हे! बीरा फूफू, हे! बीरा फूफू, हे! बैरी (बहरी,) हे! सुनती है कि नहीं, मैं अपनी छज्जा के किनारे तब…
गीता गैरोला लेकर आई हैं एक और गढ़वाली लोक कथा. लम्बी अनुपस्थिति फागुन बीत गया. सूरज की गर्मी ने अपनी…
वर्षों बीते पर बात जिन्दा है. मैं ठहरी जन्मजात आवारा. इसी आवारगी में एक अम्मा के साथ मिलना हुआ अल्मोड़े…
शाम सामने वाले गदेरों को सुरमई बना रही थी. स्वीली घाम (शाम को ढलते सूरज की हल्की पीली रोशनी) दीवा…
दादी तू ये बता कि शिवजी भगबान ओ दूर बरफ़ वाले पहाड़ में क्यों रहते हैं.उनके पास हमारे जैसा घर…
मुझे अक्सर अपने दादा, दादी, चाचियाँ, माँ बहुत याद आते हैं. आप कहेंगे इसमें नई बात क्या है. अपनी जिंदगी…
छी भै ये बूढ़े लोग भी न, बहुत तंग कर देते हैं. जब कुछ काम नहीं कर सकते तो आराम…
कथाएं लगाने और सुनने सुनाने की कोइ उम्र नहीं होती. तो लीजिये मेरी कथा लगाने की, सुनने की कड़ी में…
छोटी दादी रंगत में थी बोली आओ रै छोरों आज तुम्हे ऐसे बामण की कथा लगाउंगी जो न्यूत के बुलाया…
चौमास बीता. श्राद्ध भी बीत गए. आस पास के बृत्ति ब्राह्मणों के साथ घर के बड़े बूढ़े, कच्चे बच्चे सब…