थोड़ा-सा अटपटा तो लग सकता है, पर सच यही है कि हम अपनी मर्जी से ही दुखी होते हैं. कोई…
सुन्दर चन्द ठाकुर के कॉलम पहाड़ और मेरा जीवन – अंतिम क़िस्त (पिछली क़िस्त: मैं बना चौबीस रोटियों का डिनर…
पहाड़ और मेरा जीवन – 66 (पिछली क़िस्त: और यूं एक-एक कर बुराइयां मुझे बाहुपाश में लेती गईं जिम शब्द का…
पहाड़ और मेरा जीवन – 66 (पिछली क़िस्त: वो शेर ओ शायरी, वो कविता और वो बाबा नागार्जुन का शहर…
पहाड़ और मेरा जीवन – 65 (पिछली क़िस्त: वो मेरा ‘काटो तो खून नहीं’ मुहावरे से जिंदा गुजर जाना तेरी बज्म…
पहाड़ और मेरा जीवन – 62 (पिछली क़िस्त: और मैं जुल्फ को हवा देता हुआ स्कूल से कॉलेज पहुंचा) मैंने…
पहाड़ और मेरा जीवन – 57 (पिछली क़िस्त: बारहवीं में दसवीं के बच्चों को ट्यूशन पढ़ा यूं कमाए मैंने पैसे)…
पहाड़ और मेरा जीवन- 56 मैं विद्यार्थी जीवन के दौरान और बाद में भी कई बार पैसों को लेकर थोड़ी…
पहाड़ और मेरा जीवन- 55 पिथौरागढ़ में अखबारों, किताबों और स्टेशनरी की अब तो बहुत-सी दुकानें खुल गई हैं, पर…
पहाड़ और मेरा जीवन- 54 (पिछली क़िस्त: उसकी पलकों का क्षितिज न मिला, फूल मेरी नफीस मुहब्बत का न खिला)…