Leeladhar Jaguri

जब सिल्ला वाले रात का खाना खाते हैं तब चिल्ला वाले सो चुके होते हैंजब सिल्ला वाले रात का खाना खाते हैं तब चिल्ला वाले सो चुके होते हैं

जब सिल्ला वाले रात का खाना खाते हैं तब चिल्ला वाले सो चुके होते हैं

सिल्ला और चिल्ला गाँव - लीलाधर जगूड़ी हम सिल्ला और चिल्ला गाँव के रहनेवाले हैंकुछ काम हम करते हैं कुछ…

6 years ago
कुछ काम हम करते हैं कुछ करते हैं पहाड़कुछ काम हम करते हैं कुछ करते हैं पहाड़

कुछ काम हम करते हैं कुछ करते हैं पहाड़

पहली जुलाई 1944 को उत्तराखंड के टिहरी जिले के धंगण गाँव में जन्मे लीलाधर जगूड़ी वर्तमान समकालीन में हिन्दी के…

6 years ago
एक डग भीतर जाने के लिए सौ डग बाहर आना पड़ता हैएक डग भीतर जाने के लिए सौ डग बाहर आना पड़ता है

एक डग भीतर जाने के लिए सौ डग बाहर आना पड़ता है

अपनी नई कविताओं की रोशनी में कवि लीलाधर जगूड़़ी  -शिवप्रसाद जोशी लीलाधर जगूड़ी अपनी ही कविता में एक नवागंतुक की…

6 years ago
मेरे घर का भी सवाल है : लीलाधर जगूड़ी की कवितामेरे घर का भी सवाल है : लीलाधर जगूड़ी की कविता

मेरे घर का भी सवाल है : लीलाधर जगूड़ी की कविता

ईश्वर और आदमी की बातचीत -लीलाधर जगूड़ी जानते हो यह मूर्ति मेरी है और कुछ लोग इसे पूजने आ रहे…

6 years ago
कलियों और फूलों की ख़ुशबुएँ : लीलाधर जगूड़ी की कविताकलियों और फूलों की ख़ुशबुएँ : लीलाधर जगूड़ी की कविता

कलियों और फूलों की ख़ुशबुएँ : लीलाधर जगूड़ी की कविता

प्राचीन संस्कृति को अंतिम बुके पारंपरिक भारतीय कलियों और फूलों की ख़ुशबुएँ पांडवों की तरह स्वर्गारोहण की सदिच्छा से हिमालय…

6 years ago
हर पौधा तुम्हारी तरह झुका हुआ होगा :लीलाधर जगूड़ी की कविताहर पौधा तुम्हारी तरह झुका हुआ होगा :लीलाधर जगूड़ी की कविता

हर पौधा तुम्हारी तरह झुका हुआ होगा :लीलाधर जगूड़ी की कविता

आषाढ़ -लीलाधर जगूड़ी यह आषाढ़ जो तुमने मां के साथ रोपा था हमारे खेतों में घुटनों तक उठ गया है…

6 years ago