Viren Dangwal Poem

असल झण्डा छूने तक को न मिला – वीरेन डंगवाल की कविता ‘पन्द्रह अगस्त’असल झण्डा छूने तक को न मिला – वीरेन डंगवाल की कविता ‘पन्द्रह अगस्त’

असल झण्डा छूने तक को न मिला – वीरेन डंगवाल की कविता ‘पन्द्रह अगस्त’

पन्द्रह अगस्त - वीरेन डंगवाल सुबह नींद खुलती तो कलेजा मुंह के भीतर फड़क रहा होता ख़ुशी के मारे स्कूल भागता झंडा खुलता ठीक…

6 years ago
कितनी भी बड़ी हो तोप, एक दिन तो होना ही है उनका मुँह बन्द!कितनी भी बड़ी हो तोप, एक दिन तो होना ही है उनका मुँह बन्द!

कितनी भी बड़ी हो तोप, एक दिन तो होना ही है उनका मुँह बन्द!

पहली बार उनका नाम प्रोफेसर श्योराज सिंह बेचैन से सुना था कि बाबा साहेब आंबेडकर की पत्रकारिता पर उनके रिसर्च…

6 years ago
कभी-कभी बताती है बच्चा पैदा करना कोई हँसी-खेल नहींकभी-कभी बताती है बच्चा पैदा करना कोई हँसी-खेल नहीं

कभी-कभी बताती है बच्चा पैदा करना कोई हँसी-खेल नहीं

हर कवि की एक मूल संवेदना होती है जिसके इर्द-गिर्द उसके तमाम अनुभव सक्रिय रहते हैं. इस तरह देखें तो…

6 years ago
बिटिया कैसे साध लेती है इन आँसुओं को तूबिटिया कैसे साध लेती है इन आँसुओं को तू

बिटिया कैसे साध लेती है इन आँसुओं को तू

कहने को तो वीरेन डंगवाल हिंदी के एम.ए.पीएच.डी और लोकप्रिय, बढ़िया प्राध्यापक थे, एक बड़े दैनिक के सम्पादक भी रहे,…

6 years ago