ललित मोहन रयाल

ऋषिकेश मुखर्जी की कालजयी फिल्म: किसी से न कहना

ऋषिकेश मुखर्जी, दिलचस्प और जीवंत सिनेमा के फन मे माहिर सिनेकार रहे हैं. उनकी फिल्मों में बेहद हल्के-फुल्के अंदाज में…

6 years ago

रुपहले पर्दे पर परिवार रचने वाले राजकुमार बड़जात्या का निधन

'मैने प्यार किया' के प्रोड्यूसर बड़जात्या को कौन भूल सकता है. वे निर्देशक सूरज बड़जात्या के पिता थे. बड़जात्या की…

6 years ago

नामवर सिंह: साहित्यिक-वाचिक परंपरा के प्रतिमान

'तुम बहुत बड़े नामवर हो गए हो क्या.' नामवर का नाम एक दौर में असहमति जताने का एक तरीका बनकर…

6 years ago

शेक्सपियर के नाटक ‘द कॉमेडी ऑफ एरर्स’ पर आधारित फिल्म : अंगूर

अंगूर, बांग्ला फिल्म भ्रांतिविलास की रीमेक थी, जो ईश्वर चंद्र विद्यासागर के नाटक पर आधारित थी. यह नाटक विलियम शेक्सपियर…

6 years ago

डार्क ह्यूमर का शानदार नमूना पेश करती फिल्म : नरम गरम

पिता-पुत्री का घर नीलामी की भेंट चढ़ जाता है. वे नायक के यहाँ शरण लेते हैं, जिसके खुद के हालात…

6 years ago

मानवीय चेतना को गहराई तक छू जाने वाली फिल्म ‘कथा’

फिल्म ‘कथा’ (1982) का बैकड्राप, खरगोश-कछुए की कथा पर आधारित है. बदलते हुए परिवेश में, परिवर्तित होते नैतिक मूल्यों को…

6 years ago

हल्के-फुल्के मिजाज की फिल्म चश्मेबद्दूर

चश्मेबद्दूर (Chashme Buddoor) एक पर्सियन शब्द है, जिसका शाब्दिक अर्थ है- बुरी नजर से दूर या नजर ना लगे. चश्मे…

6 years ago

ऋषिकेश मुखर्जी की ‘गोलमाल’ यानी बेहद ऊंचे दर्जे का ह्यूमर

ऋषिकेश मुखर्जी निर्देशित गोलमाल (1979) हिंदी सिनेमा की सफलतम फिल्मों में से एक है. शिष्ट हास्य को परदे पर उकेरना…

6 years ago

बहुत बड़ी और क्लासिक फिल्म है ‘छोटी सी बात’

वर्ष 1975 हिंदी सिने-इतिहास में खास तौर पर याद किए जाने लायक साल है. इस वर्ष शोले, दीवार, धर्मात्मा, जमीर,…

6 years ago

ह्यूमर और भाषा का अद्भुत संयोजन है ऋषिकेश मुखर्जी की ‘चुपके चुपके’

ऋषि दा को मिडिल क्लास सिनेमा का बड़ा क्राफ्टमैन यूँ ही नहीं कहा जाता. लीक से हटकर विषय उठाने में…

6 years ago