया तो इसमें सन्देह नहीं है कि ये हालात दुनिया के 20-30 फीसदी हिस्से को सूखा बना देगा.

भारत में स्थिति तब और बिगड़ेगी जबकि बीते साल देश के 53 फीसदी हिस्से यानी 630 जिलों में से 233 में 2016 के मुकाबले औसत से कम बारिश हुई है. इससे पहले से मौजूद सूखे के संकट में और इजाफा होगा. इससे खाद्यान्न प्रभावित होगा और अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

रबिंद्रनाथ टैगोर की कहानी: तोता

एक था तोता. वह बड़ा मूर्ख था. गाता तो था, पर शास्त्र नहीं पढ़ता था.…

3 hours ago

यम और नचिकेता की कथा

https://www.youtube.com/embed/sGts_iy4Pqk Mindfit GROWTH ये कहानी है कठोपनिषद की ! इसके अनुसार ऋषि वाज्श्र्वा, जो कि…

1 day ago

अप्रैल 2024 की चोपता-तुंगनाथ यात्रा के संस्मरण

-कमल कुमार जोशी समुद्र-सतह से 12,073 फुट की ऊंचाई पर स्थित तुंगनाथ को संसार में…

1 day ago

कुमाउँनी बोलने, लिखने, सीखने और समझने वालों के लिए उपयोगी किताब

1980 के दशक में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के जूलॉजी विभाग में प्रवक्ता रहे पूरन चंद्र जोशी.…

6 days ago

कार्तिक स्वामी मंदिर: धार्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य का आध्यात्मिक संगम

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड राज्य में स्थित है और यह एक प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थल…

1 week ago

‘पत्थर और पानी’ एक यात्री की बचपन की ओर यात्रा

‘जोहार में भारत के आखिरी गांव मिलम ने निकट आकर मुझे पहले यह अहसास दिया…

2 weeks ago