इतिहास

छत्तीसी: चंद राजाओं के शासनकाल में वसूले जाने वाले कर

चंद राजाओं के शासनकाल में 36 तरह के राजकर वसूले जाते थे, जिन्हें छत्तीसी कहा जाता था. थातवान परगनाधिकारी— सीरदार या सिकदार के मार्फत कर को राजकोष में जमा करते थे. उपज का छठा भाग ही कर में लिए जाने की परंपरा थी, जिसे गल्ला छहाड़ा कहा जाता था. यह कर अनाज व नकद दोनों के रूप में वसूला जाता था. (Tax system of Chand’s reign)

एक बीसा जमीन के लिए पांच पैसे का कर वसूला जाता था. यहां बीसा का मतलब बीस नाली हुआ करता था. नाली 2 प्रकार की हुआ करती थी. कत्यूर में यह  बड़ी थी और सोर में उसकी ठीक आधा. इसे से यह किस्सा चल पड़ा था— सोर की नाली कम्यूर को मानू, ज्वे जै छुली खसम जै नानु. जॉन विकेट ने 1872 में कत्यूर की नाली को ही पैमाना बनाकर भूमि का बंदोबस्त किया. माल-भाबर में कर ज्यादा हुआ करता था और पर्वतीय भागों में कम.

भूमि की माप नाली, ज्यूलां, विशा, अधालि, पालो, मसा आदि से होती थी. भूमि कर के अलावा प्रजा से लिए जाने वाले कर निम्न प्रकार से थे—

  1. ज्यूलिया— यह नदी के पुलों पर लगने वाला कर थे जिसे सांगा भी कहा जाता था.
  2. सिरती— नकद वसूला जाने वाला यह कर प्रायः माल भाबर व भोटिया व्यापारियों से वसूला जाता था, इसी से सिस्तान शब्द की भी उत्पत्ति हुई.
  3. बैकर— अनाज के रूप में.
  4. राखिया— इसे रछिया भी कहा जाता था. यह सावन के महीने, रक्षाबंधन व जनेऊ संस्कार के वक्त वसूला जाता था.
  5. कूत— नकद के बदले दिया जाने वाला अनाज.
  6. भेंट— राजा व राजकुमारों को दी जाने वाली भेंट.
  7. माँगा— युद्ध के समय लिया जाने वाला कर.
  8. साहू— इसे साउली भी कहा जाता था, यह लेखक पर लगता था.
  9. रंतगली— यह कर भी लेखक को ही डे हुआ करता था.
  10. खेनी-कपीलनी— कुली बेगार.
  11. कटक— सेना के लिए लिया जाने वाला कर.
  12. स्यूक— राजसेवकों के लिए लिया जाने वाला कर.
  13. कमीनचारी या सयानचारी किसानों से लिया जाने वाला लगान व सयानों को दिया जाने वाला कर.
  14. सीकदार नेगी— परगनाधिकारियों को दिया जाने वाला यह कर पूरे गाँव से लिया जाता था/
  15. गर्खा नेगी— गर्खाधिकारी को डे कर.
  16. कनक— शौक व्यापारियों से स्वर्णधूल के रूप में लिया जाने वाला कर.
  17. हिल्यानि-अधूल— बरसात में सड़कों की मरम्मत के लिए लिया जाने वाला कर.
  18. डाला— गाँव के सयाने को अनाज के रूप में दिया गया दस्तूर.
  19. मिझारी— कामगारों से लिया जाने वाला कर.
  20. तान या टांड— सूती व ऊनी वस्त्रों पर बुनकरों से लिया जाने वाला कर.
  21. घी कर— घी विक्रेताओं से लिया जाता था.
  22. मौ कर— हर परिवार पर लगा कर.
  23. भात कर— बड़े उत्सवों पर भात की दावत पर लगा कर.
  24. गाय चराई— तराई और भाबर के गाय चराने वालों से लिया जाता था.
  25. भैंस कर— ट्रेल के अनुसार यह प्रत्येक भैंस पर चार आना की सालाना दर से लगाया जाता था.
  26. व्यापार कर— यह बुनकरों, नमक, कस्तूरी आदि पर लगता था.
  27. खानों पर कर— यह आगरी (सोना, तांबा निकलने वाले) से लिया जाता था.
  • जंगलात कर— जंगलों का उपयोग करने पर लिया जाता था.
  • न्योंवाली कर— न्याय पाने के लिए दिया गया कर.
  • जगरिया— जागर लगाने वाले ब्राह्मण पुजारियों से लिया जाता था.
  • रोल्या-देवल्या— राजपरिवार के देवी देवताओं की पूजा पर लिया जाता था. बलि अथवा भिजन के लिए बकरे के रूप में भी लिया जाता था.
  • भाग घराटों पर लगता था.

इनके अलावा चंद राजाओं के ताम्रपत्रों पर निम्न कर भी उल्लिखित हैं—

  1. पहरी या पौरी— राजधानी व प्रमुख गाँवों की रखवाली करने वालों को देय.
  2. बखरिया— राजा या सईस के लिए देय.
  3. घोड़यालो— राजा के घोड़ों के लिए देय कर.
  4. कुकुरयालो— राज के कुत्तों के लिए दिया जाता था.
  5. बाजदार— महाजन को देय कर.
  6. बजनिया— राजा के नर्तकों व नृतकियों के लिए लिया जाने वाला कर.
  7. चोपदार— राजा की व्यक्तिगत वस्तुओं, तलवार, ढाल आदि ढोने के लिए लिया जाने वाला कर.

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(उत्तराखण्ड का समग्र राजनैतिक इतिहास, डॉ अजय सिंह रावत के आधार पर )

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Sudhir Kumar

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