Column by Batrohi

आजादी के बाद पहाड़ों में खलनायक ही क्यों जन्म ले रहे हैंआजादी के बाद पहाड़ों में खलनायक ही क्यों जन्म ले रहे हैं

आजादी के बाद पहाड़ों में खलनायक ही क्यों जन्म ले रहे हैं

हमारी धरती में नायकों की कभी कमी नहीं रही. चाहे जितने गिना लीजिए. आजादी से पहले भी, और बाद में…

5 years ago
बच्चों को एमए, पीएच.डी. की डिग्री देने वाला अनपढ़ कवि शेरदाबच्चों को एमए, पीएच.डी. की डिग्री देने वाला अनपढ़ कवि शेरदा

बच्चों को एमए, पीएच.डी. की डिग्री देने वाला अनपढ़ कवि शेरदा

जब से मैंने शेरदा की किताब ‘मेरि लटि पटि’ अपनी यूनिवर्सिटी में एमए की पाठ्यपुस्तक निर्धारित की, एकाएक पढ़े-लिखे सभ्य…

5 years ago
नया साल और गहरे अवसाद का बीच हम लोगनया साल और गहरे अवसाद का बीच हम लोग

नया साल और गहरे अवसाद का बीच हम लोग

हम लोग, जो आजादी के आस-पास पैदा हुए हैं, सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि हमारे समाज का…

5 years ago
घाम दीदी इथकै आ, बादल भिना उथकै जाघाम दीदी इथकै आ, बादल भिना उथकै जा

घाम दीदी इथकै आ, बादल भिना उथकै जा

अब ऐसे नज़ारे कम दिखाई देते हैं, मगर हमारे छुटपन में जब पहाड़ों का आकाश हर वक़्त बादलों से घिरा…

5 years ago
मां की सिखाई ज़बान भूल जाने वाला बेटा मर जाता हैमां की सिखाई ज़बान भूल जाने वाला बेटा मर जाता है

मां की सिखाई ज़बान भूल जाने वाला बेटा मर जाता है

खुद को अभिव्यक्त करने का सलीका मैंने अपने दौर के वरिष्ठ और चर्चित लेखक शैलेश मटियानी से सीखा. और यह…

5 years ago
मुफ्त में लिखा गया उत्तराखण्ड का राज्यगीतमुफ्त में लिखा गया उत्तराखण्ड का राज्यगीत

मुफ्त में लिखा गया उत्तराखण्ड का राज्यगीत

“कहाँ हो बंकिम, कहाँ हो रवीन्द्र! आओ, उत्तराखंड का राज्यगीत लिखो ये वाक्य उत्तराखंड के एक प्रगतिशील समझे जाने वाले…

5 years ago
आमिर खान, उसके बेटे और भेड़ की मोटी दुम के लहसुन वाले खीनकालों का किस्साआमिर खान, उसके बेटे और भेड़ की मोटी दुम के लहसुन वाले खीनकालों का किस्सा

आमिर खान, उसके बेटे और भेड़ की मोटी दुम के लहसुन वाले खीनकालों का किस्सा

हिंदी लेखन की हालत आजकल एक ऐसी संतान की तरह हो गयी है, जिसके बाप के रूप में एक ओर…

5 years ago
क्या आपने पहाड़ी बकरी को चरते देखा है?क्या आपने पहाड़ी बकरी को चरते देखा है?

क्या आपने पहाड़ी बकरी को चरते देखा है?

कहते हैं, संसार का सबसे निरापद और स्वादिष्ट जीव बकरी है. उस पर अगर वो पहाड़ी हो तो क्या कहने.…

6 years ago
कलकत्ता कथा समारोह 1982 : जब भारतीय भाषाओं का नेतृत्व हिंदी करती थीकलकत्ता कथा समारोह 1982 : जब भारतीय भाषाओं का नेतृत्व हिंदी करती थी

कलकत्ता कथा समारोह 1982 : जब भारतीय भाषाओं का नेतृत्व हिंदी करती थी

भारतीय भाषाओं के शीर्षस्थ कथाकारों का समागम : ‘कलकत्ता कथा समारोह, 1982’ : जब भारतीय भाषाओं का नेतृत्व हिंदी करती…

6 years ago
बाबर के साथ क्या रिश्ता था गुलशेर खां शानी और रहमतुल्ला काबाबर के साथ क्या रिश्ता था गुलशेर खां शानी और रहमतुल्ला का

बाबर के साथ क्या रिश्ता था गुलशेर खां शानी और रहमतुल्ला का

इन दिनों शानी बहुत याद आ रहे हैं. 1965 में जब अक्षर प्रकाशन से उनका उपन्यास ‘काला जल’ प्रकाशित हुआ…

6 years ago